देश की स्वास्थ्य व्यवस्था एक आइना : बी.एच.यू. के संदर्भ से

वाराणसी/ उत्तर भारत के अस्पतालों में बनारस स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मेडिकल संस्थान का एक प्रमुख स्थान है। जिसका पूरा नाम प्ण्डण्ैण् ठण्भ्ण्न्ण् यानी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी है। वैसे तो बनारस उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर का एक पुराना व ऐतिहासिक शहर है, किन्तु बी.एच.यू. अस्पताल में उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के दर्जनों जिलों के अलावा पश्चिम बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश आदि प्रांतों के मरीज प्रतिदिन 7 से 10 हजार के करीब दिखाने आते हैं। इसके अलावा वार्डों में भर्ती मरीजों की संख्या अलग है। यहां इलाज व पढ़ाई में मेडिकल कालेज के लगभग 45 विभाग हैं जिसमें आयुर्वेद संकाय भी है, मैं करीब 25-30 वर्षों से मरीजों का इलाज कराने व अपने परिवार के सदस्यों के इलाज के वास्ते बी.एच.यू. जाया करता था। 25-30 वर्ष पहले जितने विभाग थे लगभग आज भी उतने ही विभाग हैं। हां एक दो विभागों की ओ.पी.डी. सप्ताह में जो एक, दो या तीन दिन की हुआ करती थी, अब उसकी ओ.पी.डी. प्रतिदिन होने लगी है। वैसे तो बी.एच.यू. की स्थापना की कवायद 1911 से ही आरम्भ कर दी गयी थी, किन्तु विधिवत स्थापना 1916 में हुई थी जिसमें शुरूआत में 1924 में 96 बेड के आयुर्वेद अस्पताल की स्थापना बी.एच.यू. के पहले कुलपति सर सुन्दर लाल के नाम पर की गयी। 
    
1927 में यहां अस्पताल से बढ़कर आयुर्वेद कालेज की स्थापना की गयी, किन्तु पश्चिमी देशों द्वारा मेडिकल साइंस में नित्य नयी खोजों तथा उससे पूरे समाज को लाभान्वित होने के लिए माडर्न मेडिसिन को भी अध्ययन में शामिल किया गया जिसका अस्तित्व 1960 से है। सर सुन्दर लाल अस्पताल मुख्य रूप से, चिकित्सा, नर्सिंग, पैरामेडिकल्स के विभिन्न विषयों में, चिकित्सा विज्ञान संस्थान द्वारा संचालित स्नातक, स्नातकोत्तर, सुपर स्पेशलिटी व अनुसंधान पाठ्यक्रमों के लिए एक शिक्षण व प्रशिक्षण अस्पताल है। इसके अंतर्गत पूर्वी यू.पी., पश्चिमी बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड के निकटवर्ती क्षेत्रों के अलावा नेपाल से लगभग 20-22 करोड़ के लोगों के लिए एक बड़ा अस्पताल है। बी.एच.यू. की स्थापना के 107 वर्ष बाद, आयुर्वेदिक कालेज की स्थापना के 96 वर्ष बाद तथा माडर्न मेडिसिन साइंस की स्थापना के 63 वर्ष बाद भी इस 20 से 22 करोड़ की आबादी के इलाज हेतु इस इलाके में आज तक उस तरह के दूसरे मेडिकल कालेज या अस्पताल की स्थापना नहीं हो पाई है या इसकी जरूरत नहीं महसूस हुई है। सत्ता के संचालकों को यह बात थोड़ा नागवार लगेगी किन्तु हकीकत यही है कि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को सिरे से नजरअंदाज कर दिया गया है। सब कुछ प्राइवेट के हवाले छोड़ दिया गया है। 
    
जबसे मैं बी.एच.यू. जा रहा हूं तब से 25-30 वर्षों में बी.एच..यू. में दिखाने वाले मरीजों की संख्या में 15-20 गुना वृद्धि हुई है। किन्तु संसाधन वृद्धि के नाम पर कुछ नहीं किया गया है। आज के दौर की जरूरत व आबादी के अनुपात में तो हर दो तीन जिले के अंतर पर बी.एच.यू. जैसे अस्पताल की जरूरत है। किन्तु प्राइवेट अस्पतालों का फिर क्या होगा। कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक आंकड़ा वायरल हुआ था कि अडाणी ग्रुप द्वारा जितना देश के बैंकों से कर्जा लिया गया है यदि उस पैसे को भारत सरकार ले ले तो देश में दिल्ली के एम्स जैसे 100 से ज्यादा एम्स उस पैसे से बन कर तैयार हो जायेंगे। मसलन 140 से 145 करोड़ देश की आबादी है और हर एक से डेढ़ करोड़ की आबादी के बीच दिल्ली जैसा एम्स खुल सकता है। अब इससे अंदाजा लगाया जाए कि एक औद्योगिक घराने से पैसा लेकर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक किया जा सकता है जिसमें सभी के लिए इलाज की व्यवस्था हो जाएगी। यदि इसी प्रकार कुछ दर्जन ही औद्योगिक घरानों से देश की जनता का पैसा ले लिया जाए तो लगभग देश की सभी समस्याएं छूमंतर हो जाएंगी। 
    
आज बी.एच.यू. में इतनी भीड़ हो रही है कि किसी-किसी दिन सुबह 9 बजे से किसी किसी विभाग में शाम के 6-7 बज जा रहे हैं -ओपीडी में मरीज दिखाने में। बी.एच.यू. के अंतर्गत कुछ विभागों में प्रतिदिन 400-500 से 700-800 तक मरीज आते हैं मसलन हड्डी रोग, न्यूरोलॉजी विभाग, मेडिसिन विभाग, गैस्ट्रो यानी पेट रोग विभाग, आदि इसके अलावा भी, हृदय रोग, मूत्र रोग, सर्जरी विभाग आदि में भी भारी भीड़ हो रही है। 
    
जब तक जनता अपने मुद्दों मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि पर जाति-धर्म से हटकर बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा करेगी, समस्याएं और विकराल होंगी। अंतिम समाधान तो इस लुटेरी व्यवस्था के खात्मे और समाजवादी व्यवस्था के आने पर ही होगा।     -लालू तिवारी, बलिया

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