इच्छाधारी प्रधानमंत्री

/icchaadhaari-pradhanmantri

अभी कुछ माह पहले ही हमारे प्रधानमंत्री को भान हुआ था कि वे कोई साधारण इंसान नहीं बल्कि भगवान द्वारा दी गयी शक्तियों से लैस अजैविक अर्थात देवता हैं। तब उनके इस बयान पर काफी चर्चा हुई थी। कुछेक भक्तों ने जो पहले ही उनकी पूजा करते थे अब और जोर-शोर से उनकी मूर्ति लगाकर पूजा शुरू कर दी थी। 
    
पर अभी हाल के अपने पाडकास्ट इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने कह दिया कि वे कोई देवता नहीं बल्कि मनुष्य हैं और उनसे भी गलतियां होती हैं। अब उनकी इस बात से बेचारे भक्तों को बहुत धक्का लगा है। वे सोच में पड़ गये कि बेवजह इतने दिनों से एक इंसान की पूजा कर रहे थे। तभी एक पहुंचे हुए भक्त ने उन्हें समझाया कि तुम बेवजह चिंता कर रहे हो। हमारे प्रधानमंत्री इच्छाधारी हैं। कभी वे देवता बन जाते हैं तो कभी इंसानी चोला धारण कर लेते हैं। उदास हुए भक्त फिर खुश हो गये। 
    
भक्तों की छोड़ें तो आम मेहनतकश जन अपने इस ‘अजैविक’ प्रधानमंत्री से पहले से परेशान थे। वे हैरान थे कि वह उनकी थाली से रोटी चुराकर अपने भगवान की तिजोरी में पहुंचा दे रहा है। वे हैरान थे कि उनकी रोजी-रोटी, इलाज, शिक्षा सब हड़प कर उनका प्रधानमंत्री उन्हें हर जगह शिवलिंग तलाशने का उपदेश दे रहा है। वे हैरान थे कि उनके गुस्से के बाजवूद पता नहीं कौन से जादू से उनका प्रधानमंत्री बार-बार चुनाव जीत जा रहा है। 
      
अब जब ‘अजैविक’ प्रधानमंत्री ने खुद के जैविक होने का एलान कर दिया तो बरबस ही मजदूर बस्ती के गली नं. 5 में रहने वाले राम प्रकाश की याद आ गयी। वह रोज सुबह-सुबह अपने दरवाजे पर बैठ कर खूब हल्ला करता कि वह साक्षात शिव है कि उसने भविष्य देख लिया है। हर सामने से गुजरने वाले को वह उसका भविष्य बताने लगता कि पांच दिन बाद तेरा बेटा मर जायेगा-तेरी पत्नी भाग जायेगी आदि आदि। शाम को वही राम प्रकाश दारू के नशे में चूर होकर अनाप-शनाप गाली बकता पाया जाता। पूरा मोहल्ला उससे परेशान था। सबने उसको डाक्टर को दिखाने, इलाज करवाने का पूरा जतन किया पर कोई नतीजा नहीं निकला, रोग बढ़ता गया। अंत में डाक्टर की सलाह पर जब सबने उसे पागलखाने पहुंचा दिया तब सबको उसके रोज के झंझट से छुटकारा मिला और उन्होंने चैन की सांस ली। 
    
लोग अब इंतजार कर रहे हैं कि देश के इच्छाधारी मुखिया का इलाज कब होगा। कब लोग चैन की सांस ले पायेंगे। 

 

यह भी पढ़ें :-

इतिहास में नाम दर्ज कराने की ख्वाहिशें

आलेख

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

/modi-government-fake-war-aur-ceasefire

युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

/fasism-ke-against-yuddha-ke-vijay-ke-80-years-aur-fasism-ubhaar

हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

/jamiya-jnu-se-harward-tak

अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।