बीते रविवार 21 अप्रैल को मालदीव की संसद के चुनाव सम्पन्न हुए। इस चुनाव में राष्ट्रपति मोइज्जू की पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पी एन सी) को भारी जीत हासिल हुई। 93 सदस्यीय संसद पीपुल्स मजलिस में पीएनसी 66 सीटें जीतने में सफल रही। जबकि विपक्षी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी को महज 12 सीटें हासिल हुईं। इस तरह संसद में दो तिहाई बहुमत हासिल करने के चलते मालदीव की राजनीति में राष्ट्रपति मोइज्जू व उनकी पार्टी पी एन सी का वर्चस्व कायम हो गया है। संसदीय चुनाव में 368 उम्मीदवारों ने भाग लिया। मालदीव में कुल 2.84 लाख मतदाता थे जिनमें से 91.5 प्रतिशत ने मतदान किया।
मालदीव की राजनीति बीते एक दशक से अधिक समय से भारत व चीन के वर्चस्व कायम करने के प्रयासों से प्रभावित रही है। इस चुनाव में भी इसका गहरा प्रभाव देखा गया। जहां मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी व इसके नेता पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद सालिह भारत समर्थक माने जाते रहे हैं वहीं पीपुल्स नेशनल कांग्रेस दल चीन समर्थक माना जाता रहा है। इसके नेता पूर्व राष्ट्रपति यामीन व मौजूदा राष्ट्रपति मोइज्जू चीन समर्थक माने जाते रहे हैं। पीएनसी की वर्तमान संसदीय जीत से स्पष्ट है कि मालदीव चीन के अधिक प्रभाव की ओर जायेगा और भारत का प्रभाव कमजोर पड़ेगा। भारतीय विस्तारवादी शासक इस बात से चिन्तित हैं।
2023 में जब से मोइज्जू मालदीव के राष्ट्रपति चुने गये तब से मालदीव के भारत के साथ रिश्ते बिगड़ते गये हैं। वैसे रिश्तों के इस बिगड़ने में भारत के फासीवादी शासक भी कम जिम्मेदार नहीं रहे हैं। साम्राज्यवादी चीन जहां कर्ज, बेल्ड एण्ड रोड परियोजना में मालदीव को शामिल कर उस पर प्रभाव बढ़ा रहा है वहीं भारतीय शासक मालदीव को अपने एक राज्य की तरह संचालित करने की मंशा रखते रहे हैं। बीते वर्ष प्रधानमंत्री मोदी के लक्षद्वीप जाकर उसकी मालदीव से तुलना संबंधी बयान की जब मालदीव में कड़ी प्रतिक्रिया हुई तो भारत में सत्ताधारी दल की ओर से मालदीव विरोधी बयानों की लहर आ गयी। मालदीव को सबक सिखाने के मकसद से भारतीय शासकों ने वहां भारतीय पर्यटकों के जाने को हतोत्साहित किया। भारतीय शासकों को उम्मीद थी कि इससे मालदीव को वो अपने घुटनों पर झुका लेंगे। पर हुआ उल्टा, राष्ट्रपति मोइज्जू चीन से पर्यटन बढ़ाने के समझौते करने के साथ-साथ भारत से अपने सैनिक वापस बुलाने की मांग करने लगे।
दरअसल मालदीव के एक द्वीप में आपदा से बचाव हेतु 2-3 भारतीय जहाजों की देख रेख हेतु 75 भारतीय सैनिक तैनात हैं। इन्हीं सैनिकों को वापस भारत भेजने की मांग मोइज्जू ने भारत से कर डाली। मजबूरन भारत को ज्यादातर सैनिक वापस बुला उनकी जगह असैन्य कर्मी तैनात करने पड़े। मालदीव को घुटने पर झुकाने का मोदी का दांव उल्टा पड़ गया।
पर आदत से मजबूर भारतीय फासीवादी मालदीव को एक सम्प्रभु राष्ट्र सरीखा दर्जा दे बराबरी के आधार पर सम्बन्ध बनाने को तैयार नहीं थे। वे लक्षद्वीप के करीब सैन्य अड्डा बना प्रकारान्तर से मालदीव को धमकाने के इंतजाम की बातें करने लगे। इस सबका परिणाम यह निकला कि मालदीव में भारत विरोधी भावनायें जोर पकड़ने लगीं। राष्ट्रपति मोइज्जू ने इन चुनावों में भारत को मालदीव से बाहर निकालने के नारे के तहत ही प्रचार किया और भारी जीत हासिल की।
दरअसल मोदी के बीते 10 वर्षों के शासन में भारत के अपने सभी पड़़ोसी देशों से सम्बन्ध कड़वे होते चले गये हैं। भारत के फासीवादी शासक अपने पड़ोसी मुल्कों को अपने एक राज्य की तरह संचालित करना चाहते रहे हैं। पर पड़ोसी मुल्क साम्राज्यवादी चीन से सटने का विकल्प मौजूद होने के चलते भारत की पहले सरीखी धौंस पट्टी सहने को तैयार नहीं हैं। श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव सबसे रिश्तों की यही हालत है।
मालदीव के चुनाव में राष्ट्रपति मोइज्जू की जीत से भारतीय शासक हैरान परेशान हैं। पर आदत से मजबूर भारतीय शासक मालदीव से बराबरी के आधार पर संबंध बनाने के बजाय धौंस पट्टी-घुड़की से संबंध और बिगाड़ने का काम ही करेंगे। इस सबके चलते साम्राज्यवादी चीन वहां वर्चस्व बढ़ाता जायेगा।
इस चुनाव से मालदीव की जनता की बदहाली में कोई बदलाव नहीं आने वाला। पूंजीपतियों की एक पार्टी की जगह दूसरी पार्टी अब आम मेहनतकशों पर डण्डा चलायेगी।