अमरीका और रूस के बीच यूक्रेन की बंदरबांट

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अमरीकी साम्राज्यवादी रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस को पराजित नहीं कर सके बल्कि इसके विपरीत रूस यूक्रेन के कई इलाकों पर अपना कब्जा बढ़ाता चला गया। तभी ‘‘शांति का मसीहा’’ का बिल्ला लगाकर ट्रम्प अमरीका का राष्ट्रपति बना। उसने रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने की बात की। दरअसल, उसकी यह बात इस बात का संकेत थी कि अमरीकी साम्राज्यवादियों का विश्वव्यापी प्रभाव कमजोर होता जा रहा है। ट्रम्प इसे बचाने की कोशिश में यूक्रेन से और यूरोप से अपने कदम पीछे कर रहा है। ट्रम्प ने यूक्रेन के साधन स्रोतों पर नियंत्रण करने के लिए रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी योजना को अंजाम देना शुरू कर दिया है। वह इसकी खुलेआम घोषणा भी कर रहा है। 
    
वह अभी भी यह दावा कर रहा है कि उसे इस युद्ध में लोगों के मारे जाने से बड़ी तकलीफ हो रही है और वह इसे हर कीमत पर समाप्त करना चाहता है। इसके लिए उसने रूस के साथ बातचीत शुरू की। उसने यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्स्की को धमकी देकर इस युद्ध को समाप्त करने के लिए राजी किया। एक तरफ वह रूस के साथ मिलकर यूक्रेन के रूसी कब्जे को स्वीकार कर रहा था और दूसरी तरफ जेलेन्स्की पर इस बात के लिए दबाव बना रहा था कि वह हर हाल में युद्ध को बंद करे। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    
अभी हाल में रियाद में अमरीकी प्रतिनिधि मण्डल और रूसी प्रतिनिधि मण्डल के बीच काले सागर में जहाजों के आवागमन के बारे में वार्ता हुई। यह 30 दिनों के आंशिक युद्ध विराम पर समझौता होने के बाद के व्यापक युद्धविराम की दिशा में आगे बढ़ने के सिलसिले में थी। यहां यह ध्यान देने की बात है कि इसी दौरान अमरीकी प्रतिनिधि मण्डल की अलग से बात यूक्रेनी प्रतिनिधि मण्डल से भी इसी संदर्भ में हुई। जहां अमरीकी और रूसी प्रतिनिधि मण्डल की बात सिर्फ काले सागर में जहाजों के आवागमन पर केंद्रित थी, वहीं यूक्रेनी प्रतिनिधिमण्डल रूस पर प्रतिबंध जारी रखने और यूक्रेन को हथियारों और खुफिया जानकारी देने की मांग संदर्भी ज्यादा व्यापक मुद्दों को समेटने पर जोर देना चाहता था। 
         
अमरीकी प्रतिनिधि मण्डल ने यूक्रेनी प्रतिनिधि मण्डल को यह साफ-साफ बता दिया कि उनकी रूसी प्रतिनिधि मण्डल के साथ किन मुद्दों पर बात हुई है और समझौता हुआ है। उनकी यह बातचीत पहले 40 मिनट और रूसी प्रतिनिधि मण्डल के साथ बातचीत होने के बाद 30 मिनट में ही निपटा दी गयी। जबकि रूसी प्रतिनिधि मण्डल से अमरीकी प्रतिनिधि मण्डल की बातचीत साढ़े बारह घण्टे तक हुई। रूसी प्रतिनिधि मण्डल के साथ बातचीत के बाद यह समझौता हुआ कि यूक्रेनी अनाज और अन्य खाद्य सामग्री काले सागर से होकर जा सकती है बशर्ते कि इस बात की गारण्टी हो कि उसमें छिपे तौर पर हथियार नहीं आ रहे हैं। इसके लिए अमरीका जांच पड़ताल करने की गारण्टी करे। इसके साथ ही रूसी अनाज, उर्वरक और अन्य खाद्य सामग्री को विश्व बाजार में जाने में छूट मिलनी चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार की बाधा नहीं पड़नी चाहिए। इसके साथ ही इसमें लगे रूसी बैंकों को प्रतिबंधों से बाहर किया जाना चाहिए। जहाजों पर जाने वाले मालों पर बीमा किया जाना चाहिए। रूसी खाद्यान्नों, उर्वरकों और अन्य मालों के आवागमन को सुनिश्चित करने की अमरीकी गारण्टी होनी चाहिए। रूसी मांगों को अमरीका ने स्वीकार किया। इससे यूक्रेन सहमत नहीं हुए और इसलिए समझौते का प्रस्ताव जारी नहीं किया गया। 
    
लेकिन इसके बाद जब जेलेन्स्की ने संवाददाता सम्मेलन बुलाकर इससे अपनी नाराजगी दिखायी तो अमरीका ने समझौते की बातों को जारी कर दिया। इसमें भी जेलेन्स्की की युद्ध को जारी रखने की योजना उजागर हो गयी। रूस ने भी अमरीका के साथ हुई बातचीत और समझौते का विस्तार से प्रेस नोट जारी किया। इसमें बताया गया कि किस प्रकार जेलेन्स्की पहले 30 दिनों वाले आंशिक समझौते का उल्लंघन करते हुए लगातार रूसी ऊर्जा अवरचना पर बमबारी करता रहा है। यदि ऐसी बमबारी जारी रहती है तो रूस भी इस समझौते को तोड़ने के लिए बाध्य हो जायेगा। 
    
अमरीका और रूस की यूक्रेन की इस बंदरबांट से यूरोपीय संघ के देशों को बाहर रखने से वे बहुत ज्यादा बौखलाये हुए हैं। यूरोपीय साम्राज्यवादियों को इस समझौते से बाहर रखा गया है। अमरीका और रूस के बीच इस समझौता वार्ता में न तो यूक्रेन शामिल है और न ही यूरोपीय संघ और नाटो के देश। वे जेलेन्स्की के साथ मिलकर रूस के विरुद्ध युद्ध जारी रखने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें यूरोपीय संघ के नेता, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री स्टार्मर और फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रोन अग्रणी हैं। वे हथियारों सहित अपने सैनिक उतारने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन इसको लेकर यूरोपीय संघ के भीतर मतभेद उभरकर सामने आ गये हैं। इटली ने कह दिया है कि वह इस युद्ध में (यूक्रेन-रूस युद्ध में) अपनी सेना यूक्रेन नहीं भेजेगा। इसके अलावा हंगरी, स्लोवाकिया और सर्बिया इसके विरुद्ध रहे हैं। रूस के विरुद्ध ब्रिटेन और फ्रांस नाटो की शांति सेना के बतौर यूक्रेन में सैनिक भेजने की बात कर रहे हैं। 
    
यह हास्यास्पद बात है कि जो नाटो अभी तक रूस के विरुद्ध यूक्रेन की मदद करता रहा है वही शांति सेना के रूप में वहां जाये। स्वाभाविक है कि रूस ने इसका विरोध किया है। इधर ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों ने यूक्रेन में लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना भेजने की कार्रवाई को मूर्खतापूर्ण बताया है। लेकिन ब्रिटिश और फ्रांसीसी शासक तथा यूरोपीय संघ के नेता अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए अभी भी युद्धोन्माद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। 
    
हालांकि उनके पास न तो इतनी सैन्य क्षमता है और न ही उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वे रूस का मुकाबला करने के लिए, उसे युद्ध क्षेत्र में पराजित करने के लिए यूक्रेन की मदद कर सकें। वे अमरीकी साम्राज्यवादियों की सैन्य ताकत के बल पर अभी तक आखिरी यूक्रेनी तक लड़ने का उकसावा दे रहे थे। 
    
इस समय यूरोपीय संघ और नाटो के देश रूस-अमरीका के नये बनने वाले गठबंधन से परेशान और हताश हैं। यह नया गठबंधन सिर्फ यूक्रेन और यूरोप तक सीमित नहीं है। अमरीकी साम्राज्यवादियों की योजना है कि पश्चिम एशिया में ईरान के विरुद्ध उनकी लड़ाई में रूसी साम्राज्यवादी उनका सहयोग करें। यदि सहयोग नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो करें कि ईरान परमाणु हथियारों के निर्माण की क्षमता न हासिल कर सके, इसमें उनकी मदद करें। 
    
रूसी साम्राज्यवादी अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद, यह जानते हैं कि इस समय दुनिया के पैमाने पर वे तरह-तरह के गठबंधनों के जरिये पहले ही तुलना में बेहतर स्थिति में हैं। इसलिए अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ गठबंधन बनाकर वे अपने पहले के संश्रयों को तोड़ने की ओर नहीं जायेंगे। अमरीकी साम्राज्यवादी चाहते हैं कि रूस और चीन का गठबंधन न रहे। लेकिन रूसी साम्राज्यवादियों और चीनी साम्राज्यवादियों का गठबंधन कई क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है। अभी इन दोनों में से किसी का स्वार्थ इस गठबंधन को तोड़ने में नहीं है। बल्कि इस गठबंधन के जरिये और विभिन्न क्षेत्रीय संगठनों के साथ मिलकर इन दोनों साम्राज्यवादियों ने अमरीकी साम्राज्यवादियों के एकछत्र प्रभुत्व को कमजोर करने में भूमिका निभायी है। 
    
ट्रम्प के नेतृत्व में अमरीकी साम्राज्यवादी अपने कमजोर होते प्रभुत्व को बचाने की पुरजोर कोशिश में कभी कनाडा को अपने में मिलाने की धमकी दे रहे हैं तो कभी ग्रीन लैण्ड को अपना हिस्सा बनाने की चालें चल रहे हैं। टैरिफ युद्ध छेड़कर वे दुनिया भर में अपने हितों को आगे बढ़ाना चाहते हैं। 
    अब वे यूक्रेन में अपनी दी गयी सैनिक और आर्थिक मदद की कीमत वसूल रहे हैं। यूक्रेन की दुर्लभ मृदा धातुओं पर उनकी नजर है। वे अब वहां के परमाणु संयत्रों और ऊर्जा स्रोतों पर भी निगाह गड़ाये हुए हैं। वे रूस के साथ मिलकर इन पर कब्जा करने की योजना को आगे बढ़ा रहे हैं। रूसी साम्राज्यवादी भी रूस के विपुल साधन स्रोतों के दोहन में अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को बुलाने का लालच दे रहे हैं। ट्रम्प को यह लालच भी आकर्षित कर रहा है। 
    
अमरीकी और रूसी साम्राज्यवादी यूक्रेन की बंदरबांट में लगे हुए हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं कि रूसी कब्जे वाले यूक्रेनी इलाके रूस के पास रहें। यूक्रेन नाटो का सदस्य न बने। यूक्रेन और रूस की सीमा पर एक बफर जोन हो। 
    
यह युद्ध यूक्रेन के नाटो सदस्य बनने के सवाल पर शुरू हुआ था। रूस के विरोध का यह एक सबसे महत्वपूर्ण कारण था। रूस को इसमें सफलता मिलती नजर आ रही है। असैन्यीकरण और अनाजीकरण की प्रक्रिया जेलेन्स्की की पराजय के बाद तेज हो जायेगी। 
    
रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया में तेजी से परिवर्तन के संकेत मिल रहे हैं। शक्ति संतुलन बदल रहा है। लेकिन यह काल और उथल-पुथल भरा होने वाला है।  

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