निजता की रक्षा के बहाने नया हमला

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डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट

मोदी सरकार ने निजी सूचनाओं के डाटा की सुरक्षा के लिए बनाये कानून के जरिये सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं-पत्रकारों पर नया हमला बोला है। इस नये कानून के जरिये सूचना अधिकार अधिनियम को भी बेहद कमजोर कर देने की सरकार की मंशा है। 
    
अभी तक सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सरकारी संस्थायें केवल उसी सूचना को देने से इंकार कर सकती थीं जब यह बेहद व्यक्तिगत किस्म की सूचना हो व जिसके उजागर होने से व्यक्ति को दिक्कत हो। अब नये कानून के तहत सरकार के पास किसी भी तरह के व्यक्तियों के व्यक्तिगत डाटा न देने का अधिकार आ गया है। मसलन अब बैंक का कर्ज न चुकाने वालों के नाम या मतदाता सूची में जोड़े नाम नहीं मांग सकते क्योंकि ये नाम व्यक्तिगत डाटा हैं।
    
इसी के साथ नये कानून के तहत किसी पत्रकार-संगठन-पार्टी जिसके पास किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत डाटा है, वह व्यक्ति की सहमति के बगैर इस डाटा को प्रकाशित नहीं कर सकता। अगर वह ऐसा करता है तो नये कानून के तहत उस पर 250 करोड़ रु. से 500 करोड़ रु. तक का जुर्माना ठोंका जा सकता है। इस तरह कोई पत्रकार किसी घोटाले में लिप्त व्यक्ति-अफसर का नाम, किसी भ्रष्ट का नेता का नाम बगैर उसकी सहमति के नहीं छाप सकता। इस तरह से देखें तो यह कानून सरकार के हाथ में किसी पत्रकार, पार्टी को प्रताड़ित करने के असीमित अधिकार दे देता है।
    
अगस्त 23 में पारित इस कानून की जब नियमावली सामने आयी तो पता चला कि निजता की रक्षा के नाम पर सरकार अपने हर विरोधी पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है। जहां तक व्यक्तिगत डाटा की बात है तो आधार-वोटर कार्ड से जुड़ा डाटा खुद सरकारी विभागों द्वारा लीक-चोरी हो जा रहा है जिसका लाभ कंपनियां उठा रही हैं। 
    
इस तरह मोदी सरकार अपने विरोधियों का मुंह बंद करने का नया औजार लेकर सामने आ गयी है। आने वाले वक्त में पत्रकारों को चोरों-लुटेरों के नाम उजागर करने के अपराध में जेल-जुर्माना झेलना पड़ेगा। चोर-लुटेरों की सरकार से इसके अलावा और उम्मीद ही क्या की जा सकती है। 

आलेख

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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