छात्रों के संघर्ष की चिंगारी से जब संसद में धुआं उठा

/chatron-ke-sangharsh-ki-chingaari-se-jab-sansad-mein-dhuan-uthaa

सर्बिया में 1 नवंबर 2024 को नोवी सैड रेलवे स्टेशन पर एक कैनोपी गिरने से 15 लोगों की मौत हो गई थी। इसके विरोध में 3 नवंबर 2024 को छात्रों ने 15 मिनट सड़क जाम कर मरे हुए लोगों के लिए मौन रखा था। देखते ही देखते विरोध का यह रूप पूरे देश में फैल गया। बढ़ते दमन के साथ विरोध प्रदर्शन बढ़ता गया। पुनः निर्मित स्टेशन में हुई दुर्घटना के कारण भ्रष्टाचार, निर्माण के दस्तावेजों को सार्वजनिक करने और मृतकों को न्याय की मांग बढ़ती गई। 4 मार्च 2025 को सर्बिया की संसद में विपक्षी नेता प्रदर्शनकारियों के समर्थन में उतरे। संसद में नारेबाजी, तख्ती-बैनर के साथ स्मोक बम (बिना आवाज के धुआं छोड़ने वाले बम) इस्तेमाल हुए। छात्रों के नेतृत्व में आम मेहनतकश जनता के प्रदर्शन जारी हैं।
    
इन प्रदर्शनों का नेतृत्व विश्वविद्यालय के छात्र कर रहे हैं। छात्रों ने सचेत तौर पर विपक्षी दलों, सरकारी सहायता प्राप्त एन.जी.ओ. आदि को आंदोलन के नेतृत्व से दूर रखा है। छात्रों के दमन के बाद विश्वविद्यालय में छात्रों ने कब्जा करने, नियंत्रण कायम करने के कदम उठाए हैं। उच्च शिक्षा का बजट बढ़ाने की मांग भी प्रदर्शनों के साथ जुड़ गई। साथ ही आमजनों से भी अपनी मांगों को उठाने का आह्वान किया गया है। छात्रों को समाज से व्यापक समर्थन मिल रहा है। खदान मजदूर, किसान, बस ड्राइवर, शिक्षा कर्मियों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, वकीलों, पूर्व सैनिक, आदि का इस आंदोलन को समर्थन है। फरवरी 2025 तक प्रदर्शन सर्बिया के 276 शहरों तक पहुंच गया जिनमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हो रहे हैं। विरोध के तरीकों में आम हड़ताल, संस्थानों पर नियंत्रण, सिविल नाफरमानी, सड़क जाम, शांति मार्च जैसे तरीके प्रमुख हैं।
    
सरकार की आम जनता के प्रति जवाबदेही बनाने, भ्रष्टाचार के दोषी मंत्रियों के इस्तीफे, प्रदर्शनकारी छात्रों-शिक्षकों का दमन करने के दोषी अधिकारियों की बर्खास्तगी-आपराधिक मुकदमे चलाने, शिक्षा बजट बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने की मांगें प्रमुख हैं।
    
4 मार्च को संसद सत्र हुआ जिसमें इन मुद्दों पर बात होनी तय थी। सरकार ने सत्र शुरू होने पर मुद्दे बदल दिए। संसद के बाहर छात्रों का शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा था। जिसके दबाव में विपक्षी पार्टी के सांसद सदन में सरकार के विरोध में उतर आए। पूंजीवादी लोकतंत्र में आम मेहनतकश जनता के मुद्दों (मौत जैसे गंभीर मामले भी) पर सरकारों का रुख तानाशाही वाला रहता है। यही सर्बिया में भी देखने को मिल रहा है।
    
छात्र नीचे से बदलाव की बात कर रहे हैं। सर्बिया में छात्रों का वर्तमान संघर्ष; श्रीलंका, केन्या, बांग्लादेश जैसे; संघर्षों की ही एक कड़ी है। यह बार-बार साबित करता है कि वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था को जल्द से जल्द बदले जाने की जरूरत है। जहां पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शासक इसे फासीवादी तबाही की ओर ले जाना चाहते हैं वहीं आम मेहनतकश जनता अपने लिए सच्चे लोकतंत्र की ओर। मेहनतकश जनता के लिए सच्चा लोकतंत्र सिर्फ समाजवाद है।

आलेख

/samraajyvaadi-comptetion-takarav-ki-aur

ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

/india-ki-videsh-neeti-ka-divaaliyaapan

भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

/bharat-ka-garment-udyog-mahila-majadooron-ke-antheen-shoshan-ki-kabragah

भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।