योगी सरकार का अधिकारियों को धार्मिक आयोजन कराने का फरमान

भाजपा-संघ के शासन काल में नित्य नये कारनामे हो रहे हैं। मोदी के साथ योगी भी संघ के एजेंडों को आगे बढ़ाने में लगे हैं। नवरात्र (22 से 30 मार्च) में 9 दिन योगी सरकार द्वारा मंदिरों और मठों में रामायण और दुर्गा पाठ का आयोजन कराने का प्रशासन को आदेश दिया गया है। हर जिले, नगर व ब्लाकों में पूजा-पाठ व कर्म-कांड कराने के लिए जिला प्रशासन दौड़-धूप करते दिखेंगे।

योगी सरकार का यह आदेश धर्मनिरपेक्षता को ताक पर रख प्रशासनिक अधिकारियों को धार्मिक आयोजन में लगाने वाला है। इस आयोजन के लिए उन्हें 1-1 लाख रुपये दिए जाएंगे। पिछले साल उत्तराखंड सरकार में महिला एवं बाल कल्याण मंत्री रेखा आर्य द्वारा आंगनबाड़ी वर्करों और कर्मचारियों को शिवालयों में जलाभिषेक करने का आदेश दिया गया था।

भाजपा, संघ के शासन में बड़े पैमाने पर धार्मिक आयोजनों का इस्तेमाल समाज में साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने में किया जा रहा है। धार्मिक जुलूस-कार्यक्रमों में दूसरे धर्मों के खिलाफ जहर उगलने का कार्य किया जा रहा है। पिछले साल रामनवमी को कौन भूल सकता जब धार्मिक जुलूस निकाल कर कैसे पूरे देश में दंगे व नफरत के बीज बोये गये। खुली तलवारें व हथियारों को लहराते हुए तांडव मचाया गया और शासन-प्रशासन चुपचाप आंखों पर पट्टी बांधे देखता रहा और उसका सारा दोष मुस्लिम समुदाय पर डाल कर उनका दमन किया गया व उनके घरों पर बुलडोजर चलाया गया।

फासीवादी शासक अब और आगे बढ़कर प्रशासनिक अधिकारियों को ही धार्मिक आयोजन कराने में लगा रहे हैं। बहुसंख्यक हिन्दू मूल्य-मान्यताओं को सारे समाज में थोप रहे हैं। वे हिन्दू धार्मिक मामले को निजी आस्था की जगह राजकीय धर्म का दर्जा दिलाने में आमादा हैं, अग्रसर हैं। संवैधानिक, धर्मनिरपेक्षता की यूं खुलेआम हत्या के बाद भी लोकतंत्र का शोर मचाया जा रहा है।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के शासनकाल में धर्मनिरपेक्षता का पालन किया जाता था। तब भी ज्यादा से ज्यादा सर्व धर्म समभाव का पालन किया जाता था। इसका साफ मतलब था कि समाज में बहुसंख्यक हिन्दू धर्म को ही ज्यादा महत्व मिल जाता था। धर्मनिरपेक्षता का मतलब होता है कि राज्य किसी भी धर्म को व्यक्ति का निजी मामले बना दे। लेकिन भाजपा-संघ के शासन काल में जहां भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मुहिम चल रही हो ऐसे में धर्म निरपेक्षता की धज्जियां उड़ाकर और राज्य की संस्थाओं को चाहे वो न्यायालय हो या प्रशासनिक अमला हो, उसे धार्मिक रंग में रंगकर ही यह काम किया जा सकता है।

मोदी सरकार द्वारा दुनिया में ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि 2014 के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बन चुका है। लफ्फाजी की जा रही है कि भारत मदर आफ डेमोक्रेसी है। लेकिन फासीवादी चरित्र और कारगुजारियों से सत्ता का घिनौना चेहरा नित्य ही उजागर हो रहा है।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।