गाजापट्टी में इजरायल द्वारा जारी नरसंहार और इजरायली सत्ता का संकट

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इजरायल की नेतन्याहू की सरकार ने युद्ध विराम को समाप्त करके गाजापट्टी में नरसंहार फिर से शुरू कर दिया है। उसने युद्ध विराम के पहले के समझौते को दूसरे चक्र में आगे बढ़ाने से पहले ही इंकार कर दिया है। गाजापट्टी में इजरायल द्वारा प्रतिदिन औसतन 100 से ज्यादा नागरिकों की हत्यायें की जा रही हैं। वह लेबनान में युद्ध विराम के बावजूद अपने हमले जारी रखे हुए है। सीरिया के दक्षिणी हिस्से में कब्जे के विस्तार के बावजूद वह वहां लगातार हमले कर रहा है। इजरायल द्वारा गाजापट्टी में राहत सामग्री पर रोक और हमलों का जवाब यमन के हूथी लड़ाके इजरायल पर मिसाइलों से हमले करके दे रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी यमन पर लगातार बमबारी कर रहे हैं। जवाब में यमन भी अमरीकी लाल सागर स्थित युद्धपोतों पर हमले कर रहा है। यमन के हूथी संगठन का कहना है कि जब तक गाजापट्टी में इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता नाकाबंदी जारी रखती है और वहां नरसंहार करती है तब तक हूथी लाल सागर से इजरायल जाने-आने वाले जहाजों पर हमले जारी रखेंगे। इस नरसंहार में अमरीकी साम्राज्यवादी इजरायली सत्ता का समर्थन कर रहे हैं। 
    
इजरायल की यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू सरकार खुद अपने देश के भीतर व्यापक विरोध का सामना कर रही है। इजरायली बंधकों के भविष्य को लेकर लोग नेतन्याहू का विरोध कर रहे हैं। गाजापट्टी में युद्ध विराम समझौते को तोड़कर फिर से हमला शुरू करके नेतन्याहू सरकार ने बंधकों के जीवन को खतरे में डाल दिया है। इससे नेतन्याहू सरकार के विरुद्ध लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। खुद इजरायली सत्ता के प्रतिष्ठान के भीतर मतभेद तेज होते जा रहे हैं और ये मतभेद खुली टकराहट की शक्ल में सामने आ रहे हैं। इजरायली आंतरिक सुरक्षा संस्था शिन बेट ने अपनी जांच रिपोर्ट में 7 अक्टूबर को हुए हमले की जिम्मेदारी राजनीतिक नेतृत्व पर डालने की बात की है। इससे नेतन्याहू ने शिन बेट के मुखिया को बर्खास्त करने का प्रस्ताव किया है। इसका इजरायली सर्वोच्च न्यायालय ने विरोध किया है और यह बर्खास्तगी रुक गयी है। शिन बेट के मुखिया ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया है। 
    
इसके पहले इजरायली सेना प्रमुख ने इजरायली प्रधानमंत्री से मतभेद के चलते इस्तीफा दे दिया था। अब प्रधानमंत्री नेतन्याहू न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्तियों पर सरकार के हाथ में नियंत्रण लाने सम्बन्धी प्रस्ताव संसद में पारित करा रहे हैं। इस बात को लेकर पहले ही नेतन्याहू सरकार के विरुद्ध व्यापक प्रदर्शन हो चुके हैं। नेतन्याहू सरकार के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में पहले से ही भ्रष्टाचार का मुकदमा चल रहा है। नेतन्याहू इस युद्ध का बहाना बनाकर इसका सामना करने से बचता रहा है। इसके अतिरिक्त, नेतन्याहू कार्यालय को एक बड़ी रकम देने की बात किसी कतर के व्यवसाई ने की है। इन मामलों में नेतन्याहू देश के भीतर घिरता नजर आ रहा है। इजरायली शासक वर्ग का एक धड़ा यह कह रहा है कि नेतन्याहू इजरायली समाज को गृहयुद्ध की ओर ले जा रहे हैं। इस धड़े का यह भी कहना है कि नेतन्याहू सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए ही इस चौतरफा युद्ध को छेड़े हुए है। ऐसे लोगों का कहना है कि जैसे ही युद्ध खत्म होगा, नेतन्याहू की सत्ता जायेगी और वह जेल की सलाखों के पीछे होगा। 
    
एक तरफ इजरायली शासक वर्ग के भीतर कलह बढ़ती जा रही है और दूसरी तरफ इजरायली सत्ता के विरुद्ध इजरायली व्यापक जन समुदाय का असंतोष और गुस्सा तेज होता जा रहा है। इन दोनों तरफ से ध्यान हटाने के लिए नेतन्याहू हुकूमत लगातार युद्ध का विस्तार करने की कोशिश कर रही है। लेकिन इसमें भी नेतन्याहू हुकूमत को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। रिजर्विस्ट (जिन्हें जरूरत पड़ने पर सैनिक सेवा में बुलाया जाता है) सैनिक भर्ती में आने से इंकार कर रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इंकार करने वालों की संख्या 50 प्रतिशत तक पहुंच गयी है। 
    
इसके बावजूद नेतन्याहू हुकूमत युद्ध का विस्तार करके ईरान के विरुद्ध युद्ध तक ले जाने की मंशा रखती है। वह इसमें अमरीकी साम्राज्यवादियों को शामिल करके ही आगे बढ़ सकती है। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने ईरान को धमकी भी दी है कि यदि वे वार्ता के लिए तैयार नहीं होते तो वे ईरान को तबाह कर देंगे। ईरानी सत्ता ने भी इसका जवाब दिया है कि वे किसी धमकी के दबाव में आकर कोई बात नहीं करेंगे। इधर अमरीकी साम्राज्यवादी किसी न किसी रास्ते से ईरानी सत्ता से परमाणु क्षमता सम्बन्धी बात करने की कोशिश कर रहे हैं। 
    
अगर इजरायली हुकूमत इस युद्ध का विस्तार ईरान तक ले जाने में सफल होती है तो यह एक व्यापक युद्ध की ओर जायेगा। इसमें यदि रूस और चीन भी शामिल हो गया तो यह तीसरे विश्वयुद्ध की ओर जाने की संभावना रखता है। 
    
लेकिन इजरायली हुकूमत को इसमें बाहरी व भीतरी दोनों दबावों का सामना करना पड़ रहा है। गाजापट्टी में हमास को खत्म करने और गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को खदेड़ने की तमाम कोशिशों और बातों के बावजूद उसे युद्ध विराम समझौते की मेज में बैठने के लिए विवश होना पड़ रहा है। अभी मिश्र ने एक समझौते का प्रस्ताव दिया है जिसे मोटे तौर पर इजरायल और हमास ने स्वीकार कर लिया है। यदि यह लागू हो जाता है तो गाजापट्टी में खाद्य सामग्री और राहत सामग्री आना शुरू हो जायेगी और इजरायली सेना की गाजापट्टी से हटने की प्रक्रिया तेज हो जायेगी। 
    
यदि ऐसा होता है तो तात्कालिक तौर पर यह एक अच्छी बात होगी। लेकिन दीर्घकालिक तौर पर जब तक यहूदी नस्लवादी सत्ता रहेगी तब तक फिलिस्तीनियों के स्वतंत्र राष्ट्र के सपनों पर हमला होता रहेगा और यह राष्ट्रीय मुक्ति युद्ध चलता रहेगा।

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