23 मार्च : भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम

23 मार्च, 1931 के दिन ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया था। अंग्रेजों ने सोचा था कि इन क्रांतिकारियों के शरीर का अंत कर देने से इनके विचारों का भी अंत हो जायेगा, लेकिन भगतसिंह का यह मशहूर शेर ‘‘हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली; ये मुश्तेखाक है फानी रहे, रहे न रहे।’’ शब्दशः सही साबित हुआ और आज उनकी शहादत के 93 वर्ष बाद भी क्रांतिकारी-प्रगतिशील संगठन प्रतिवर्ष न सिर्फ उनको व उनके साथियों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं अपितु उनके क्रांतिकारी विचारों पर चलने का एवं उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का दृढ़ संकल्प भी लेते हैं।
    
इस वर्ष भी 23 मार्च के दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। दिल्ली में शाहबाद डेरी में प्रभात फेरी निकाली गई; तदुपरान्त हुई सभा में भगतसिंह के क्रांतिकारी विचारों पर विस्तार से बात हुई। वक्ताओं ने कहा कि भगतसिंह एक समाजवादी भारत का निर्माण करना चाहते थे। प्रभात फेरी एवं सभा में इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र और परिवर्तनकामी छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
इसके अलावा इफ्टू (सर्वहारा) द्वारा दिल्ली के मायापुरी औद्योगिक क्षेत्र एवं मजदूर बस्ती में जुलूस निकाला एवं सभा आयोजित की। सभा में भगतसिंह के विचारों के आलोक में 21 अप्रैल तक ‘‘जन जागरण महीना’’ मनाने की भी घोषणा की गई।
    
फरीदाबाद में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा सरूरपुर में प्रभात फेरी निकाली गई एवं शाम को पटेल नगर में सभा आयोजित की गई; तदुपरान्त जुलूस निकाला गया। सभा में वक्ताओं ने कहा कि आज हमारे देश पर फासीवादी निजाम कायम होने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में मजदूरों-मेहनतकशों को तय करना होगा कि वह किस ओर खड़े हैं।
    
मानेसर (गुड़गांव) में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा प्रभात फेरी निकाली गई; तदुपरान्त हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान में सांप्रदायिक सोच की फासीवादी सरकार देश के मेहनतकशों को धर्म के नाम पर बांट कर दंगे करा रही है और समाज में वैमनस्य पैदा कर रही है। ऐसी ताकतें भगतसिंह के विचारों और उनकी कुर्बानी का अपमान कर रही हैं।
    
कुरुक्षेत्र में शहीद भगतसिंह दिशा संस्थान में स्थित शहीद भगतसिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया एवं शहीद भगतसिंह और उनके साथियों की क्रांतिकारी शिक्षाओं के आधार पर मौजूदा शोषण मूलक पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया गया; तदुपरान्त शहीद मदन लाल ढींगरा पार्क तक जुलूस निकाला गया, जहां जनसभा की गई। कार्यक्रम में शहीद भगतसिंह दिशा ट्रस्ट, जन संघर्ष मंच (हरियाणा), निर्माण कार्य मजदूर-मिस्त्री यूनियन एवं मनरेगा मजदूर यूनियन से जुड़े लोगों ने भागीदारी की।
    
जयपुर में क्रांतिकारी नौजवान सभा द्वारा वाल्मीकि बस्ती झालाना डूंगरी में मेहनतकश जनता की जिंदगी से जुड़ी तुरुप फिल्म की स्क्रीनिंग एवं सभा की गई।
    
हरिद्वार में भगतसिंह चौक पर शहीद भगतसिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया; तदुपरान्त हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि आज केंद्र की सत्ता पर काबिज फासीवादी ताकतें एकदम नंगेपन के साथ पूंजीपतियों के हितों को साध रही हैं। श्रद्धांजलि सभा में इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, फ़ूड्स श्रमिक यूनियन एवं एवेरेडी मजदूर यूनियन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
इसके अलावा हरिद्वार में सुबह शास्त्री नगर एवं शाम को सुभाष नगर में भगतसिंह के विचारों पर पोस्टर प्रदर्शनी और बुक स्टाल लगाया गया। साथ ही नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से भगतसिंह के विचारों का प्रचार किया गया।
    
काशीपुर में श्रद्धांजलि सभा की गई। सभा में वक्ताओं ने कहा कि भगतसिंह ने कहा था कि कांग्रेस पूंजीपतियों की पार्टी है और सत्ता उसके हाथ में आने पर मेहनतकश आबादी का शोषण बदस्तूर जारी रहेगा। साथ ही वे आर एस एस की विभाजनकारी नीतियों से भी भली-भांति वाकिफ थे और इसीलिये वे हिंदू-मुसलमानों को धर्म के नाम पर न लड़ने और अपने दुश्मन देशी-विदेशी पूंजीपतियों से लड़ने की सलाह देते थे। श्रद्धांजलि सभा में इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र एवं प्रगतिशील भोजनमाता संगठन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।

जसपुर के कलियावाला गांव में संयुक्त किसान मोर्चे के बैनर तले शहादत दिवस मनाया गया।
    
रामनगर में प्रभात फेरी निकाली गई; तदुपरान्त हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि आज हमारे देश में बेरोजगारी भयावह हो चुकी है। देश की दो तिहाई आबादी अर्थात 80 करोड़ लोग सरकारी राशन पर जिंदा हैं मतलब भुखमरी की रेखा के नीचे बस किसी तरह जी रहे हैं। जबकि अडाणी-अम्बानी सरीखे इजारेदार पूंजीपतियों की दौलत में दिन-दूनी रात-चौगुनी वृद्धि हो रही है। प्रभात फेरी और सभा में इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी एवं साइंस फार सोसाइटी के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
इसके अलावा रामनगर में आइसा द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
    
रुद्रपुर में मजदूर सहयोग केंद्र द्वारा शहीद अशफाक उल्ला खां पार्क में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस दौरान भगतसिंह के विचारों पर आधारित एक प्रदर्शनी भी लगाई गई एवं स्टीकर व एक पुस्तिका- नौजवान का रास्ता का वितरण किया गया।
    
कार्यक्रम में मजदूर सहयोग केंद्र, इंकलाबी मजदूर केंद्र, काकोरी यादगार कमेटी, सी आई ई इंडिया श्रमिक संगठन, श्रमिक संयुक्त मोर्चा, नेस्ले कर्मचारी संघ, एडविक कर्मचारी संगठन, टी वी एस लुकास मजदूर संगठन, एल जी बी वर्कर्स यूनियन रॉकेट रिद्धि सिद्धि कर्मचारी संघ, करोलिया लाइटिंग एम्प्लायीज यूनियन एवं कलेक्टिव दिल्ली के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
पंतनगर में शहीदों की याद में प्रभात फेरी निकाली गई; तदुपरान्त शहीद स्मारक पर हुई श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार 4 नये लेबर कोड्स लाकर मजदूरों को गुलामी की नई जंजीरों में जकड़ लेना चाहती है। आज इस सरकार ने अग्निवीर योजना के तहत सेना में भी ठेका प्रथा को लागू कर दिया है। प्रभात फेरी एवं सभा में इंकलाबी मजदूर केंद्र एवं ठेका मजदूर कल्याण समिति के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
बरेली में बंसी नगला एवं मणिनाथ में प्रभात फेरी निकाली गई और सभा कर शहीदों से प्रेरणा लेने और फासीवादी ताकतों को शिकस्त देने का आह्वान किया गया। कार्यक्रम में इंकलाबी मजदूर केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन एवं क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
मऊ में इस अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन एवं ग्रामीण मजदूर यूनियन द्वारा हरदासपुर व आदेडीह मजदूर बस्ती में जनसभाएं कर लोगों को भगतसिंह के क्रांतिकारी विचारों से परिचित कराया गया।
    
बलिया में इंकलाबी मजदूर केंद्र और ग्रामीण मजदूर यूनियन द्वारा इनामीपुर व बकरिया डीह में जनसभाएं कर लोगों से क्रांतिकारियों के विचारों पर चलने का आह्वान किया गया। इसके अलावा जुलूस भी निकाला गया। -विशेष संवाददाता

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।