किर्बी के मजदूरों के जुझारू संघर्ष की आंशिक जीत

हरिद्वार/ हरिद्वार के सिडकुल में किर्बी के मजदूरों की बीस सालों की तानाशाही के खिलाफ 10 दिन की ऐतिहासिक हड़ताल आंशिक जीत के साथ समाप्त हुई। इस हड़ताल में लगभग 700 स्थाई-अस्थाई मजदूर शामिल रहे। मजदूर अपने परिवार सहित खुले आसमान के नीचे रात-दिन का धरना चला रहे थे। गौरतलब है कि किर्बी कंपनी कुवैत की कंपनी है। भारत में इसके हैदराबाद, गुजरात और हरिद्वार में प्लांट हैं। किर्बी में बिल्डिंग सिस्टम का निर्माण होता है। किर्बी का मैनेजमेंट लंबे समय से मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न व खुलेआम तानाशाही कर रहा था।

लगभग दो माह पूर्व मजदूरों द्वारा कुंभ के अवसर पर एक भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें मजदूरों की शत प्रतिशत भूमिका रही। 8 मार्च 2025 को इस एकजुटता से परेशान होकर प्रबंधन वर्ग ने कम्पनी में गुंडे बुलाकर मजदूरों को तोड़ने का प्रयास किया और चार मौजूद नेताओं का गैरकानूनी स्थानांतरण हैदराबाद कर दिया। मजदूरों द्वारा इसका प्रतिरोध किया गया और फिर 19 मार्च 2025 को एक समझौते के तहत 2 सप्ताह के लिए स्थानांतरण को स्वीकार कर लिया गया। हैदराबाद से लौटने के बाद फिर से वही गुंडे 10 अप्रैल 2025 को कंपनी के अंदर दिखाई दिए जिससे मजदूरों में काफी रोष व्याप्त हुआ व भय का माहौल बना और सभी मजदूरों ने अपनी सुरक्षा की खातिर इसका प्रतिरोध किया। 13 अप्रैल 2025 को कंपनी के मजदूरों ने अपनी आम सभा कर ‘‘किर्बी श्रमिक कमेटी’’ का सर्वसम्मति से गठन किया और अपना सामूहिक मांग पत्र तैयार किया जिसे श्रम विभाग और कंपनी प्रबंधन को भी प्रेषित किया गया। कंपनी प्रबंधन ने 10 अप्रैल की सामूहिक प्रतिरोध की घटना के लिए 18 अप्रैल 2025 को पांच मजदूर नेताओं को निलंबित कर दिया। जिसके विरोध में मजदूरों ने 18 अप्रैल 2025 की रात को पहले किर्बी चौक पर और फिर चिन्मय डिग्री कालेज के पास खुले आसमान के नीचे सामूहिक हड़ताल शुरू कर दी। हड़ताल में माली, स्वीपर व इलेक्ट्रीशियन समेत सभी ठेका व स्थाई मजदूर शामिल हो गए।

19 अप्रैल 2025 को श्रम विभाग में जाने पर प्रबंधन वर्ग वहां पर नहीं आया। फिर 21 तारीख को 3ः00 बजे वार्ता का समय रखा गया था उसके बाद भी श्रम विभाग प्रबंधन वर्ग को नहीं बुला पाया। इसके बाद मजदूरों का गुस्सा और बढ़ा और सारे मजदूर, महिला, बच्चे जुलूस की शक्ल में पूरे सिडकुल होते हुए श्रम विभाग पहुंचे और वहां पर प्रदर्शन किया है। श्रम विभाग के नक्कारेपने को देख कर, सभी मजदूर जिलाधिकारी कार्यालय के लिए चले दिए। जिलाधिकारी कार्यालय से पहले पुलिस ने कई जगह पर बेरिकेटिंग की थी। परन्तु महिला और बच्चों के साथ मजदूरों ने इन बेरिकेटिंग को हटाकर सीधे जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया और प्रबंधन वर्ग पर वार्ता के लिए दबाव बनाया। जिलाधिकारी की अनुपस्थिति में तहसीलदार महोदय ने श्रम विभाग को वार्ता के लिए कहा। सारे मजदूर जिलाधिकारी कार्यालय पर ही डटे रहे व किर्बी श्रमिक कमेटी श्रम विभाग में गई और सहायक श्रमायुक्त से मिलकर समाधान न निकलने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी। एएलसी महोदय ने अगले दिन डीएलसी महोदय के समक्ष मिलने के लिए कहा। तथा किर्बी प्रबंधन को बुलाने की बात कही। अगले दिन भी किर्बी के मजदूर नेता तो पहुंचे परंतु किर्बी प्रबंधन नहीं पहुंचा।

इसी बीच आंदोलन को खत्म करने के लिए बीएचईएल प्रबंधन ने पहले धरना स्थल की लाइट काटी, उसके बाद धरना स्थल को खाली करने का दबाव बनाया। नोटिस पर नोटिस दिए गए। मजदूरों ने इसका विरोध किया, तथा देश की राजनीति को भी समझा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अपने खिलाफ हो रहे शोषण-उत्पीड़न पर मजदूरों को प्रतिरोध का अधिकार भी नहीं है। किर्बी के मजदूर नेताओं ने जनरेटर लाकर आंदोलन को जारी रखा। मजदूरों के परिवार की महिलायें, छोटे-छोटे दूध मुंहे बच्चे तक आंदोलन में बढ़-चढ़कर भागीदारी कर रहे थे। तपती धूप में शासन-प्रशासन ने 700 परिवारों के बारे में सोचने के स्थान पर किर्बी के मालिकों के पक्ष में अपना व्यवहार किया। स्थानीय विधायक आदेश चौहान को मजदूरों ने कई बार मदद के लिए कहा परंतु उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया कि मैं मजदूरों के आंदोलन का साथ नहीं दे सकता। शिवालिक नगरपालिका अध्यक्ष ने आंदोलन का सहयोग किया। बायो टॉयलेट, पानी का टैंकर व अन्य मदद की। एक बार जिलाधिकारी से मुलाकात भी कराई। यह अलग बात है कि जिलाधिकारी महोदय ने 700 मजदूरों के परिवार जो सड़कों पर थे, उनके बारे में किर्बी प्रबंधन से बात करने या श्रम विभाग से वार्ता कराने के स्थान पर उल्टा मजदूरों को ही दोषी ठहराने का काम किया। मजदूर आंदोलन को पहले दिन से ही इंकलाबी मजदूर केंद्र और संयुक्त मोर्चे की यूनियनें सहयोग और समर्थन कर रही थीं।

किर्बी प्रबंधन दबाव डाल रहा था कि लाल झंडे वाले इंकलाबी मजदूर केंद्र को पहले बाहर करो फिर उसके बाद बातचीत होगी। मजदूरों ने दो टूक जवाब दिया कि 20 सालों से हम किसी लाल झंडे वाले के साथ नहीं थे। जब से लाल झंडे वाले हमारे साथ मिले हैं हमें अपने हक अधिकारों के बारे में पता चला और हम उन्हें पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यदि समझौता करना है तो इंकलाबी मजदूर केंद्र और मोर्चा के संघर्ष से बिना हटे ही करना होगा।

सारे मजदूर इंकलाबी मजदूर केंद्र और संयुक्त मोर्चे के ही मार्गदर्शन पर चले। तब किर्बी प्रबंधन ने संयुक्त मोर्चे के साथ बातचीत की और समाधान निकालने का प्रयास किया। इंकलाबी मजदूर केंद्र के हरिद्वार प्रभारी पंकज कुमार व संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा के संयोजक गोविंद सिंह 27 अप्रैल को हुए इस समझौते में गवाह बने। और निम्नलिखित बिंदु पर समझौता संपन्न हुआ।

1. 28 अप्रैल से बिना किसी शर्त के सभी कर्मचारी स्थाई/अस्थाई अन्य सभी कर्मकार काम पर वापस जाएंगे।

2. उत्पादन को सुचारू रूप से एवं अनुशासन में करेंगे तथा सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने का प्रयास करेंगे किसी भी कर्मचारी या प्रबंधन वर्ग के कर्मचारियों के साथ किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता, टीका टिप्पणी नहीं करेंगे। ऐसा करने पर प्रबंधन वर्ग के पास अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार होगा।

3. कंपनी में लागू स्थाई प्रमाणित आदेशों का पालन किया जाएगा। यदि कोई भी कर्मकार अनुशासनहीनता, उत्पादन को क्षति या उत्पादकता को या कामकाजी माहौल पर किसी कर्मकार के गतिविधियों से गलत प्रभाव पड़ता है तो उस पर प्रबंधन वर्ग स्थाई प्रमाणित आदेशों के अनुसार कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होगा।

4. किर्बी श्रमिक कमेटी द्वारा प्रस्तुत मांग पत्र पर कंपनी में उत्पादन एवं उत्पादकता सामान्य होने पर विचार विमर्श किया जाएगा।

5. निलंबित कर्मकारों की जांच यथाशीघ्र की जायेगी जिसे 90 दिन में पूरा कर लिया जायेगा।

6. आगे भविष्य में कर्मकार भरोसा दिलाते हैं कि कोई भी विवाद होने पर कम्पनी स्थाई प्रमाणित आदेशों के ढांचे के अनुसार आपसी विचार विमर्श से समाधान करेगी।

मजदूरों के आंदोलन को सिडकुल के मजदूरों, सामाजिक संगठनों, मजदूर यूनियनों व किसान यूनियनों का भरपूर सहयोग समर्थन मिला।

किर्बी के मजदूरों के जुझारू संघर्ष को इंकलाबी मजदूर केंद्र, संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा से जुड़ी यूनियन भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, फूड्स श्रमिक यूनियन आईटीसी, देव भूमि श्रमिक संगठन हिन्दुस्तान यूनिलीवर, एवरेडी मजदूर यूनियन, सिमेंस वर्कर्स यूनियन (सी एण्ड एस), कर्मचारी संघ सत्यम आटो, एवरेस्ट इण्डस्ट्रीज यूनियन लकेश्वरी भगवानपुर, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, जन अधिकार संगठन, बेलसोनिका मजदूर यूनियन गुड़गांव, आईटीसी मजदूर यूनियन, एटक मजदूर यूनियन समेत विभिन्न लोगों ने सहयोग समर्थन किया। भाजपा-कांग्रेस से जुडी़ ट्रेड यूनियनें व अधिकतर राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा भी औपचारिक समर्थन किया गया।

इस जुझारू संघर्ष में मजदूरों ने पाया कि श्रम विभाग, शासन प्रशासन, जन प्रतिनिधि- विधायक, सांसद व सरकारों के वास्तविक चरित्र की हकीकत कि ये सब पूंजीपतियों के सेवक हैं। मजदूर अपनी वर्गीय एकता के दम पर ही जीत सकते हैं। सबसे बड़ी बात इस आन्दोलन की यह रही कि स्थाई मजदूरों के साथ ठेका मजदूरों ने मिलकर यह आंदोलन किया जिसके कारण किर्बी प्रबंधन झुकने को विवश हुआ और किर्बी के मजदूरों को आंशिक जीत मिली। किर्बी प्रबंधन ने किर्बी श्रमिक कमेटी को भरोसा दिया है कि वह इस समझौते को लागू करेगा। अब किर्बी की श्रमिक कमेटी व सभी स्थाई मजदूरों की यह जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वह अपने ठेका मजदूरों के साथ भाईचारा बनाकर उनके शोषण के खिलाफ आवाज उठाकर उन्हें स्थाई करने हेतु उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ें। भविष्य में यदि कम्पनी प्रबंधन समझौते का उल्लंघन करता है तो मजदूरों को इसी तरह की सामूहिक एकता का परिचय देकर जवाब देना होगा।

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