सफाये के बाद सफाई का काम शुरू

मणिपुर हिंसा

भाजपा शासित राज्य में तीन महीनों से जारी हिंसा छुटपुट रूप में अभी भी जारी है। राज्य समर्थित हिंसा का यह रूप और नग्न तांडव भारत की जनता ने पहले भी झेला है जब राज्य एक सामाजिक समूह के राज्य के तौर पर खुल्लमखुल्ला कार्य करें। और वह एक सामाजिक समूह द्वारा की जाने वाली हत्याओं में हत्यारों को हर संभव तरीके से मदद प्रदान करें, उनका संरक्षण करे। 
    
सिखों ने 1984 में इस दर्द को झेला है तो मुसलमानों ने गुजरात दंगों से लेकर अभी हाल में ही हुए दिल्ली दंगों तक। इन घटनाओं में राज्य की सभी संस्थायें और हत्यारों का सहसंबंध गौरतलब होता है। दंगाई और हत्यारे राज्य की संस्थाओं को निर्देशित कर रहे होते हैं और राज्य स्वयं दंगाईयों और हत्यारों को निर्देशित कर रहा होता है। 
    
मणिपुर में आज जो कुछ हो रहा है वह गुजरात और दिल्ली नरसंहारों से कहीं बढ़कर है। मणिपुर में केन्द्र व राज्य सरकार के सहयोग से मणिपुर घाटी में रह रहे कुकी समुदाय पर हर तरीके की हिंसा की गई और उन्हें कुकी बाहुल्य पहाड़ी क्षेत्रों में भगा दिया गया। मणिपुर घाटी में रह रहे मैतेई समुदाय का मणिपुर राज्य की शासकीय संस्थाओं पर मूलतः कब्जा है। ज्यादातर अफसर मैतेई समुदाय के हैं और विधानसभा में ज्यादातर सदस्य मैतेई समुदाय के हैं सो पूरे राज्य में कुकियों के विरुद्ध राज्य समर्थित अपराध पर कुकी केवल खुद की गोलबंदी से ही खुद को संरक्षित कर सकते थे। 
    
कुकियों के सफाये अभियान हेतु केन्द्र व राज्य सरकार का मैतेई दंगाईयों को किस हद तक समर्थन प्राप्त था इसे कुछ बातों से समझा जा सकता है-

1. कुकियों के नरसंहार के बावजूद विधानसभा सत्र मात्र 11 मिनट के लिए बुलाया गया और मुख्यमंत्री के अनुसार इस सत्र का उद्देश्य हिंसा पर चर्चा करना नहीं था। 
2. जैसा कि विदित है कि मणिपुर में सशस्त्र बल विशिष्ट शक्ति अधिनियम लागू है और इसलिए इस राज्य में भी केन्द्रीय बल और केन्द्रीय एजेंसियां भारी संख्या में मौजूद हैं। कुकियों के नरसंहार पर केन्द्रीय बलों की अहस्तक्षेप की नीति केन्द्र सरकार के सक्रिय समर्थन की अभिव्यक्ति है। 
3. एडिटर्स गिल्ड की तथ्य अन्वेषण टीम पर मुकदमा दायर करना राज्य सरकार की संलिप्तता का एक अन्य उदाहरण है। एडिटर्स गिल्ड की टीम ने अपनी रिपोर्ट में इंटरनेट पाबंदी को गलती बताते हुए कहा था कि हिंसा के दौरान मणिपुर का मीडिया मैतेई मीडिया बन गया था। भारत में विगत वर्षों में मीडिया के चरित्र को देखते हुए साफ समझा जा सकता है कि मीडिया का यह चरित्र राज्य के दबाव और मणिपुर मीडिया पर मैतेई समुदाय के वर्चस्व के बिना असंभव था। 
4. अगर कहीं केन्द्रीय बलों व एजेन्सियों ने कुकियों को बचाने की कोशिश की भी तो मणिपुर राज्य की पुलिस ने केन्द्रीय बलों को रोकने की कोशिश की। यहां तक कि राज्य सरकार ने केन्द्रीय बलों की ऐसी कार्यवाहियों की सख्त निंदा की। 
5. इतने भयानक नरसंहार के बावजूद भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री को बरकरार रखा है। 
6. भाजपा के मणिपुर के विधायक कुकी विधायकों को खुलेआम धमका रहे हैं कि वे इस्तीफा दे दें और दूसरे राज्यों से चुनाव लड़ें। 
7. नरसंहार के तथ्यों को छिपाने के लिए केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार से मिली जानकारी को देने से इंकार कर दिया। यह जानकारी आरटीआई के तहत मांगी गई थी। 
    
अब जबकि केन्द्र और राज्य समर्थित मैतेई समुदाय ने कुकियों के विरुद्ध अपना सफाया अभियान काफी हद तक पूर्ण कर लिया है तो राज्य सरकार कुकियों के विरुद्ध सफाई को स्वयं संगठित कर रही है या मैतेई हमलावरों को इस बारे में पूरा सहयोग कर रही है। 
    
2 सितम्बर को असम रायफल्स और मणिपुर पुलिस इंफाल के न्यू लैंनूलेन इलाके में रहने वाले कुकियों को जबरन हटाने के लिए पहुंची जो शहर में कुकियों के कुछ आखिरी परिवार थे और इस तरह से इंफाल से कुकियों की पूरी तरह से सफाई कर दी गई। संघ परिवार और भाजपा का ज्यादातर उद्देश्य इस तरह सफल हो गया। वे गुजरात, मणिपुर होते हुए पूरे भारत में यही खेल, खेल रहे हैं। पूरे देश के हर राज्य, जिले, शहर और गांव की गलियों तक वे यही विभाजन का गंदा खेल, खेल रहे हैं और एक हद तक सफल भी हो रहे हैं। 
    
आजादी से पूर्व और आजादी के समय हिन्दू-मुस्लिमों के हर दंगे में अंग्रेज साम्राज्यवादियों का हाथ होता था क्योंकि हर दंगे से अंग्रेजों को फायदा होता था। आजाद भारत के हर दंगे के पीछे इन संघी फासिस्टों का हाथ होता है क्योंकि उन्हें ही सीधा राजनीतिक लाभ होता है। भारत के अंश-अंश को विभाजित करने का काम मुकम्मल तौर पर अंग्रेज भले ही न कर पाये हों परन्तु संघी फासिस्ट अंग्रेजों के बचे कार्यभारों को पूरा करने में पूरी शिद्दत से कार्यरत हैं। अंग्रेजों ने भारत के दो ही टुकड़े किये थे परन्तु इन संघी फासिस्टों ने इस देश को पूरी तरह से खंड-खंड कर दिया है। 

आलेख

/izrail-lebanaan-yudha-viraam-samjhauta-sthaayi-samadhan-nahin-hai

इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

/ek-baar-phir-sabhyata-aur-barbarataa

कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।