‘‘उदार लोकतंत्र’’ का लोकतंत्र विरोधी असली चेहरा

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पूर्वी यूरोप का एक देश रोमानिया है। वहां के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जार्जेस्क्यू को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है। वे धुर दक्षिणपंथी हैं। इसके पहले वे चुनाव में जीत की ओर बढ़ रहे थे। उस समय उनके चुनाव को, दूसरे चक्र में रोक दिया गया था। कारण यह बताया गया था कि वहां के चुनाव में रूस हस्तक्षेप कर रहा था। रूसी हस्तक्षेप का बहाना बनाकर पहले उनका चुनाव रोक दिया गया और अब उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। यह कृत्य ‘‘उदार लोकतंत्र’’ के मानने वालों ने किया। इस कृत्य का समर्थन यूरोपीय संघ ने किया। यूरोपीय संघ दुनिया भर में लोकतंत्र, मानवाधिकार और लोगों के जनतांत्रिक अधिकारों की हिमायत का दावा करता है, उसने जार्जेस्क्यू के चुनाव को रद्द करने की हिमायत की। 
    
इसी घटना का म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में जिक्र करते हुए अमरीकी उप राष्ट्रपति बेन्स ने यूरोपीय संघ को जनतंत्र विरोधी बताया था और कहा था कि यूरोप को खतरा किसी बाहरी ताकत रूस और चीन से नहीं है बल्कि खुद यूरोप के भीतर से है। 
    
जार्जेस्क्यू अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प की ही तरह घोर दक्षिणपंथी है। पूंजीवाद का कट्टर समर्थक है। जिस प्रकार ट्रम्प ने व्यापक मजदूर-मेहनतकश आबादी के भीतर पैदा हो रहे और बढ़ रहे असंतोष व गुस्से का इस्तेमाल करते हुए सत्ता हासिल की। उसी तरह रोमानिया के जार्जेस्क्यू ने भी ‘‘उदार लोकतंत्र’’ के हामियों द्वारा एकतरफ तो मजदूर मेहनतकश लोगों पर हमलों और दूसरी तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन के पक्ष में सैनिक व आर्थिक मदद करने का विरोध किया। लोगों का गुस्सा अपनी बढ़ती जा रही समस्याओं के कारण सत्ताधारियों के विरुद्ध था। इसका फायदा जार्जेस्क्यू ने उठाया। लेकिन युद्ध पिपासु रोमानिया के तथाकथित उदार लोकतंत्रवादियों को यह कतई बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने उनको चुनाव लड़ने से ही रोक दिया। 
    
इससे एक बात बहुत स्पष्ट हो जाती है  कि मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था के पास व्यापक मजदूर-मेहनतकश आबादी के लिए कुछ भी सकारात्मक देने के लिए नहीं है। यह उदार लोकतंत्र का नकाब तभी तक ओढ़े रहती है जब तक इसके लिए कोई खतरा नहीं होता। जार्जेस्क्यू खुद इस व्यवस्था के लिए खतरा नहीं हैं। लेकिन वे लोक लुभावन नारों और वायदों से जिस व्यापक आबादी को संबोधित कर रहे थे, वह मौजूदा व्यवस्था के लिए खतरा बन सकती थी। 
    
जब एक बार मजदूर-मेहनतकश आबादी स्वतंत्र रूप से जागरूक, संगठित और गोलबंद होना शुरू कर देगी तो इन सभी पूंजी के चाकरों का असली दानवी चेहरा साफ-साफ दिखाई पड़ने लगेगा। नहीं तो हर कुछ सालों के अंतराल के बाद कोई ट्रम्प या कोई जार्जेस्क्यू लोगों की आंखों में धूल झोंक कर सत्ता में आकर पूंजी के मालिकों की सेवा करता रहेगा। 
    
यही ‘‘उदार लोकतंत्र’’ का सारतत्व है। 

आलेख

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भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।