14 जून को अल्मोड़ा जिले के रानीखेत बिनसर के जंगलों में आग लगने से 4 कर्मचारियों (3 वनकर्मी और 1 पी आर डी का जवान) की मौत हो गयी। जबकि 4 अन्य लोग आग से झुलस गये। घायलों को पहले हल्द्वानी के बेस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया बाद में उन्हें दिल्ली सफदरगंज रेफर कर दिया है।
पिछले डेढ़ महीने से उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग लगी है। आग में जलने से पहले भी 5 लोगों की मौत हो चुकी है जिसमें 4 नेपाली मज़दूर और एक वनकर्मी था। इस तरह अब तक कुल 9 लोग इस आग की भेंट चढ़ चुके हैं।
बिनसर के जंगलों की आग में 4 कर्मचारियों की मौत के बाद 3 अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। इन अधिकारियों को निलंबित करने के पीछे जो तर्क दिये गये हैं वह यह है कि ये अधिकारी जमीनी स्तर पर आग बुझाने के काम में लापरवाही बरत रहे थे। वहीं दूसरी ओर मृतक कर्मचारियों के परिजनों को 4-4 लाख रुपये के चेक दिये गये हैं। और इस तरह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।
उत्तराखंड के जंगलों में गर्मी के दिनों में आग लगना कोई नई घटना नहीं है। यहाँ के जंगलों में ऐसी छाल और पत्तियां पायी जाती हैं जो गर्मी में आग पकड़ लेती हैं। इसलिए गर्मी आने से पहले एक फायर लाइन बनायीं जाती है। यह काम फायर वाचर करते हैं। ये फायर वाचर ज्यादातर ठेके पर रखे जा रहे हैं। इनका वेतन भी काफी कम है। ऊपर से बजट का हाल यह है कि इन फायर वाचरों को महीनों-महीनों तक तनख्वाह नहीं मिलती। इसके परिणामस्वरूप वे मन लगाकर काम नहीं कर पाते। इसके अलावा आग बुझाने के पर्याप्त संसाधन न होना भी इन फायर वाचरों को अपना काम उचित तरीके से करने में हाथ बाँध देता है।
दूसरे पिछले सालों में उत्तराखंड के गांवो से पलायन बढ़ा है। इस कारण कई गांवो में आबादी है ही नहीं और कई में केवल वृद्ध लोग बचे हैं जो आग बुझा नहीं सकते। इसके साथ ही सरकार लगातार जंगलों में आम लोगों की आवाजाही को प्रतिबंधित करती जा रही है। ऐसे में स्थानीय आबादी का आग बुझाने में जो सहयोग मिलता था वह नहीं मिल पा रहा है। हालांकि इतने पर भी स्थानीय आबादी आग बुझाने में सहयोग कर रही है।
इन सब कारणों ने आग की भयावहता को बढ़ाया है। ऊपर से कोढ में खाज यह है कि उत्तराखंड में आग से जलने पर यहाँ कोई बर्निग सेंटर नहीं है जिससे आग से झुलसे लोगों का इलाज हो सके। मूलभूत सुविधाओं की कमी समस्याओं को और बढ़ा देती है।