जार्डन की राजशाही इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार और विनाश में साझीदार बनी हुई है वहीं जार्डन की जनता फिलिस्तीनियों के ऊपर किया जा रहे अत्याचारों के विरोध में अधिकाधिक भूमिका निभाने के लिए स्वतः स्फूर्त ढंग से आगे आ रही है।
अभी हाल में 8 सितंबर को जार्डन निवासी माहेर थियाब हुसैन अल जाजी नाम के एक ट्रक चालक ने जार्डन और कब्जे वाले वेस्ट बैंक के बीच एलेनबी क्रासिंग पर तीन इजरायली लोगों को गोली मार दी। इसके बाद उसे इजरायली गार्डों द्वारा मार डाला गया।
यह घटना जार्डन की हुकूमत की अमरीकापरस्ती और इजरायली अत्याचारों के समर्थन की उसकी नीति के विरुद्ध व्यापक आबादी के रोष को प्रदर्शित करती है।
गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों के नरसंहार की शुरुआत के बाद से यह जार्डन के किसी नागरिक द्वारा इजरायली कर्मियों के विरुद्ध किया गया पहला घातक सशस्त्र हमला था।
वैसे तो यह घटना एक व्यक्ति द्वारा की गई अलग-थलग कार्यवाही प्रतीत होती है। लेकिन इसका संबंध व्यापक फिलिस्तीनी प्रतिरोध के साथ घनिष्ठता से जुड़ जाता है। यही कारण है कि इस घटना को फिलिस्तीनी प्रतिरोध के लोग व्यापक महत्व की घटना मानते हैं। इसी प्रकार इस घटना को यहूदी नस्लवादी हुकूमत भी ईरान द्वारा प्रायोजित एक बड़ी आतंकवादी घटना घोषित करती है।
माहेर थियाब हुसैन अल जाजी की शोक सभा में उसके पिता ने कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति यहूदी नस्लवादी नरसंहारों के कारण पागल हो जाएगा, विशेष रूप से बच्चों के खिलाफ, उन्होंने एक पत्थर, या एक पेड़ या एक बच्चे या एक महिला को नहीं छोड़ा है।
उसके पिता ने आगे कहा कि मैं सौभाग्यशाली हूं और मुझे गर्व है कि मैंने एक नायक और एक शेर के बच्चे का पालन-पोषण किया। उन्होंने अपने बेटे के कार्यों को फिलिस्तीन और अरब तथा मुस्लिम राष्ट्रों की रक्षा बताया।
उन्होंने कहा कि गाजा और पश्चिमी तट पर इजरायल के नरसंहार को देखकर उनके बेटे को बंदूक उठाने तथा इस शहादत मिशन को अंजाम देने की प्रेरणा मिली।
39 वर्षीय अल जाजी जार्डन के गरीब दक्षिणी मान प्रांत के अल-हुसैनिया जिले के निवासी थे। वे हुवैत जनजाति में पैदा हुए थे। जनजाति ने इस बात पर जोर दिया कि हमारे शहीद बेटे का खून हमारे फिलिस्तीनी लोगों के खून से अधिक कीमती नहीं है।
जार्डन की जनजाति और फिलिस्तीनी आबादी के बीच यह घटना एकजुटता को भी दिखाती है।
अल जाजी की इस बहादुराना कार्रवाई का फिलिस्तीनी प्रतिरोध संघर्ष ने स्वागत किया है। उन्होंने उनकी इस कार्यवाही को किसी सेना द्वारा की गई कार्यवाही से कम महत्व की नहीं बताया।
अल जाजी की शहादत ने जार्डन के शासकों की भी नींद हराम कर दी है। वे अभी तक अमरीकी साम्राज्वादियों के लिए जार्डन में सैन्य ठिकाने बनाए हुए हैं। वे फिलिस्तीन की समस्या के लिए समझौता कराने का दिखावा भी करते रहे हैं। लेकिन वे कभी भी इजरायली नरसंहारकों की निंदा नहीं करते। वे इजरायल के लिए अपने हवाई क्षेत्र का खुला इस्तेमाल करने की इजाजत देते हैं।
लेकिन अब इन शासकों को अपनी जनता के गुस्से और प्रतिरोध का सामना करने का खतरा पैदा हो गया है। यह स्थिति सिर्फ जार्डन के शासकों की ही नहीं है, बल्कि समूचे अरब देशों के शासकों की है।
एक तरफ वे अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ गलबहियां डालकर चल रहे हैं और फिलीस्तीनी नरसंहार के मूकदर्शक बने हुए हैं और दूसरी तरफ उन्हें अपनी जनता के फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे में उन्हें दोहरी चालें चलनी पड़ रही हैं। वे फिलिस्तीनी मुक्ति का जुबानी समर्थन करने को मजबूर हो रहे हैं।
फिलिस्तीन मुक्ति संघर्ष को विश्वव्यापी समर्थन ने उन्हें पीछे हटने को मजबूर किया है। यहूदी नस्लवादी इजरायल की सरकार न सिर्फ दुनिया भर में बल्कि अपने देश के अंदर भी अलगाव में पड़ती जा रही है।
अभी हाल ही में 6 बंधकों की मौत पर इजरायल के अंदर नेतन्याहू के विरोध में व्यापक प्रदर्शन हुआ। इजरायल के अंदर गाजा पट्टी पर हमले को समाप्त करने की मांग बढ़ती जा रही है।
अल जाजी की शहादत फिलीस्तीन मुक्ति संघर्ष को गति देने में एक महत्वपूर्ण मुकाम का काम कर रही है।
अल जाजी की शहादत : फिलीस्तीन मुक्ति संघर्ष को गति देगी
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
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