दिल्ली में दो बच्चों की बरसात की बारिश में हुए जलभराव में डूब कर मौत हो गयी। इससे पहले दिल्ली एयरपोर्ट की पार्किंग की छत गिरने से एक कार ड्राइवर की मौत हो गयी और कुछ लोग घायल हो गये। दिल्ली में जगह-जगह से जल भराव की खतरनाक तस्वीरें और विडिओ सामने आ रही हैं। घरों, दुकानों में पानी भरा हुआ है। सड़कों में कारें, ट्रक, बस डूबी दिख रही हैं। टनलों में पानी भर गया है। दिल्ली की यह तस्वीर किसी आकास्मिक घटना से नहीं बल्कि यह तो मौसमी बारिश की देन है। बारिश हर साल होती है और हर साल लगभग यही तस्वीर होती है।
मुख्य शहर, कालोनी के अगर यह हालात हैं तो गरीब मजदूर बस्तियों के क्या हालात होंगे। क्योंकि मुख्य सड़क, कालोनी, संस्थान के निर्माण के लिए कोई नियोजन, योजना होती है। यहां उम्मीद की जाती है कि इनके निर्माण में नियमित मौसमों के साथ-साथ किसी आपात स्थिति से भी बचाव के हिसाब से निर्माण किया जायेगा। लेकिन शुरूआती बरसात में दिल्ली का यह हाल निर्माण में नियोजित-योजना पर गंभीर सवाल खडे़ कर देती है।
मीडिया की चर्चा में भी मुख्य सडकें, कालोनी, सरकारी संस्थान हैं लेकिन गरीबों की बस्तियों का बरसात में क्या हाल है। इस पर मीडिया की ना के बराबर रिपोर्ट है और सरकार की इस पर ना के बराबर चिंता है।
गरीब बस्तियां तो बिना किसी सरकारी नियोजन के मजदूरों की अपनी मेहनत से बसाई होती हैं। यहां आम तौर पर ना साफ हवा की कोई आवाजाही होती है ना ही बरसात के पानी की निकासी का कोई प्रबंध होता है। इस कारण बस्तियां गंदगी से भरी रहती हैं। सौ-पचास नहीं बल्कि करोड़ों लोग आज इन हालात में रहने को मजबूर हैं। मजदूर मेहनतकशों की इन हालात की चिंता ना सत्ता को है ना विपक्ष को।
बरसात से पैदा हुए इन हालात पर सरकार, नेताओं की सारी बयानबाजी, कलाबाजी अपने विरोधी को घेरने की है। भाजपा आम आदमी पार्टी को घेर रही है तो आम आदमी पार्टी भाजपा को।
मजदूर-मेहनतकश के इन हालात के लिए भाजपा, आप सहित सभी पूंजीवादी पार्टियां जिम्मेदार हैं। क्योंकि यह सारी पार्टियां पूंजीवादी व्यवस्था की पक्ष-पोषक है। और पूंजीवाद का स्वर्ग मजदूर-मेहनतकशों की बदहाली पर ही बनता है।