
बरेली/ तीन महीने पूर्व दिनांक 3 जून 2023 को बरेली डिपो की जनरथ बस न्च् 32 छछ 0330 बरेली सेटेलाइट बस स्टैण्ड से दिल्ली के कौशाम्बी बस स्टैंड के लिए रवाना हुई थी। बस में नियमित ड्राइवर केपी सिंह और संविदा कंडक्टर मोहित यादव थे। रामपुर से पहले किसी यात्री ने टॉयलेट के लिए कहकर बस को रुकवाया। इतने ही समय में इसी बीच दो मुस्लिम यात्रियों ने बस से उतर कर नमाज अदा कर ली। बस में बैठे किसी यात्री ने नमाज पढ़ते यात्रियों का वीडियो बनाकर शिकायत कर दी। जिसके बाद बरेली डिपो के ए आर एम संजीव श्रीवास्तव में बस कंडक्टर मोहित यादव की सेवा समाप्त कर दी और बस चालक को निलम्बित कर दिया। मोहित यादव का पक्ष नहीं सुन कर ए आर एम द्वारा उत्तर प्रदेश शासन के अल्पसंख्यक विरोधी रुख और उच्चाधिकारियों के दबाव के अनुरूप बरेली रोडवेज प्रबंधन ने काम किया।
तीन माह से मोहित यादव की माली हालत बहुत खराब हो गयी थी। संविदा पद पर रहते हुए उसे 17 हजार रुपये तनख्वाह मिलती थी। एक झटके में उसे पैदल कर दिया गया। इस कारण वह अवसाद में रहने लगा। अंत में इस कारण 27 अगस्त 2023 को उसने ट्रेन की पटरी के आगे लेटकर आत्महत्या कर ली। उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक 3 साल का बच्चा है। उसकी पत्नी ने इसके लिए बरेली रोडवेज प्रबंधक दीपक चौधरी को घटना का जिम्मेदार ठहराया। रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद के क्षेत्रीय मंत्री रविन्द्र कुमार चौहान के मुताबिक बस कंडक्टर मोहित यादव पर जनरथ बस में यात्रियों की संख्या बढ़ाने का दबाव था। एसी बस में केवल 14 यात्री थे। बस में दो-तीन यात्री रास्ते में टायलेट करने उतरे उसी समय में दो मुस्लिम यात्रियों ने नमाज पढ़ने की इजाजत लेकर उतने समय में ही नमाज पढ़ ली। इसमें बस कंडक्टर ने क्या गुनाह कर दिया? अगर यह गुनाह ही था तो उसको कोई दंडात्मक कार्रवाई कर देते, उसकी सेवा क्यों समाप्त की गयी? उत्तर प्रदेश परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने बहुत असंवेदनशील तरीके से कहा कि मोहित यादव की तीन महीने पहले सेवा समाप्त कर दी तो उस समय वह क्यों नहीं मरा?
इससे आठ माह पहले बरेली के ही फरीदपुर कस्बे में एक सरकारी प्राइमरी विद्यालय में उर्दू विषय की पुस्तक की एक नज्म ‘‘लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी’’ गाए जाने पर शिक्षा मित्र वजीरूद्दीन की सेवा समाप्त कर दी गई और प्रधानाध्यापिका नायक सिद्दकी को निलम्बित कर 80 किमी दूर विद्यालय से संबंद्ध कर दिया गया।
चाहे रोडवेज बस कंडक्टर मोहित यादव हों या शिक्षामित्र वजीरूद्दीन हों इनका ‘‘गुनाह’’ केवल इतना है कि इन्होंने समाज में हिन्दू फासीवादियों द्वारा धर्म के आधार पर फैलाई जा रही नफरत का इस्तेमाल नहीं किया। ये उस नफरत के खिलाफ खड़े थे इसीलिए वे इन फासीवादियों की नफरत का शिकार हो गए। मोहित यादव और वजीरूद्दीन के प्रकरण से यह भी साफ होता है कि इन फासीवादियों की धर्मान्धता और नफरत का शिकार केवल मुस्लिम या धार्मिक अल्पसंख्यक नहीं होते बल्कि जो इस नफरत के खिलाफ हैं वो भी हो सकते हैं।
जहां एक तरफ धर्म के नाम पर फासीवादियों ने समाज में इतना जहर घोल दिया है और चेतन सिंह, मोनू मानेसर, कपिल मिश्रा जैसे असंख्य नफरती लम्पटों को सत्ताएं पाल-पोस रही हैं, धार्मिक अल्पसंख्यकों का नरसंहार करने वाले और महिलाओं से बलात्कार करने वालों को जेल से रिहा कर उनका स्वागत-सत्कार किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर जो इस धार्मिक नफरत में शामिल नहीं हैं मोहित यादव, वजीरूद्दीन, मो. जुबैर, सुबोध सिंह जैसे तमाम लोगों को नौकरी से लेकर जान तक से हाथ धोना पड़ा है।
इस धार्मिक नफरत और जनता पर लगातार हो रहे धर्म के नाम पर हमले के खिलाफ जनता की एकजुटता और संघर्ष ही इस नफरत को पीछे धकेल सकती है और फासीवादियों के मंसूबों को ध्वस्त कर सकती है।
मोहित यादव की आत्महत्या के मामले में बरेली ट्रेड यूनियन फेडरेशन (BTUF) ने बरेली रोडवेज पर रोडवेज चालकों-परिचालकों की एक सभा की और एक ज्ञापन परिवहन निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक को सौंपा जिसमें संविदाकर्मी मोहित यादव की नियम विरुद्ध सेवा समाप्त किये जाने वाले अधिकारियों के विरुद्ध आवश्यक कानूनी कार्रवाई की मांग की और मोहित यादव के परिवार को आर्थिक सहायता देने तथा संविदाकर्मियों का शोषण-उत्पीड़न बंद करने की मांग की गई। -बरेली संवाददाता