योगी सरकार का मजदूर महिलाओं पर नया हमला

/yogi-sarkar-ka-workers-mahilaon-par-naya-hamalaa

8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर महिला दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर योगी सरकार ने मजदूर महिलाओं को तोहफा दिया है। यह तोहफा है मजदूर महिलाओं को खतरनाक उद्योगों में काम करने की छूट देना। अब तक 13 ऐसे उद्योग थे जिसमें महिलाओं को काम पर लगाने पर प्रतिबंध था लेकिन अब यह प्रतिबंध हटाने की तैयारी की जा रही है। ज्ञात हो कि रात में महिलाओं से काम कराने का प्रतिबंध पहले ही ज्यादातर राज्य सरकार हटा चुकी हैं। 
    
उत्तर प्रदेश कारखाना नियमावली 1950 के तहत नियम 109 के विभिन्न शेड्यूलों के तहत महिलाओं को खतरनाक उद्योगों में काम पर लगाने पर प्रतिबंध था। शेड्यूल 2 में महिलाओं को टैंक पर, शेड्यूल 3 में कच्चे आक्साइड पर, शेड्यूल 4 में कांच के कारखाने में उच्च तापमान पर, शेड्यूल 6 में पेट्रोलियम व गैस उत्पादन वाली बिल्डिंग में प्रवेश पर, शेड्यूल 7 में खतरनाक पेट्रोलियम उत्पाद कारखाने में, शेड्यूल 8 में सैंड ब्लास्टिंग के काम में, शेड्यूल 10 में लेड (शीशा) के काम में, शेड्यूल 12 में हाइड्रोक्लोराइड एसिड और एच सी एल, अमोनिया प्लांट व जस्ता वाली भट्ठी पर, शेड्यूल 13 में महिला और पुरुष खतरनाक कारखानों में एक साथ काम पर, शेड्यूल 20 में विलयन प्रोजेक्शन में, शेड्यूल 21 में मैगनीज में, शेड्यूल 22 में कीटनाशक के कार्यों में महिलाओं को काम पर नहीं लगाया जा सकता था। 
    
उत्तर प्रदेश के सचिव ने शासन स्तर पर हुई वार्ता में कहा कि जब वियतनाम में महिलाओं के नियोजन पर कोई प्रतिबंध नहीं है तो फिर भारत में क्यों हो। भारत और वियतनाम सभी जगह महिलाएं समान हैं और पुरुष के साथ कदमताल करते हुए कारखानों में काम कर सकती हैं। मुख्य सचिव ने यह भी कहा कि महिलाओं को पी पी ई (विद्युतीय व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) एवं ओ एस एच (व्यवसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य) के मानकों के तहत सुरक्षा देते हुए रोजगार पर लगाया जा सकता है। 
    
महिलाओं को जोखिम भरे स्थल पर काम कराने के सम्बन्ध में भारतीय मजदूर संघ (यह आर एस एस का औद्योगिक मजदूरों का संगठन है) के महामंत्री का बयान भी गौर करने लायक है। वे कहते हैं ‘रोजगार की दृष्टि से खतरनाक कारखानों में महिलाओं को काम पर रखने में कोई हर्ज नहीं है। पर यह ध्यान देना ही होगा कि अत्यधिक जोखिम वाले स्थल में प्रत्यक्ष तैनाती से बचना चाहिए। सुरक्षा एवं संरक्षा का प्रशिक्षण एवं उपकरण की उपलब्धता भी सुनिश्चित होनी चाहिए। इस फैसले पर अमल से पहले कारखाना निदेशक एवं श्रमायुक्त संग ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों की बैठक होनी चाहिए।’ 
    
महिलाओं को खतरनाक उद्योगों में काम पर लगाने के लिए इस बात का खूब प्रचार किया जा रहा है कि उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखा जाए। आज यह बात जगजाहिर है कि कारखानों में मजदूरों की सुरक्षा की खुली अवहेलना की जा रही है। मजदूरों को बिना सुरक्षा उपकरण के खतरनाक काम में लगा दिया जा रहा है। फलस्वरूप आये दिन मजदूर कार्यस्थलों पर हो रही दुर्घटनाओं में मारे जा रहे हैं। और यह सब तब है जब मजदूरों की सुरक्षा के लिए कानून बने हुए हैं। लेकिन क्या पूंजीपति इन कानूनों का खुला उल्लंघन नहीं कर रहे हैं। तो फिर उनसे कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे महिलाओं के मामले में भी सुरक्षा का बंदोबस्त करेंगे। 
    
पहले महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर रात की पाली में काम कराने का कानून पास कर दिया गया और अब खतरनाक उद्योगों में काम करने से प्रतिबंध हटाना सिर्फ और सिर्फ इसलिए है ताकि पूंजीपतियों को सस्ती श्रम शक्ति उपलब्ध करवायी जा सके। और पुरुष मजदूरों को कम मजदूरी में काम करने को मजबूर किया जा सके। यह बात आज स्पष्ट है कि महिला मजदूरों को पुरुष मजदूरों से कम मजदूरी दी जाती है। 
    
आज पूंजीपति वर्ग मजदूरों के श्रम की खुली छूट चाहता है। इसलिए तमाम श्रम कानूनों में परिवर्तन कर उन्हें पूंजीपतियों के मन माफिक बदला जा रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी पूंजीपतियों की सेवा का कोई अवसर खोना नहीं चाहती है।

 

यह भी पढ़ें :-

रात्रि पाली में भी काम करेंगी महिलायें

आलेख

/samraajyvaadi-comptetion-takarav-ki-aur

ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

/india-ki-videsh-neeti-ka-divaaliyaapan

भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

/bharat-ka-garment-udyog-mahila-majadooron-ke-antheen-shoshan-ki-kabragah

भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।