बीते दिनों अमेरिका के सफलतम बिटकाइन हेज फण्ड के संस्थापक सैम बैंकमैन फ्राइड को अदालत ने 25 वर्षों की सजा सुनाई। फ्राइड पर आरोप था कि उसने अपने ग्राहकों से 8 अरब डालर की रकम चोरी की। ऐसा उसने अल्मेड रिसर्च नामक हेज फण्ड में ग्राहकों के धन में हेराफेरी करके किया। इस चोरी की गयी रकम से उसने रियल स्टेट व सट्टा बाजार में बड़े पैमाने पर निवेश किया।
फ्राइड द्वारा निवेशकों के साथ की गयी धोखाधड़ी को अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी वित्तीय धोखाधड़ी में से एक कहा जा रहा है। फ्राइड क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया का बेताज बादशाह बनना चाहता था पर उसकी चोरी पकड़ी गयी। अमेरिका में इस सजा की यह कहकर तारीफ की जा रही है कि इससे दूसरे लोगों को सबक मिलेगा व वे इस तरह की धोखाधड़ी करने से पहले सोचेंगे व डरेंगे।
बीते समय में क्रिप्टो मुद्राओं के दाम एक बार फिर चढ़ती पर हैं। अब इसे धीरे-धीरे सरकारों से मान्यता के साथ बड़े नामी पूंजीपतियों का निवेश हासिल हो रहा है। ऐसे में यह छवि स्थापित की जा रही थी कि क्रिप्टोकरेंसी धोखेबाजी, घोटालों, अटकलबाजी आदि से मुक्त हो चुका है। ऐसा क्रिप्टोकरेंसी के प्रसार के लिए जरूरी था। पर अब फ्राइड प्रकरण ने दिखा दिया कि क्रिप्टोकरेंसी के पक्ष में सारा प्रचार झूठ के अलावा कुछ नहीं था और फ्राइड जैसे ढेरों अन्य यहां धोखाधड़ी करने में व्यस्त हो सकते हैं।
आज के पूंजीवाद में जहां सामान्य मुद्रायें राज्य व उसके बैंकों द्वारा नियंत्रित व नियमित हैं वहीं क्रिप्टो मुद्रा पर ऐसे किसी नियंत्रण का प्रावधान नहीं है। ऐसी स्थिति में क्रिप्टो मुद्रा अपराध से लेकर वित्तीय उठा पटक के लिए अधिक आसानी से इस्तेमाल की जा सकती है।
जब सामान्य मुद्राओं के ही लेन-देन, सट्टेबाजी आदि पर ही देशों में बंटी दुनिया नियंत्रण कायम करने में इसलिए विफल हो रही है क्योंकि इन मुद्राओं में आज लेन देन वैश्विक पैमाने पर हो रहा है और इसलिए इन पर वैश्विक स्तर पर ही नियंत्रण किया जा सकता है। दरअसल तो आज वित्त पूंजी ऐसे सारे नियमन-नियंत्रण को धता बता वैश्विक स्तर पर अपने जौहर दिखा रही है। देशों के हर नियंत्रणकारी उपायों को वो ठेंगा दिखा रही है। राज्य भी चूंकि इन्हीं वित्तपतियों के नियंत्रण में हैं इसलिए वे इस पर नियंत्रण के खास उत्सुक भी नहीं हैं। यह सब पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था को तीखे संकट की ओर ले जा रहा है जिसे संभालना राज्यों के बस का न रह जाए। पर वित्तपतियों को इस सबकी चिंता नहीं है वे तो अपने मुनाफे के लिए सरकारें गिराने से लेकर युद्ध तक पर सट्टा लगाने से बाज नहीं आते। स्पष्ट है कि पूंजीवादी व्यवस्था में इस सब पर और पूंजी के अपराधिक, धोखाधड़ी भरे कारनामों पर रोक नहीं लग सकती।
अब जब इस सबके लिए क्रिप्टोकरेंसी भी उपलब्ध होने लगी है जिस पर राज्य चाह कर भी पूर्ण नियंत्रण नहीं कर सकते तब तो पूंजी के मुक्त विचरण, मुक्त धोखाधड़ी, सट्टेबाजी-अपराध पर पंख लगने ही हैं। एक फ्राइड को सजा देकर इसे नहीं रोका जा सकता। इस सबको तो केवल पूंजीवाद का अंत कर ही रोका जा सकता है। दरअसल एक फ्राइड को जेल भेज शासक इस बात का ढोंग ही कर रहे हैं कि वे वित्तीय अपराध थाम सकते हैं।
सैम बैंकमैन फ्राइड को सजा
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
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