आंध्र प्रदेश के नंदयाल जिले में कक्षा 3 में पढ़ने वाली 8 साल की बच्ची के साथ तीन नाबालिग छात्रों ने सामूहिक बलात्कार कर गला दबा कर हत्या कर दी। आरोपियों में 2 छात्रों की उम्र 12 साल और एक छात्र की उम्र 13 साल है। ये कक्षा 6 और 7 में पढ़ने वाले छात्र हैं। आरोपियों ने छात्रा के साथ ये जघन्य अपराध 10 जुलाई को मंदिर के अन्दर किया।
मामला जब थाने पहुंचा तब पुलिस वालों के पूछने पर आरोपित छात्रों ने बताया कि उन्होंने पोर्न वीडियो देखा और उसके बाद लड़की को बहला फुसलाकर कर वहां ले गए। लड़की के साथ उन्होंने वैसा ही किया जैसा पोर्न वीडियो में देखा था। जब वह मर गई तो उसको नहर में छुपा दिया।
वहां के एसपी का कहना है कि आरोपित छात्रों ने यह भी बताया कि घटना के बाद छात्र डर गए और उन्होंने अपने रिश्तेदारों को बताया। जिसके बाद आरोपित छात्रों के पापा और चाचा ने छात्रा के शव को दोपहिया वाहन पर ले जाकर पत्थर से बांध कर कृष्णा नदी में फेंक दिया।
वहां के एसपी के अनुसार छात्रा का शव अभी तक बरामद नहीं हुआ है लेकिन तीनों आरोपियों के साथ उनके पापा और चाचा को भी गिरफ्तार कर लिया है।
यह घटना दिल दहला देने के साथ-साथ समाज को आइना दिखाने वाली है। यह घटना दिखाती है कि समाज कितने पतन में जा रहा है। जिसमें छोटी-छोटी बच्चियों के साथ तो बलात्कार हो ही रहे हैं लेकिन बलात्कार करने वाले भी 12-13 साल के बच्चे ही हैं। वह भी पोर्न वीडियो देखकर घटना को अंजाम दिया जा रहा है।
इस घटना का आखिर कौन जिम्मेदार है? वे जो 12-13 साल के छात्र हैं जिन्होंने पोर्न वीडियो देखकर इस घटना को अंजाम दिया या उन छात्रों के रिश्तेदार हैं जो डर कर कि उनके छोटे बच्चों का भविष्य खराब हो जायेगा इसलिए बच्ची के शव को नदी में फेंकने का काम किया। हालांकि इसको कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है। या फिर पोर्न वीडियो जिम्मेदार है जिसको देखकर उनके दिमाग में यह घटना करने का विचार आया।
बच्चे अगर पोर्न वीडियो नहीं देखते, उनको इतनी सहजता से पोर्न वीडियो नहीं मिलती तो क्या ये 12-13 साल के बच्चे इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते थे? जाहिर सी बात है कि इन 12-13 साल के बच्चों के दिमाग में बलात्कार करना और फिर हत्या करने की बात नहीं आती, और अगर बच्ची मरी ना होती तो छात्रों के रिश्तेदारों को शव छुपाने के लिए भी यह सब नहीं करना पड़ता।
अब अपराध किया है तो सजा तो मिलनी ही चाहिए छात्रों को भी और उनके रिश्तेदारों को भी। लेकिन सजा तो पॉर्न वीडियो बनाने वाले, उसको नेट पर डालने वाले और जो उनको छोटे-छोटे बच्चों की पहुंच तक बना रहे हैं उनको और जो इन सबको खाद-पानी देकर पाल पोस रही है यानी पूंजीवादी व्यवस्था को भी सजा मिलनी चाहिए। उनको सजा कौन देगा?
दरअसल बच्चियों/महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए यह पूंजीवादी व्यवस्था जिम्मेदार है। इस व्यवस्था में हर जगह महिला विरोधी सोच भरी पड़ी है। इसी व्यवस्था का एक अंग/हिस्सा अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति है। इस अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति के कारोबार से पूंजीपति अरबों खरबों रुपए का मुनाफा कमाते हैं। और यहीं संस्कृति महिलाओं को उपभोग की वस्तु के तौर पर पेश करती है। जो बच्चियों/महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधो को तेजी से बढ़ाती है।
अब अगर उन बच्चों और उनके रिश्तेदारों को सजा मिल भी जायेगी इससे अश्लील उपभोगतवादी संस्कृति और पूंजीवादी व्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके फिर कोई और बच्चे-बच्चियां शिकार बनेंगे।
इसलिए अपराधियों को सजा दिलाने के साथ साथ हमें बच्चियों/महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों को रोकने के लिए इस पूंजीवादी व्यवस्था को भी अपने संघर्षों के निशाने पर लेना होगा। इसके बिना महिलाओं बच्चियों के साथ बढ़ते अपराध खत्म नहीं हो सकते। हमें अश्लीलता, यौन हिंसा व महिलाओं को नग्न व उत्तेजक दिखाने वाली हर उस घटिया प्रचार-प्रसार सामग्री जो महिलाओं को माल, यौन वस्तु, उपभोग की वस्तु के बतौर स्थापित करती है पर रोक लगाने के संघर्ष के साथ-साथ इसके निर्माताओं के खिलाफ भी संघर्ष करने की आवश्यकता है।