मारुति मजदूरों के दमन का प्रतिरोध

/maruti-majdooron-ke-daman-kaa-pratirodh

गुरुग्राम/ 31 जनवरी को सैकड़ों श्रमिक सुबह डीसी कार्यालय पर शांतिपूर्वक एकत्र हुए थे। वे मारुति सुजुकी अस्थायी मजदूर संघ की समिति के सदस्यों, श्रम अधिकारियों और कंपनी प्रबंधन के साथ त्रिपक्षीय बैठक के लिए आए थे, जो 10 जनवरी को श्रम विभाग, गुरुग्राम में प्रस्तुत चार्टर आफ डिमांड्स पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी। पुलिस ने सूचित किया कि गुरुग्राम में धारा 144 लागू कर दी गई है और बड़ी संख्या में पुलिस बल ने श्रमिकों को डीसी कार्यालय के गेट से उठाना और खदेड़ना शुरू कर दिया। श्रमिक अदालत परिसर के अंदर एक पार्क में एकत्र हुए, लेकिन वहां भी पुलिस कार्रवाई जारी रही। फिर वे गुरुग्राम के कमला नेहरू पार्क में इकट्ठा हुए, लेकिन वहां भी पुलिस बल पहुंच गया। 
    
मारुति सुजुकी के अस्थायी श्रमिकों ने तीन दिनों में मानेसर और गुरुग्राम में पुलिस कार्रवाई के बावजूद असाधारण साहस और संकल्प दिखाया और पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया। प्रबंधन और पुलिस-प्रशासन लंबे समय से चल रही इस कार्रवाई के बावजूद श्रमिकों को डराने और उनके संघर्ष को रोकने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। 29 जनवरी को, मानेसर तहसील धरना स्थल से करीब 100 श्रमिकों को पुलिस ने उठा लिया और उन्हें 25 किलोमीटर दूर छोड़ दिया। जब श्रमिक मानेसर लौट रहे थे, तो पुलिस ने उन्हें फिर से रोक दिया। पुलिस ने तंबू, बैनर, बर्तन, भोजन और श्रमिकों की व्यक्तिगत वस्तुएं जब्त कर लीं। 
    
धारा 144 लागू होने के बावजूद, ‘‘30 जनवरी मानेसर चलो’’ के आह्वान पर हजारों अस्थायी श्रमिक मानेसर तहसील में एकत्र होने लगे। भारी पुलिस बल ने अलग-अलग स्थानों से श्रमिकों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया। रात तक 76 श्रमिक हिरासत में लिए जा चुके थे, जबकि अन्य को पुलिस बसों से धरना स्थल से दूर भेज दिया गया। इसके बावजूद, श्रमिक फिर लौट आए और गुरुग्राम और मानेसर में विभिन्न स्थानों पर रात बिताई।
    
मारुति सुजुकी मानेसर-गुड़गांव (हरियाणा) के अस्थाई और 2012 से बर्खास्त मजदूरों के दमन, मारुति प्रबंधन और हरियाणा सरकार के नापाक गठजोड़, मारुति सुजुकी द्वारा आवधिक रूप से अस्थाई मजदूर से काम कराने के अविधिक धंधे आदि के खिलाफ मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) द्वारा घोषित प्रतिवाद दिवस पर 14 फरवरी को रुद्रपुर स्थित श्रम भवन में प्रतिरोध सभा की गई और उप श्रम आयुक्त, उधम सिंह नगर के मार्फत हरियाणा के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजा गया। 
    
प्रदर्शन का आयोजन मासा के घटक संगठनों सेंटर फार स्ट्रगलिंग ट्रेड यूनियंस (सीएसटीयू) और इंकलाबी मजदूर केंद्र (आईएमके) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया, जिसमें श्रमिक संयुक्त मोर्चा, ऊधम सिंह नगर सहित सिडकुल की विभिन्न यूनियनों ने भागीदारी निभाई।
    
इस दौरान प्रेषित ज्ञापन के माध्यम से मारुति मज़दूरों का दमन बंद करने; बीएनएसएस की धारा-163 (पूर्व धारा-144) के दुरुपयोग पर रोक लगाने; मारुति मजदूरों पर दर्ज झूठे मुक़दमे वापस लेने; संघर्षरत मारुति के अस्थाई व बर्खास्त मजदूरों की न्यायसंगत मांगों का तत्काल समाधान करने;  टेम्परेरी वर्कर (TW), कान्ट्रैक्ट वर्कर (CW), स्टूडेंट ट्रेनी (MST) तथा ठेका, अप्रेंटिस, फिक्स टर्म, नीम ट्रेनी आदि गैरक़ानूनी प्रथा बंद करने; स्थायी काम पर स्थाई रोजगार और समान काम पर समान वेतन लागू करने; मज़दूरों के धरना-प्रदर्शन-हड़ताल करने के जनवादी अधिकार पर हमले बंद करने की मांग हुई।
    
इस दौरान वक्ताओं ने क्षोभ प्रकट करते हुए कहा कि मारुति सुजुकी के अस्थाई मजदूरों ने मारुति प्रबंधन के अन्यायपूर्ण कृत्यों को उजागर करते हुए जैसे ही अपनी मांगें बुलंद कीं, जापानी सुजुकी प्रबंधन के इशारे पर हरियाणा की भाजपा सरकार और उसका पूरा अमला मजदूरों के दमन पर उतर पड़ा। 30 जनवरी को ‘मानेसर चलो’ का आह्वान और शांतिपूर्ण प्रदर्शन होना था। इसको रोकने के लिए 29 जनवरी से ही गुड़गांव के प्रशासन और भारी पुलिस बल ने विगत चार माह से आईएमटी मानेसर तहसील पर बर्खास्त मारुति मजदूरों के चल रहे धरना स्थल को तहस-नहस करते हुए टेंट सहित मजदूरों के सारे सामान नष्ट या जब्त कर लिए। 30 जनवरी को भी पूरे दिन मजदूरों का दमन और गिरफ्तारियों का दौर चला। 
    
वक्ताओं ने कहा कि गुड़गांव सिविल कोर्ट ने कंपनी गेट और सीमा से 500 मीटर दूर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के श्रमिकों के अधिकार को मान्यता दी थी। इसके बावजूद प्रशासन मारुति प्रबंधन के इशारे पर बीएनएसएस की धारा 163 लगाकर मजदूरों का दमन करने लगा, जो घोर निंदनीय है।
    
यही नहीं, 31 जनवरी को मारुति सुजुकी अस्थायी मजदूर संघ, श्रम अधिकारियों और कंपनी प्रबंधन के साथ त्रिपक्षीय वार्ता होनी थी। लेकिन वहां भी बीएनएसएस की धारा 163 का दुरुपयोग करके मजदूरों पर पुलिस द्वारा लाठियां बरसाई गईं और गिरफ्तार करके प्रशासन ने सचेतन वार्ता भी नहीं होने दी।
    
वक्ताओं ने कहा कि देश की सबसे बड़ी कार उत्पादक कंपनी मारुति 83 प्रतिशत श्रम बल को अल्पकालिक अनुबंधों पर नियुक्त करती है। सरकार के संरक्षण में 7 महीने के अनुबंध पर टेम्परेरी वर्कर (TW), कान्ट्रैक्ट वर्कर (CW), स्टूडेंट ट्रेनी (MST), अप्रेंटिस आदि से कार्य कराने की गैर कानूनी प्रथा जारी है। अस्थाई पीड़ित मजदूर इसके खिलाफ एकजुट और आंदोलित हैं। वे स्थायी प्रकृति के काम पर स्थायी रोजगार, समान काम के लिए समान वेतन, सभी अस्थायी श्रमिकों के लिए 40 प्रतिशत वेतन वृद्धि, बोनस, आदि कानूनसम्मत मांग कर रहे हैं, वहीं 2012 से बर्खास्त मारुति मजदूर कार्यबहाली की मांग पर विगत 5 माह से संघर्षरत हैं।
    
श्रमिक नेताओं ने मारूति-सुजुकी के अस्थाई तथा बर्खास्त मजदूरों के प्रदर्शन व सभा तथा वार्ता को रोकने की कार्रवाई का कड़ा प्रतिवाद करते हुए कहा कि हरियाणा में मारुति सहित तमाम कंपनियां सीमित श्रम कानूनों को भी नहीं मानती हैं। नौकरशाही कोर्ट के आदेश के खिलाफ जाकर संविधान की धज्जियां उड़ा रही है। जबकि मजदूरों के अधिकारों के मामले में सरकार पूंजीपतियों के पक्ष में नग्नता के साथ खड़ी है। 
        -रुद्रपुर/गुड़गांव संवाददाता

आलेख

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

/gazapatti-mein-phauri-yudha-viraam-aur-philistin-ki-ajaadi-kaa-sawal

ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

/apane-desh-ko-phir-mahan-banaao

आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। 

/trump-ke-raashatrapati-banane-ke-baad-ki-duniya-ki-sanbhaavit-tasveer

ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है। 

/bhartiy-ganatantra-ke-75-saal

आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं?