अवैध प्रवासी मजदूर और उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की पूंजीपरस्त नीतियां

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बीते 5 फरवरी 2025 को अमेरिका से 104 भारतीय मजदूरों/अवैध प्रवासियों को हाथ-पैर में जंजीरों से बांधकर अमेरिकी सैन्य विमान द्वारा भारत के अमृतसर हवाई अड्डे पर लाया गया। इन अप्रवासी मजदूरों में 33 हरियाणा, 33 गुजरात, 30 पंजाब से एवं अन्य उत्तर प्रदेश व चण्डीगढ़ से हैं। जिस तरीके से इन भारतीय मजदूरों को अमेरिका से लेकर आया गया है वह किसी भी संप्रभु देश के लिए बेहद शर्मनाक है।  
    
भारतीय मीडिया से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में अमेरिका द्वारा अवैध प्रवासी मजदूरों को इस तरह भेजे जाने की खूब चर्चा हो रही है। राष्ट्रपति ट्रंप ने तो चुनाव के दौरान ये वादा ही किया था कि वह राष्ट्रपति बनते ही अवैध प्रवासी मजदूरों को अपने देश से निकाल देंगे।
    
अब महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में अमेरिका से भेजे जा रहे अवैध प्रवासी मजदूरों पर जो बातें हो रही हैं वह सिर्फ इस पर हो रही हैं कि अमेरिका इन प्रवासी मजदूरों को जंजीरों में बांधकर सैन्य विमान में अपराधियों की तरह भेज रहा है। यहां तक कि देश का उदारवादी मीडिया भारत सरकार की इसलिए आलोचना कर रहा है कि मोदी सरकार को अपना विमान भेजकर इन अवैध प्रवासी मजदूरों को सम्मान के साथ लेकर आना चाहिए था। न तो मुख्य धारा का मीडिया और न ही उदारवादी मीडिया अवैध प्रवासी मजदूरों की असल समस्या के कारणों में जा रहा है। मीडिया के इस फर्जी शोर शराबे में उन उदारीकरण-निजीकरण -वैश्वीकरण की पूंजीपरस्त नीतियों पर पर्दा डाला जा रहा है जिसके लिए कांग्रेस-भाजपा से लेकर तमाम पूंजीवादी पार्टियां जिम्मेदार हैं। ये पूंजीपरस्त नीतियां ही हैं जो आजकल सभी देशों में नौजवानों को उनके देश में स्थाई नौकरी से वंचित कर अपनी जान जोखिम में डाल कर दूसरे देशों में अच्छी नौकरी पाने की इच्छा के लिए मजबूर कर रही हैं। 
    
भारत में उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की इन पूंजीपरस्त नीतियों को लागू हुए 3 दशक से ज्यादा का समय हो गया है। इन पूंजीपरस्त नीतियों को उनकी पराकाष्ठा तक पहुंचाने का बड़ा श्रेय मोदी सरकार को जाता है। इन पूंजीपरस्त नीतियों ने मजदूर-मेहनतकश अबादी को गर्त में धकेल दिया है। मजदूरों के पुराने 44 केन्द्रीय श्रम कानूनों को खत्म कर मोदी सरकार ने 4 लेबर कोड्स में समेटकर पूंजीपति वर्ग को श्रम की लूट की खुली छूट देते हुए स्थाई नौकरी के स्थान पर अस्थाई, नीम ट्रेनी, प्रशिक्षण के नाम पर मजदूरों को भर्ती करने की छूट व स्कीम मजदूरों से मशीनों पर कार्य कराने की पूंजीपतियों को छूट देकर ‘‘रखो व निकालो’’ की छूट के साथ गैर कानूनी प्रावधानों को कानूनी बनाकर महिलाओं के सस्ते श्रम को अब रात्रि पाली में लूटने की छूट दे दी है। हर देश में शासक वर्ग पूंजीपतियों के पक्ष में नीतियों को तेजी से लागू कर कल्याणकारी राज्य के ढ़ांचे को खत्म किया जा रहा है। शिक्षा-स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च घटाया जा रहा है। सार्वजनिक उद्यम पूंजीपतियों को बेचे जा रहे हैं। स्थायी नौकरी की जगह ठेके की नौकरी को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन्हीं नीतियों का ही परिणाम है कि देश में 45 सालों की रिकॉर्ड तोड़ बेरोजगारी है। यह इन्हीं नीतियों का ही परिणाम है कि देश का नौजवान अवैध व वैध रूप से अमेरिका, कनाडा, इग्लैंड, आस्ट्रेलिया इत्यादि देशों में अच्छे रोजगार की तलाश में जा रहा है।  
    
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में यह मुद्दा बना था कि हरियाणा से काफी नौजवान गैरकानूनी/डन्की तरीके से 30 से 50 लाख रुपये लगाकर अपनी जान जोखिम में डालकर अच्छे रोजगार की तलाश में अमेरिका जाते हैं। इन नौजवानों का कहना था कि देश में लगातार स्थाई नौकरी के अवसर कम हो रहे हैं। सरकार ने सेना में भी ठेका प्रथा को लागू कर नौजवानों के भविष्य को अंधेरे में धकेल दिया है। मोदी सरकार ने सेना में 4 साल की ठेका/अग्निवीर योजना लागू कर स्थाई नौकरियों को खत्म कर दिया है। 
    
अमेरिका में प्रवासी मजदूरों को देश से निकालने का मुद्दा काफी समय से चर्चा का विषय रहा है। ऐसा नहीं है कि इन प्रवासी मजदूरों को अमेरिका अपने देश से निकाल देगा तो वह दुनिया में अपना एकछत्र राज कायम कर लेगा या फिर इससे अमेरिकी मजदूरों का कुछ भला होगा जैसा कि ट्रंप दावा कर रहा है।
    
अमेरिकी सरकार द्वारा इन अप्रवासी मजदूरों को उनके देशों में भेजकर कुछ समय के लिए भले ही वहां का मजदूर खुश हो सकता है लेकिन अमेरिकी सरकार का यह कदम वहां के मजदूर वर्ग के साथ-साथ दुनिया के मजदूर वर्ग के लिए दूरगामी तौर पर खतरनाक है। अमेरिका के पूंजीपति वर्ग के द्वारा मुनाफे के लिए स्वयं द्वारा पैदा किए गए आर्थिक संकट को अप्रवासी मजदूरों के संकट के रूप में प्रस्तुत कर मजदूरों को आपस में बांटने व लड़ाने के प्रयास हो रहे हैं। 
    
दरअसल उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की नीतियां पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने गिरते मुनाफे के संकट को हल करने को अपनायी नीतियों के तहत पूंजी को तो पूरी दुनिया में खुलेआम विचरने की छूट दे दी गयी पर श्रम को देश की सीमाओं में ही कैद रखा गया। गरीब मुल्कों में पूंजी के हमले से त्रस्त मजदूर या साम्राज्यवादी युद्धों से तबाह देशों के मजदूर जब चोरी छिपे अमीर देशों की ओर बेहतर जीवन की आस में जाने लगे तो सिर से पैर तक खून से सनी पूंजी उन पर हमलावर हो उठी। सभी विकसित देशों में अप्रवासी मजदूरों को देश का दुश्मन बता कर राजनीति करने वाली नस्लवादी-फासीवादी ताकतें फलने-फूलने लगीं। अप्रवासी मजदूरों पर हमले बोले जाने लगे। ट्रंप द्वारा अपमानजनक तरीके से प्रवासी मजदूरों को वापस भेजना इसी कड़ी का हिस्सा है। इस सबसे इन देशों के मजदूरों का कुछ भी भला नहीं होने वाला। जरूरत है कि मजदूर वर्ग देशी-प्रवासी विभाजन को धता बताकर एकजुट हो पूंजी के निरंकुश हमले का मुंहतोड़ जवाब दे। ट्रंप-मस्क के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शन इस दिशा में शुरूआत भर हैं। इन्हें और व्यापक बनाने की जरूरत है। 

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