
सैमसंग इंडिया के तमिलनाडु स्थित संयंत्र के संघर्षरत मजदूरों की एक महीने पुरानी हड़ताल बगैर किसी सम्मानजनक समझौते के समाप्त हो गयी है। दक्षिण कोरिया की इस बहुराष्ट्रीय कम्पनी के इस संयंत्र के मजदूरों ने अपने जुझारू संघर्ष के तेवरों से देश भर में चर्चा हासिल की थी। पर मजदूरों की यूनियन का नेतृत्व समझौतापरस्त केन्द्रीय ट्रेड यूनियन फेडरेशन सीटू के हाथों में होने का मजदूरों को बार-बार खामियाजा उठाना पड़ा।
गौरतलब है कि बीते वर्ष लम्बी हड़ताल कर सैमसंग मजदूरों ने अपने हक-हकूक की मांग न केवल सैमसंग प्रबंधन के सम्मुख पेश की थी बल्कि अपने पक्ष में व्यापक मजदूरों का समर्थन भी हासिल किया था। उस वक्त मजदूरों की यूनियन का पंजीकरण एक प्रमुख मुद्दा था जिसका प्रबंधन विरोध कर रहा था। राज्य में डीएमके की सरकार मजदूरों के दमन पर उतारू थी। उस वक्त भी मजदूरों के संघर्ष को व्यापक बनाने के बजाय सीटू नेतृत्व ने बगैर किसी सम्मानजनक समझौते के हड़ताल समाप्त कराने की तत्परता दिखलाई। और मजदूरों के आक्रोश के बावजूद हड़ताल समाप्त कर दी गयी।
जुलाई 24 में सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन जब गठित की गयी तो मजदूरों ने सीटू से इसे सम्बद्ध करा लिया था। जब मजदूर पहली बार हड़ताल पर गये तब भी सीटू नेतृत्व ने हड़ताल के दौरान अस्थायी मजदूरों के दम पर उत्पादन जारी रखने की प्रबंधन की नीति में कोई रुकावट न डाल हड़ताल के प्रभाव को कमजोर किया था।
इस वर्ष लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद जब मजदूरों को सैमसंग इंडिया के नाम से यूनियन पंजीकृत कराने में सफलता मिल गयी तो प्रबंधन इसे बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने यूनियन पर नया हमला बोलते हुए यूनियन के 3 नेतृत्वकारी पदाधिकारी निलम्बित कर दिये। इसके विरोध में मजदूर एक बार फिर 5 फरवरी को हड़ताल पर चले गये। हड़ताल के दौरान प्रबंधन ने 20 और मजदूरों को निलम्बित कर दिया।
इस निलम्बन व डी एम के सरकार के दमन के बावजूद मजदूरों के हौंसले बुलंद थे और वे आर-पार की लड़ाई के मूड में थे। उन्हें आस-पास के अन्य कारखानों के मजदूरों का भी समर्थन मिल रहा था। 13 मार्च को सैमसंग मजदूरों के समर्थन में इलाके में घोषित सहानुभूति हड़ताल को व्यापक समर्थन मिल रहा था। कम्पनी प्रबंधन मजदूरों की इस व्यापक एकजुटता से दबाव में लाया जा सकता था। पर यह सब हो पाता इससे पहले ही सीटू नेतृत्व ने मजदूरों की राय लिये बिना हड़ताल समाप्ति की घोषणा कर दी।
सीटू नेतृत्व ने मजदूरों से झूठ बोलकर कि प्रबध्ांन ने 23 निलम्बित श्रमिकों की कार्यबहाली का आश्वासन दिया है, यह हड़ताल समाप्त करवाई। बाद में सीटू नेतृत्व ने प्रबंधन पर आश्वासन से मुकरने का आरोप लगा दिया।
इस हड़ताल में सीटू नेतृत्व का समझौतापरस्त रुख एक बार फिर उजागर हो गया। यह रुख डी एम के की सरकार के प्रबंधन परस्त रुख से संघर्ष न करने के रूप में भी दिखा।
अब जबकि 23 निलम्बित मजदूरों पर बगैर किसी समझौते के हड़ताल खत्म हो गयी है तो सैमसंग प्रबंधन मजदूरों पर रोज नये-नये हमले कर रहा है। मजदूरों को नये-नये काम में लगाना, वार्षिक बोनस देने से इंकार कर मजदूरों को तंग किया जा रहा है। मजदूर अपने समझौतापरस्त नेतृत्व की सलाह पर यह सब उत्पीड़न सहन कर रहे हैं पर सैमसंग के मजदूर अपने नेतृत्व के चरित्र को शीघ्र ही अपने अनुभव से पहचान जायेंगे और अपनी स्वतंत्र एकजुटता कायम कर अपने हक हकूक के लिए फिर संघर्ष तेज कर देंगे।
शीघ्र ही मजदूर माकपा-डीएमके के मजदूर विरोधी गठजोड़ को पहचान जाएंगे और इनके खिलाफ भी संघर्ष छेड़ देंगे।
केरल में 21,000 रु. प्रतिमाह वेतन की मांग व पेंशन लाभ के लिए महीने भर से हड़ताल पर जुटी आशायें माकपा के प्रति मजदूरों के भ्रम को तोड़ने में मदद करेंगी। केरल में माकपा सरकार फंड की कमी का बहाना बना आशाओं की मांग पूरी करने से इंकार कर रही है। एक ओर माकपा से संबद्ध सीटू 26,000 रु. न्यूनतम वेतन की मांग करती है वहीं दूसरी ओर केरल की माकपा सरकार आशाओं को 21,000 वेतन देने को तैयार नहीं है। यह दिखाता है कि माकपा व सीटू मजदूरों के नहीं बल्कि पूंजीपतियों के पक्ष में खड़े हैं। सैमसंग मजदूर जितनी जल्दी इस सच्चाई से वाकिफ होंगे, उतना ही उनके संघर्ष के लिए अच्छा होगा।