वैश्विक अस्थिरता की भेंट चढ़ी जर्मनी की सरकार

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जिस दिन अमेरिका में ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव में विजेता घोषित हुए उसी दिन जर्मनी में सत्तारूढ़ गठबंधन बिखर गया। 2021 से जर्मनी में तीन पार्टियों सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी और ग्रीन पार्टी की सरकार ओलाफ शोल्ज के नेतृत्व में कायम थी। जर्मनी में गहराते आर्थिक संकट के बीच सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी और फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच मतभेद बढ़ रहे थे। 6 नवम्बर को ओलाफ शोल्ज ने फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता क्रिश्चियन लिंडनर को वित्त मंत्री के पद से हटा दिया। इसके जवाब में फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और यह सरकार अल्पमत में आ गयी। अब जर्मनी में अगले साल की शुरूआत में तय समय से 6 माह पहले चुनाव कराए जाने की संभावना है। 
    
जर्मनी की अर्थव्यवस्था जो कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसमें दो वर्ष से गिरावट का रुख है। जर्मनी की सबसे बड़ी ऑटो आपूर्तिकर्ता बॉस्क ने 5500 नौकरियां समाप्त करने की योजना रखी है। फोर्ड मोटर ने यूरोप में 4000 नौकरियां समाप्त करने की घोषणा की है। इनमें से अधिकांश जर्मनी की नौकरियां हैं। फॉक्सवैगन ने जर्मनी की अपनी 10 फैक्टरियों में से 3 फैक्टरियों को बंद करने की जरूरत बताई है। जर्मनी में औद्योगिक उत्पादन 2018 से लेकर अब तक 12 प्रतिशत गिरा है। 
    
जर्मनी की अर्थव्यवस्था की यह दुर्गति वैसे तो पहले ही शुरू हो गयी थी, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसे और बढ़ाया है। रूस से मिलने वाली प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के बंद होने के बाद जर्मनी अन्य देशों से द्रवित प्राकृतिक गैस के आयात की तरफ मुड़़ा। इससे इसके खर्च में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई। साथ ही औद्योगिक वस्तुओं के निर्यात के क्षेत्र में चीन से प्रतियोगिता का नुकसान भी जर्मनी की कंपनियों को उठाना पड़ रहा है। जर्मनी का पहले ऑटोमोबाइल, मशीन, रसायन और इस्पात के उत्पादन में दबदबा था। इन सभी क्षेत्रों में अब चीन उसकी हिस्सेदारी गिरा रहा है। जर्मनी की सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी थिसेनक्रुप्प ने इसी माह 1.4 अरब यूरो का नुकसान घोषित किया है। 
    
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की राष्ट्रपति चुनाव में जीत ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था के लिए खतरे बढ़ा दिये हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने सभी तरह के व्यापार करों में वृद्धि को अपनी आर्थिक नीतियों का केन्द्रीय तत्व बताया है। इससे व्यापार युद्ध की आशंका को बल मिल रहा है। कई जर्मन कंपनियों- बी एम डब्ल्यू, मर्सीडिज बेन्ज, फोक्सवैगन, दर्जनों ऑटो आपूर्तिकर्ता, बड़ी रसायन और दवा कंपनियों ने अमेरिका में भारी निवेश कर रखा है। पिछले वर्ष अमेरिका में जर्मन कंपनियों ने 15.7 अरब यूरो का निवेश किया। सस्ता ईंधन और कम कर इनके लिए मुख्य आकर्षण था। लेकिन कई कंपनियों ने मुद्रास्फीति घटाने वाले कानून के तहत मिलने वाले प्रोत्साहनों का भी लाभ उठाया है। ट्रंप ने इस कानून को रद्द करने का वादा किया है। 
    
अपने पहले कार्यकाल में भी ट्रंप ने विशाल व्यापार घाटे के लिए जर्मनी पर बार-बार हमले किये। पिछले चार सालों में इस व्यापार घाटे में कोई खास कमी नहीं आई है। इससे संभावना पैदा होती है कि ट्रंप पुनः इसे मुद्दा बनाएं। 
    
2008 के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था कभी भी संकट से बाहर नहीं आई है। इसने साम्राज्यवादियों के बीच हर समय मौजूद रहने वाले प्रतियोगिता को और तीखा किया है। दुनिया के अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं को और भी ज्यादा संकटग्रस्त कर रहा है। इन परिस्थितियों में ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुना जाना वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संकट की आशंकाओं को बढ़ा ही रहा है। इन आशंकाओं की पहली भेंट जर्मनी की सरकार चढ़ी है। लेकिन यह सिर्फ एक बानगी भर है। 

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता