
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ ने अपने रिटायर होने से पहले एक महान काम कर दिया। उन्होंने अंधे कानून को आंखों वाला बना दिया। न्याय की देवी की आंखों में बंधी पट्टी हटा दी और हाथ में तलवार की जगह संविधान की प्रति थमा दी।
सालों से भारत में कहा जाता था कि कानून तो अंधा होता है। लगता है यह बात मुख्य न्यायाधीश को अंदर तक चुभ गयी। उन्होंने कानून को आंख वाला बनाने का फैसला कर लिया। ठीक इसी तरह उन्हें लगा न्याय की देवी के हाथों में तलवार नहीं होनी चाहिए। इससे लगता है कि कानून का काम न्याय करने का नहीं दण्ड देने का है। अब न्याय की देवी पहले की तरह अंधी और डराने वाली नहीं रह गयी है। वह सौम्य और दयालु हो गई है।
न्याय की देवी सौम्यता और दयालुता के अवतार के रूप में ऐसे दौर में प्रकट हुयी है जब मोदी सरकार धड़ाधड़ पुराने कानूनों को बदल रही है। सब कुछ नया-नया है। नये श्रम कानून, नये अपराधिक कानून। नयी संसद है। और जब सब कुछ इतना नया है तो चन्द्रचूड़ ने सोचा होगा कि वे भी कुछ नया करें। न्याय की देवी नयी होनी चाहिए। जैसे राम मंदिर बनाने के लिए उन्हें राम ने रास्ता सुझाया। ठीक उसी तरह लगता है न्याय की देवी ने रास्ता सुझाते हुए कहा होगा, ‘तुम्हें क्या रास्ता दिखाऊं। मैं पहले से ही अंधी हूं।
न्याय की देवी को आंखें प्रदान करके चन्द्रचूड़ ने ऐतिहासिक काम किया है। आने वाले दिनों में मोदी के कई-कई कारनामों की इतिहास में जब चर्चा होगी तब कोई भूला-भटका इतिहासकार यह भी याद दिलायेगा कि मोदी जी को तो याद कर रहे हो पर चन्द्रचूड़ को मत भूलो। मोदी ने नये-नये काले कानून बनाये थे तो चन्द्रचूड़ ने भी न्याय की देवी को आंखें प्रदान की थीं। न्याय की देवी के हाथों से तलवार छीनकर उसके हाथ में संविधान पकड़ाया था। इतिहास में अमर होने के लिए मोदी ने हजारां प्रयत्न किये थे तो चन्द्रचूड़ ने भी एक महान काम किया था। सौ सुनार की एक लुहार की।
बस डर ये है कि कल को लोग ये न कहने लगें कि पहले कानून अंधा था पर अब तो वह आंखों वाला अंधा है।