अमरीका-यूक्रेन वार्ता से ठीक पहले रूस पर यूक्रेन के ड्रोन हमले

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यूक्रेन ने रूस के भीतर अब तक के सबसे बड़े ड्रोन हमले किये हैं। रूस का कहना है कि उसकी वायु रक्षा प्रणालियों ने 337 ड्रोनों को मार गिराया है। इसके बावजूद, राजधानी मास्को और रूस के विभिन्न क्षेत्रों में ये हमले हुए हैं। इन हमलों में कई लोग मारे गये हैं और घायल हुए हैं तथा कई इमारतों को नुकसान पहुंचा है। ये हमले ऐसे समय में हुए हैं जब अमरीका और यूक्रेन के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के बारे में बात होने वाली थी। यह समझा जाता है कि जेलेन्स्की किसी न किसी तरह इस युद्ध को जारी रखना चाहते हैं और उनकी इस चाहत को हवा यूरोपीय संघ दे रहा है। जेलेन्स्की शांति वार्ता या युद्ध विराम को तोड़ने की जिम्मेदारी रूस पर डालना चाहते हैं। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि रूसी साम्राज्यवादियों के साथ अपने सम्बन्ध सामान्य बना लें। यह जानकर कि तमाम कोशिशों के बावजूद वे रूस को इस युद्ध में नहीं हरा पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में शांति की बात करके वे अपनी संभावित हार से बचना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने पहले जेलेन्स्की और यूरोपीय संघ के नेताओं फ्रांस के मैक्रां, इंग्लैण्ड के स्ट्रार्मर और पोलैण्ड के डूडा को अपमानित और नाराज किया। जेलेन्स्की की फौजी सहायता को आंशिक तौर पर रोका और रूस की खुफिया जानकारी देने की प्रणाली पर रोक लगायी। इसके बाद जेलेन्स्की ट्रम्प की धमकी के सामने झुक गये और शांति वार्ता के लिए राजी हो गये। 
    
इस वार्ता से पहले अमरीकी प्रतिनिधि मार्क रूबियो ने एक बयान में स्पष्ट कर दिया था कि यूक्रेन को 2014 की स्थिति को वापस पाने की उम्मीद नहीं करना चाहिए। डोनेस्क, लुहांस्क, जोपारिजिया और खेरसान की तथा क्रीमिया को वापस लेने की मांग नहीं करनी चाहिए। यह ज्ञात हो कि इन इलाकों को रूस ने अपने में विलय करा लिया है। जेलेन्स्की ने ये ड्रोन हमले इसीलिए कराये हैं कि यह वार्ता शांति स्थापित कराने में फैसलाकुन न बन सके। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी इस बात को समझते हैं। रूसी साम्राज्यवादियों के साथ वे समझौता करने के लिए अपने यूरोपीय सहयोगियों और नाटो को भी नाराज करने को तैयार हैं। वे जानते हैं कि यूक्रेन-रूस युद्ध को समाप्त करके वे रूसी साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर यूक्रेन, रूस और अफ्रीका आदि स्थानों पर संसाधनों को लूटने में ज्यादा कारगर हो सकते हैं। जेलेन्स्की को वे पहले ही कह चुके हैं कि अपने हथियारों और आर्थिक मदद के एवज में उन्हें यूक्रेन की खनिज सम्पदा पर नियंत्रण चाहिए। जेलेन्स्की पहले ही बंदरगाहों और अन्य सम्पदाओं पर इंग्लैण्ड के साथ 100 वर्ष का करार कर चुके हैं। इन सब बातों से यह स्पष्ट है कि अमरीकी साम्राज्यवादी और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादी यूक्रेन की क्षेत्रीय अखण्डता और आजादी की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे बल्कि उन्हें यूक्रेन के साधन स्रोतों पर कब्जा करना था और रूस को घेर कर उसे कमजोर करना था। 
    
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रूस ने यूक्रेन के करीब 20 फीसदी इलाके पर कब्जा कर लिया और उसका विजय अभियान जारी है। यूरोपीय संघ के देशों को इस युद्ध की वजह से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। इस समय रूस विजय अभियान में है। उसका शांति वार्ता में पलड़ा भारी होगा। अगर यह शांति वार्ता सफल होती है तो रूस पर लगे तमाम प्रतिबंध हटेंगे या कम होंगे। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां फिर से रूस में निवेश करने आयेंगी और रूसी साम्राज्यवादियों का प्रभाव पहले से ज्यादा बढ़ेगा। 
    
जेलेन्स्की 30 दिन का एक अस्थायी युद्ध विराम का प्रस्ताव अमरीकियों के सामने रख रहे हैं और इसके बदले में वे आधुनिक हथियार और वायु रक्षा प्रणालियां अमरीकी साम्राज्यवादियों से चाहते हैं। जबकि रूसी साम्राज्यवादी अपनी शर्तों पर स्थायी शांति चाहते हैं।
    
यहां रूस का पलड़ा भारी है। देखना यह है कि अमरीकी साम्राज्यवादी कैसा समझौता करवाते हैं और कितना खुद हासिल कर पाते हैं।

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