
दद्दा, चलो कुम्भ चलें! क्या बढ़िया मौका है। क्या बढ़िया अवसर उपलब्ध कराया है योगी जी ने! हां, देखिये न, अवाम की आस्थाओं का सरकार कितना ख्याल रखती है! ध्यान है उसे लोगों का, तभी तो उसने यात्रा के विशेष इंतजाम किये थे। इलाहाबाद कुंभ के लिए स्पेशल रेलें चलवायीं थीं। पिछले पचहत्तर साल में क्या किसी सरकार ने ऐसा किया? किसी रहनुमा ने लोगों की आस्थाओं की कद्र की? मगर आज तो.....!
आप फिर भी उत्सुक नहीं! समय नहीं निकाल पा रहे तीर्थ-यात्रा के लिए! बस वही काम का रोना! आर्थिक नुकसान की चिंता। जिंदगी निकल गयी कमाते-कमाते! कल दुनिया से भी अलविदा हो जाओगे। थोड़ा घूम-फिर लो। अवसर मिला है तो उसका लाभ उठा लो। देख लो अपनी आंखों से दुनिया। ये देश भी, जिस पर हम गर्व करते हैं। फिर आजकल तो कुंभ चल रहा है।
दद्दा, कुंभ को लेकर आपके दिमाग में कोई कौतूहल नहीं! क्यों, डर गये क्या? लगता है आपने सोशल मीडिया देख लिया! कहीं आपने कुंभ की अव्यवस्था देख ली! कहीं आपकी नजरें आमजन की परेशानी के दृश्यों से दो-चार हो गयीं। देख लिए आपने सिर पर गठरी लादे पैदल चलते लोग। घंटों का सफर ! बुजुर्गों के लिए 15-20 किलोमीटर पैदल चलना क्या आसान होता है! और टैम्पो-टैक्सी वालों को वह 150-200 रुपये दे ही नहीं सकता! कैसे देगा? आज मजदूर की दिहाड़ी कितनी है? मनरेगा में भी दिहाड़ी 200 रुपये से ज्यादा नहीं! सो आमजन के तनाव को क्या समझा नहीं जा सकता!
लोगों की व्यथा इतनी ही नहीं थी। निजी वाहनों से भी लोग यात्रा पर थे! देहात से तो लोग ट्रैक्टरों में भर-भर कर आ रहे थे। छोटे ट्रकों में भी! वह भी खाने-पीने की व्यवस्था के साथ। पर यहां तो जाम में ही 24-24 घंटे गुजर गये! सो घर से लाया हुआ खाना-पानी कब तक चलता! सोचिये, भूख से उनकी क्या हालत हुई होगी? मगर होटलों के परांठे का दाम 400 रु. सुनकर तो उनकी भूख ही भाग गयी होगी!
पर इसका मतलब यह हरगिज नहीं कि श्रद्धालु मायूस हो गये। टैक्सी, आटो वालों की मनमानी ने उन्हें हतोत्साहित कर दिया! नहीं, बिल्कुल नहीं! अगर हतोत्साहित होते तो क्या आत्माराम पटेल जैसे लोग, जो कि दूर महाराष्ट्र से आये थे, उन्हें सुरक्षा बलों की सलाह रास नहीं आ जाती! वे घर वापस लौटने को तैयार नही हो जाते!
पर नहीं। श्रद्धा चीज ही ऐसी है। और भक्त छोटी-मोटी परेशानी से हार नहीं मानते! और दिमागी कसरत करने की तो वे जरूरत ही नहीं समझते। सो शासन-प्रशासन के लोग ही काहे सतर्कता बरतें! आमजन की परेशानी का ख्याल कर वे ही क्यों दुबले हों!
फिर हमारी पुलिस तो कुछ ज्यादा ही जिम्मेदार है! और उत्तर प्रदेश पुलिस की तो कुछ पूछिये ही मत ! मशहूर है वह बुलडोजर के लिए। वह जनता को सबक सिखाने के लिए जानी जाती है! उ. प्र. के उप-चुनाव में तो वह पिस्तौल ताने खड़ी थी। मतदाताओं को वोट न डालने के लिए धमका रही थी! सो वह अवाम पर लाठी चलाने में ही अपना दिमाग क्यों लगाये?
.......और फिर दिमाग लगाने की जरूरत तो वहां पड़ती है, जहां कोई जबाब-तलबी हो! उ.प्र में कितने फर्जी एनकाउण्टर हुए, कितने निर्दोष गोली के शिकार बनाये गये, क्या कोई जांच हुई? सुना है, किसी दोषी को सजा हुई हो! सियासी गलियारों तक में हलचल नहीं होती! सो प्रयागराज के कुंभ में लाठी चार्ज के बाद की स्थिति पर कोई क्यों विचार करे?
फिर सामने आमजन ही तो थे! गांव से आये भोले-भाले लोग! बस्तियों से आये आमजन! भला उनकी क्या चिंता? वे तो रोज ही उनके निशाने पर रहते हैं! रोज ही खाते हैं गालियां-गोलियां! उन्हें कौन जबाब-तलब करता है। सो अधिकारी कुंभ में ही काहे दिमागी कसरत करते? बेशक वृद्धजन जिंदगियों से हाथ धो बैठे। कितने ही अधेड़ अपंग हो गये! भीड़ के पैरों तले कुचल कर कितनी ही महिलाओं ने जान गंवा दी, मगर धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जैसे लोग उन्हें ‘मोक्ष’ को प्राप्त होना बता रहे हैं। ये वही बाबा हैं जो कुंभ न जाने वालों को देशद्रोही बता रहे थे! मगर कुंभ की अव्यवस्था पर इनकी जुबां हिली? नहीं हिल सकती! क्योंकि ये बाबा नहीं, चापलूस है! और चापलूसों में नैतिक बल नहीं होता!
फिर ये तो बाबा से ज्यादा मजमेबाज लगते हैं! हां दद्दा, इन्हें ही धीरेन्द्र शास्त्री के नाम से जाना जाता है। मशहूर हैं ये लोगों का भविष्य बताने के लिए! सुर्खियों में रहने के लिए भी ये मशहूर रहे हैं! भक्तों के सिर पर लात मारकर ये आशीर्वाद देते हैं। पर आजकल हिन्दू राष्ट्र की पैरोकारी कर रहे हैं! ये मजहब विशेष के प्रति जहर उगलने के लिए जाने जाते हैं! और हां, जो अल्पसंख्यकों को निशाना न बनाये, भला वह राष्ट्रभक्त कैसे हो सकता है? और ऊल-जुलूल बकने के लिए भी देशभक्त, मतलब मोदी भक्त होना जरूरी है! और मोदी, योगी भक्त ही पूरन जोशी बन सकते हैं! और धीरेन्द्र ब्रह्मचारी भी!
हां, तभी तो वह रोज ऊल-जुलूल बक रहे हैं! और छिड़क रहे हैं भगदड़ में मारे गये लोगों के परिजनों के घावों पर नमक मगर व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों के लिए क्या उसकी जुबान खुली? क्या उसने सरकार को कटघरे में खड़ा किया? चेताया सरकार को?
फिर अखबारों के तो कहने ही क्या? और हिन्दी अखबार तो आजकल भक्ति में रंग गये हैं। वह भी हिन्दुत्व से ज्यादा पूंजी की भक्ति में! तभी तो सैकड़ों लोगों की मौतें उनके लिए खबर नहीं बनीं! हां, कुंभ, मौनी अमावस्या की भगदड़ को दैनिक भास्कर के अलावा किसने प्रमुखता दी? दैनिक जागरण जैसे अखबारों ने तो उधर से नजरें ही फेर लीं! गर नहीं तो क्या उसने बताया, कौन किस अस्पताल में है? कहां हैं मृतकों की लाशें? हताहतों की संख्या पर तो वैसे भी उनके पास मौन साधने के अलावा विकल्प ही नहीं था! पर दैनिक जागरण ने तो पूरी खबर को ही अनदेखा कर दिया!
क्या पैरोकारी है हिन्दुत्व की! मस्जिदों में मंदिर खोजने वाले, जो खुद को हिन्दुत्व का पैराकार भी मानते हैं, पीड़ितों के साथ भी खड़े नहीं हो सके! कुंभ में मरने वाले क्या हिन्दू नहीं थे? या कि फिर वे हिन्दू तो थे, पर विशिष्ट वर्ग के नहीं थे!
सब सरकार की खिदमत में लगे हैं! और पूंजी की सेवा में भी! सच नहीं दिखा सकते! अगर सच दिखाने की हिम्मत होती, तब तो ‘अमुक दिन, इतने करोड़ लोगों ने डुबकी लगायी, बताने वाले, भगदड़ में मारे गये कुछ सैकड़ा लोगों की संख्या नहीं गिन पाये?
खैर, अभी तो कुंभ चल रहा है!
-कमलेश ‘कमल’