कांग्रेस में सफाई और कांग्रेस का सफाया

/congress-mein-safaai-aur-congress-kaa-safaya

पिछले दिनों राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी के भीतर बैठे भाजपाईयों के खिलाफ एक जुबानी जंग छेड़ी। और यह उन्होंने किया गुजरात में जहां एक अरसे से समूची कांग्रेस पार्टी भाजपा की अनुगामी बनी हुयी है। राहुल गांधी की इस जुबानी जंग से वाम-उदारवादी खुश हैं, हालांकि उन्हें आशंका भी है कि राहुल गांधी अपने अभियान में सफल होते हैं या नहीं। 
    
सच्चाई यह है कि यदि राहुल गांधी अपने अभियान में सचमुच सफल हो जाते हैं तो स्वयं कांग्रेस पार्टी का ही सफाया हो जायेगा। आज कांग्रेस पार्टी में ऊपर से नीचे तक उन्हीं लोगों की भरमार है जो ‘नरम हिन्दुत्व’ वाले हैं। हों भी क्यों न? अभी कुछ साल पहले तक यह कांग्रेस पार्टी की आधिकारिक लाइन थी। तब राहुल गांधी अपना जनेऊ दिखा रहे थे और मंदिरों की दौड़ लगा रहे थे। 
    
और यह सब ताजा-ताजा नहीं था। ‘नरम हिन्दुत्व’ की लाइन इंदिरा गांधी के जमाने से शुरू हुयी थी। संघियों के राम मंदिर आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी ने इसे संघियों से छीनने की कोशिश की थी। बाद में जैसे-जैसे संघी मजबूत होते गये वैसे-वैसे कांग्रेस पार्टी और ज्यादा हिन्दूवादी होती गयी और एक समय आकर उसने ‘नरम हिन्दुत्व’ को आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया। उसने तय किया कि उसे ‘हिन्दू विरोधी’ नहीं दिखना है। उसे मुसलमानों के साथ खड़ा नहीं दिखना है। उसे संघियों और संघी सरकार द्वारा मुसलमानों पर ढाये जा रहे जुल्म पर चुप्पी साध लेनी है। उसे धर्मनिरपेक्षता का नाम भी नहीं लेना है। 
    
आज जब इस लाइन का परिणाम स्वयं कांग्रेस के लिए भी स्पष्ट है तब वह कुछ ‘कोर्स करेक्शन’ करना चाहती है यानी अपने रास्ते में कुछ सुधार करना चाहती है। राहुल गांधी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और सावरकर पर नाम लेकर हमला करते हैं। वे संघ की विचारधारा पर हमला करते हैं। लेकिन उनकी ये बातें स्वयं कांग्रेसी नेताओं को नागवार गुजरती हैं। उन्हें लगता है कि इनसे हिन्दू और नाराज होंगे और कांग्रेस से दूर भागेंगे। नतीजतन वे इन सब पर चुप्पी साध लेते हैं। कुछ तो सीधे-सीधे इसके खिलाफ जाते दिखते हैं। 
    
कांग्रेस पार्टी की यह दुर्गति अकेले उसकी दुर्गति नहीं है। अन्य छोटी-बड़ी पार्टियों का भी यही हाल है। भारत की राजनीति में हिन्दू फासीवादियों के मजबूत होते जाने के साथ सभी ने उसकी विचारधारा के सामने आत्मसमर्पण किया है। धर्म निरपेक्षता के सवाल पर सब पहले ही काफी ढुलमुल थीं। अब तो सबने एक तरह से तौबा कर ली है। अब उनके लिए धर्म निरपेक्षता केवल इतनी बची है कि स्वयं उनके शासन के दौरान मुसलमानों पर जुल्म कम हों। 
    
हिन्दू फासीवादियों को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने रणकौशलात्मक लचीलेपन का परिचय देते हुए भी अपनी मूल विचारधारा और अपना लक्ष्य कभी नहीं छोड़ा। वे अल्पसंख्यक विरोध (खासकर मुसलमान विरोध) तथा हिन्दू राष्ट्र पर डटे रहे। इसके ठीक विपरीत उनकी विरोधी पार्टियों ने विचारधारा के मामले में हमेशा अवसरवाद का परिचय दिया। कुछ ने तो अवसरवाद को ही अपनी विचारधारा घोषित कर दिया। 
    
कांग्रेस पार्टी ने औपचारिक तौर पर यह कभी नहीं किया पर इंदिरा गांधी के जमाने से ही असल में वह उसी पर अमल करती रही। परिणाम यह निकला कि ऊपर से नीचे तक उसमें हर तरह के अवसरवादियों की भरमार हो गयी जिन्हें सत्ता का लालच ही पार्टी के भीतर रोक सकता था। स्वयं हर तरह के पोंगापंथ में विश्वास करने वाले इन लोगों के लिए कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाना एकदम मामूली बात थी। यदि राहुल गांधी इन लोगों को लेकर हाय-तौबा कर रहे हैं तो यह ज्यादा से ज्यादा उनकी राजनीतिक नादानी को ही दिखाता है। 
    
कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने ही पिछले पचास साल में पार्टी को जहां पहुंचाया है वहां से उसे उबारना भागीरथ प्रयास ही है। बहुत छूट देकर बात की जाये तब भी यही कहा जायेगा कि इस प्रयास की सफलता ही तात्कालिक तौर पर पार्टी के अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर देगी। क्या भविष्य में किसी संभावित पुनरुत्थान के लिए राहुल गांधी और उनके समर्थक इस जोखिम को उठा पायेंगे। अभी तक का उनका रिकार्ड इसका उत्तर ‘न’ में ही देता है। 

आलेख

/samraajyvaadi-comptetion-takarav-ki-aur

ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

/india-ki-videsh-neeti-ka-divaaliyaapan

भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

/bharat-ka-garment-udyog-mahila-majadooron-ke-antheen-shoshan-ki-kabragah

भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।