ट्रंप-मोदी वार्ता : आत्मसमर्पण करते भारतीय शासक

/trump-modi-vaarta-surrender-karate-bhartiy-shasak

13 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति से जब भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात हुई तो करोड़ों भारतीयों को उम्मीद थी कि 5 फरवरी को अमेरिकी सैन्य विमान अमृतसर में उतरने देने की गलती की मोदी भरपाई करेंगे व ट्रम्प के सामने जंजीरों में सैन्य विमान में भारतीयों को भेजने का तीखा विरोध करेंगे। पर अफसोस ऐसा नहीं हुआ। 56 इंच के सीने वाले भारतीय प्रधानमंत्री ने इस पर कोई विरोध तक दर्ज नहीं कराया बल्कि उल्टा अवैध ट्रैफिकिंग पर कार्यवाही की बात कर ट्रम्प के इस कदम का समर्थन कर दिया। कोढ़ में खाज यह हुआ कि 15 फरवरी को अमृतसर में भारतीयों की दूसरी खेप आने वाली है। 
    
इस वार्ता से ठीक पहले ट्रम्प ने तटकरों के मसले पर जैसे को तैसा की तर्ज पर तटकर लगाने की घोषणा की थी। इसका भारत के लिए निहितार्थ यही था कि ज्यादातर मालों पर जितना तटकर भारत लगाता है अब भारतीय मालों के अमेरिका में जाने पर अमेरिकी भी उतना ही तटकर वसूलेगा। इस तरह ऐन वार्ता से ठीक पहले ट्रम्प ने यह बयान देकर एक तरह से मोदी सरकार को चेतावनी दे दी थी कि अबकी बार उनके इरादे कुछ और हैं। 
    
गौरतलब है कि भारत अमेरिकी मालों पर अपेक्षाकृत ऊंचे शुल्क लगाता है और अमेरिका भारतीय मालों पर कम शुल्क लगाता है। ट्रम्प की योजना अगर परवान चढ़ी तो भारतीय मालों पर अमेरिका में शुल्क बढ़ जायेंगे जिसका सीधा असर भारतीय निर्यात पर पड़ेगा। 
    
वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान के अनुसार दोनों देशों ने मुक्त-खुले शांत हिंद प्रशांत क्षेत्र स्थापित करने की बात की। दोनों देशों के बीच परस्पर रणनीतिक सहयोग बढ़ाने पर बात हुई। दोनों देशों ने ‘‘अमेरिका-भारत काम्पैक्ट’’ नामक नयी पहल ली जिसके तहत सैन्य भागीदारी व व्यवसाय व तकनीक के मामले में सहयोग किया जायेगा। रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाते हुए दोनों देशों ने 10 वर्ष के रक्षा सहयोग फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किये। रक्षा उत्पादन में भी परस्पर सहयोग की बातें हुईं। अमेरिका द्वारा नये लड़ाकू विमान भारत को बेचे जायेंगे। भारत-अमेरिका व्यापार 2030 तक 500 अरब डालर करने का लक्ष्य लिया गया। ग्रीन फील्ड निवेश बढ़ाने की बातें हुईं। ऊर्जा-नाभिकीय समझौता, तकनीक-नवाचार आदि पर भी बातें हुईं। समुद्र-नागरिक सहयोग, मध्य पूर्व, आदि मसलों पर भी बातें हुईं।
    
वार्ता के बाद जब दोनों नेताओं की प्रेस वार्ता हुई तो मोदी चापलूसी की हद तक जाकर ट्रम्प की बढ़ाई करते नजर आये। वे ट्रम्प के 3 हफ्तों के शासन की तारीफ करते नजर आये। गौरतलब है कि इन 3 हफ्तों में ही भारत समेत कई देशों के अवैध अप्रवासियों की जबरन गृह वापिसी हुई। पर मोदी इन 3 हफ्तों की तारीफ में जुटे रहे।
    
इसके उलट ट्रम्प ने जहां ब्रिक्स की आलोचना की व डालर के बजाय अपनी मुद्रा में व्यापार करने पर तटकर बढ़ाने की चेतावनी दी। ट्रम्प ने मोदी के साथ खड़े होकर एक तरह से भारत को निशाने पर लिया और मोदी सिर झुकाये सुनते रहे। 
    
दरअसल ट्रम्प जब राष्ट्रपति बने तो मोदी को उम्मीद थी कि ट्रम्प शपथ ग्रहण समारोह में उन्हें न्यौता देंगे पर ऐसा नहीं हुआ। बाद में विदेश मंत्री जयशंकर को अमेरिका भेजा गया तब यह बैठक तय हुई। इस बैठक में ज्यादातर मसलों पर मोदी ट्रम्प के सम्मुख आत्मसमर्पण करते नजर आये। 
    
ट्रम्प ने भारत पर अमेरिकी तेल खरीदने, अमेरिकी लड़ाकू विमान खरीदने सरीखी कई बातों को थोपने में सफलता पायी। वहीं मोदी भारतीय नागरिकों को जंजीर से बांध भारत भेजने पर भी दिखावटी विरोध भी दर्ज नहीं करा पाये। 
    
भारतीय शासकों की अमेरिका परस्ती व अमेरिकी राष्ट्रपति का महिमामण्डन दिखलाता है कि वे इजरायल सरीखी भूमिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में हासिल करने को लालायित हैं। 
    
भारतीय चाटुकार मीडिया इस वार्ता के तारीफ के पुल बांध देश में ढिंढोरा पीट रहा है। पर असलियत यही है कि ट्रम्प के आगे मोदी घुटनाटेकू प्रधानमंत्री साबित हुए। 

आलेख

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

/gazapatti-mein-phauri-yudha-viraam-aur-philistin-ki-ajaadi-kaa-sawal

ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

/apane-desh-ko-phir-mahan-banaao

आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। 

/trump-ke-raashatrapati-banane-ke-baad-ki-duniya-ki-sanbhaavit-tasveer

ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है। 

/bhartiy-ganatantra-ke-75-saal

आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं?