तुम जल समाधि की तैयारी करो -मृगया शोभनम्

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मेरी हत्या
मेरी आंखों के सामने हुयी
मैं जितना प्रतिरोध कर सकती थी,
मैंने किया।
मैंने हत्यारों को घायल किया
अपने दांत उनके हाथों में 
गड़ा दिये
नाखूनों से उनका मुंह नोंच डाला
एक की तो आंख में
अपनी अंगुली घुसेड़ डाली
रक्त बहने लगा उसकी 
आंखों से....

उन्होंने मुझे काबू में लाने को
पूरा बल लगाया
चार-चार बलिष्ठ पुरुषों को 
मैंने अंत तक छकाया
मैंने उनके मुंह पर थूका
मेरा थूक उनकी दाढ़ियों में जा चिपका।
वासना, क्रोध से वे राक्षस
कभी मुझे घूंसे मारते
कभी अपने मुंह पर पड़े
मेरे थूक को पोंछते।
उन्होंने मेरे कपड़े फाड़ डाले
और मैंने भी
उनके कपड़े फाड़ डाले।

एक ने बढ़कर 
मेरे हाथ को पीछे से पकड़ लिया
और एक ने मेरी गर्दन पकड़ ली
एक ने मेरी छाती को नोंचा
एक ने मेरी टांगों को पकड़ लिया
उन्होंने जो करना था
सो किया...
अचेत हुयी मैं क्षण भर
फिर मैंने पूरा जोर लगाया
एक के हाथों में अपने दांत गड़ा दिये
दूसरे की जांघ को नोंच डाला
एक ने मेरा गला पूरी ताकत से दबाया
मेरी हत्या
मेरी आंखों के सामने हुयी।

मेरी लाश को
उन्होंने दूर खाई में फेंका
धरती! मेरी मां! ओ धरती!
तेरी गोद में सीता की तरह समा गई
अब मेरे राम
गर तुम कहीं हो
तो तुम जल समाधि की तैयारी करो!
(साभार : ‘यह समय नहीं चुप रहने का’ 
नामक कविता संग्रह से)

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