मोदी एण्ड कम्पनी के तेवर देखने लायक हैं। इस बार उनके निशाने पर अरुंधति राय आयीं। उन पर 14 साल पहले एक सेमिनार में दिये गये भाषण पर दिल्ली के उपराज्यपाल ने यूएपीए लगाने की मंजूरी दी।
14 साल पहले दिये गये भाषण पर यूएपीए लगाने का क्या मतलब है। हर किसी को खुलेआम अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार भारत का संविधान देता है। राय ने जो कहा वह सही अथवा गलत किसी को लग सकता है। और जिसे गलत लगता है वह राय के विचारों की सरेआम आलोचना कर सकते हैं। अंरुधति राय न तो किसी गैर कानूनी गतिविधि में लिप्त हैं और न आतंकवादी हैं। उनका जीवन एक खुली किताब है।
अंरुधति राय पर यूएपीए लगाने की वजह सिर्फ इतनी है कि उनकी जुबान पर बस किसी तरह ताला लगवाया जाए। अरुंधति राय हिन्दू फासीवादियों की मुखर आलोचक हैं। वे एकाधिकारी पूंजी के शिकार बने आदिवासियों से लेकर पर्यावरण पर किये गये घावों को पूरी बेबाकी से उजागर करती हैं। यह दीगर बात है कि अरुंधित राय का अपना जीवन खाते-पीते लोगों का जीवन है। उनकी लेखनी उनकी आय का एक जरिया है।