ठेका मजदूर की मौत, सामूहिक रूप से किया अंतिम संस्कार

दिनांक 31 अगस्त 2023 को गार्डन सैक्सन के ठेका मजदूर का पी.जी. कालोनी में दोपहर में आकस्मिक निधन हो गया। ठेका मजदूर कल्याण समिति एवं कालोनीवासियों द्वारा शाम 7ः30 बजे श्मशान घाट बेनी पंतनगर में सामूहिक रूप से अंतिम संस्कार किया गया।
    
मालूम हो कि नेपाल के मूल निवासी गोपाल सिंह पूर्व में लम्बे समय तक गार्डन सैक्सन में ठेका मजदूर के रूप में कार्यरत रहे हैं। कुछ दिनों से वे गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। बीमारी से काम करने में असमर्थ, आर्थिक तंगी में इलाज कराना तो दूर की बात घर में खाने-पीने को भी नहीं था। पत्नी बच्चे-परिवार गांव में हैं। परिचित बता रहे थे कि बीमारी की खबर सुनकर पत्नी के पास आने का किराया तक नहीं था। बेटा मजदूरी करने दुबई में गया है। पिछले 25-30 साल से गांव में पत्नी और छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर आए गोपाल दुबारा गांव नहीं गये। इसमें शराब, भांग, नशा इत्यादि इनकी गलत आदतों की भी प्रमुख भूमिका रही। संगठन के साथियों द्वारा बीमारी की रिश्तेदारों को सूचना दी गई, इसके बावजूद, चलने-फिरने में असमर्थ बीमार गोपाल के तथाकथित रिश्तेदार सब किनारे हो गये। उन्होंने कोई मदद तो नहीं की वे गोपाल की नशा व गलत आदतों को मरने के बाद भी कोसते रहे। गोपाल ने काम करते हुए विश्वविद्यालय में पूरी जवानी खपा दी। पर अंतिम समय में विश्वविद्यालय अधिकारी सब उनसे दूर हो गये। हां, मरने के बाद गार्डन सैक्सन द्वारा, ट्रैक्टर द्वारा लकड़ी उपलब्ध करा अंतिम संस्कार में जरूर मदद की गई जिसमें मजदूरों-कर्मचारियों की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही।
    
पिछले हफ्ते पता चलने पर इंकलाबी मजदूर केंद्र एवं ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर के कार्यकर्ताओं ने जाकर अंधेरे में जमीन पर पड़े लावारिस गोपाल सिंह के लिए रोशनी का इंतजाम किया। प्रति दिन उनके खाने-पीने का इंतजाम किया जाता रहा जिसमें संगठन के साथियों के साथ गार्डन सैक्सन के भी कई मजदूरों ने आर्थिक मदद देकर अच्छी भूमिका निभायी। खैर यदा-कदा खाने-पीने का इंतजाम कालोनीवासी भी करते रहे। अंततः आकस्मिक निधन के बाद संगठन के साथियों सहित कालोनीवासियों द्वारा अंतिम संस्कार का सारा इंतजाम कर गोपाल सिंह का सामूहिक रूप से अंतिम संस्कार कर दिया गया। पूंजीपतियों के विकास के चकाचौंध में ऐसे न जाने कितने लावारिस गोपाल बीमारी के बाद अतीव कष्टों को झेलते हुए रोजाना मौत के शिकार होते हैं जिनके इलाज, खाने-पीने का इंतजाम न सरकार करती है और न ही स्थानीय प्रशासन। मजदूर-मेहनतकश जनता की श्रम की लूट-खसोट पर आधारित, शोषण-उत्पीड़नकारी पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूर गरीब मेहनतकश जनता के साथ यूज एंड थ्रो का ही व्यवहार होता है। ऐसे में पैदा होने से अंतिम समय तक सम्मानजनक जीवन एक नयी समाजवादी व्यवस्था, मजदूर राज में ही सम्भव है।             -एक पाठक, पंतनगर 

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