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दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे एक्जिट पोल को सही साबित करने वाले रहे। दिल्ली की जनता ने इस चुनाव के जरिये बता दिया कि हिंदुत्व की राजनीति करने में बड़े मियां के आगे छोटे मियां कहीं नहीं ठहरते। कि राम के नाम पर जहर उगलकर वोट साधने वालों को हनुमान के नाम पर जहर उगलने वाले नहीं हरा पायेंगे।
दरअसल संघ-भाजपा का हिंदुत्व का रथ जैसे-जैसे बढ़ता गया वैसे-वैसे आम आदमी पार्टी खुद भी हिंदुत्व की राजनीति की ओर ढुलकती गयी। मसला चाहे दिल्ली दंगों का हो या फिर सीएए-एनआरसी विरोध का या फिर रोंहिग्या का सब जगह भाजपा के सुर में सुर मिलाकर आम आदमी पार्टी नाचती नजर आयी। जहां आप ने भाजपा के राम के बरक्स हनुमान पर अपना पेटेण्ट ठोंका वहीं दिल्ली चुनाव में भाजपा ने आप की तर्ज पर मुफ्त योजनाओं की घोषणा कर दोनों पार्टियों के बीच फर्क को कम कर दिया। अब दिल्ली की जनता के सामने बड़े व छोटे फासीवादी थे और उसने बड़े फासीवादी को चुना।
इन चुनावों में भाजपा ने आप को उसी के चहेते भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने का काम किया। शराब घोटाले-शीश महल के प्रचार में भारी पैसा बहाकर भाजपा केजरीवाल के चेहरे पर कालिख पोतने में सफल रही। आप के चेहरे से ईमानदारी का नकाब भाजपा ने नोंच डाला। फिर क्या था हमाम में सब नंगे खड़े थे और जनता ने उनमें से बड़े को चुन लिया।
इस चुनाव परिणाम ने दिखाया कि हिंदू धर्म के नाम पर राजनीति कर या खुद को हिंदू साबित कर चुनाव लड़ने वाले भाजपा को उसी की जमीन पर खड़े होकर मात नहीं दे सकते। पहले राहुल गांधी भी ऐसा करके मात खाते रहे हैं।
हालांकि चुनाव में आप व भाजपा के मतों में महज 2 प्रतिशत का फर्क रहा पर यह 2 प्रतिशत अंतर आप की गद्दी छीनने को अगर काफी रहा तो इसमें बड़ी भूमिका कांग्रेस को मिले 6 प्रतिशत मतों की भी रही। चुनाव में भाजपा को 45.6 प्रतिशत, आप को 43.6 प्रतिशत व कांग्रेस को 6 प्रतिशत मिल मिले। इन नतीजों ने दिखाया कि आप को गठबंधन न करने का घमण्ड ले डूबा। करीब 12-13 सीटों पर उसकी हार के अंतर से ज्यादा मत कांग्रेस को मिले।
वैसे संघी लाबी इस जीत से लोकसभा चुनाव की बेचैनी के बाद एक बार फिर खुश है। इस खुशी को सुदृढ़ करने के लिए वो केजरीवाल एण्ड कम्पनी को हर सबक सिखाने को तैयार है। केजरीवाल को फिर से उसी के मुद्दे भ्रष्टाचार पर घेरकर उसकी बची खुची जमीन भी खिसकाने की भाजपा तैयारी कर रही है।
केजरीवाल एण्ड कंपनी के सामने कठिन समय आ खड़ा हुआ है। उसके रथ के पहिये एक-एक कर भाजपा की ओर दरक रहे हैं। उसके नेता हनुमान का साथ छोड़ हनुमान जिसके भक्त थे उसकी भक्ति की ओर बढ़ रहे हैं। केजरीवाल एण्ड कम्पनी का हैरान परेशान होना लाजिमी है।
वैसे इन चुनावों ने एक बार फिर यही दिखाया कि बीते 10-12 सालों के अपने शासन में आप ने मोदी की यात्रा को आगे बढ़ाने में ही मदद की है। मोदी के हर विभाजनकारी मुद्दे पर आप भाजपा के साथ खड़ी रही। धारा-370 हटाने से लेकर राम मंदिर तक आप खुद को हिंदू पार्टी साबित कर भाजपा की राह आसान करती रही।
दिल्ली की गद्दी के लिए बड़े मियां-छोटे मियां की जंग में छोटे मियां बाजी हार चुके हैं। अब उनकी पार्टी में खम्भों के दरकने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है।
संघ-भाजपा के साम्प्रदायिक रथ को नरम साम्प्रदायिकता पर खड़े होकर चुनौती देने वालों का यही अंजाम होना तय था। धर्म निरपेक्षता पर वास्तव में खड़े होकर मजदूर वर्ग ही फासीवादियों को धूल चटा सकता है। चाहे वो मोदी-योगी हों या केजरीवाल, सबका इंसाफ मेहनतकश जनता ही करेगी।