सीरिया के खिलाफ षड्यंत्र में लिप्त अमेरिकी साम्राज्यवादी

    अमेरिकी साम्राज्यवादी सीरिया को घेरने की हरचन्द कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए वे झूठ व षड्यंत्र का उसी तरह सहारा ले रहे हैं जैसे कभी उन्होंने ईराक पर हमला करने और सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करने के लिए लिया था। सीरिया में दमिश्क के बाहरी इलाके में सीरिया की सेना के द्वारा 21 अगस्त को किये गये तथाकथित रसायनिक हमले को आधार बनाकर अमेरिका और उसके खास पिट्ठू इजरायल और तुर्की सीरिया पर हमले का षड्यंत्र रच रहे हैं। अमेरिका ने तो अपना सबसे बड़ा नौसैनिक बेड़ा भी सीरिया की ओर रवाना कर दिया है। सीरिया के साम्राज्यवाद समर्थित विद्रोहियों द्वारा दावा किया जा रहा है कि सरकारी सेनाओं के रसायनिक हमले में सैकड़ों लोग मारे गये हैं जिसमें बच्चे भी शामिल हैं।<br />
    सीरिया की असद सरकार अपनी ओर से ऐसे किसी हमले से एकदम इंकार कर रही है। और उपलब्ध तथ्य तथा सीरिया की वर्तमान स्थिति इस बात का ठोस सबूत है कि वे ऐसा नहीं कर सकते हैं। सीरिया के शासकों ने अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया व शासकों के हल्ला मचाने पर तुरंत ही संयुक्त राष्ट्र जांच दल को हमले वाले इलाके में जाने की इजाजत दे दी है। संयुक्त राष्ट्र का जांच दल पहले से ही सीरिया में मौजूद है। वह कुछ समय पूर्व मार्च माह में एक ऐसे ही रसायनिक हमले की वहां जांच कर रहा है। इस हमले के बारे में यह सच सामने आया कि वह हमला अमेरिका समर्थित उग्रवादी संगठनों ने किया था। संयुक्त राष्ट्र संघ के जांच दल की शुरूवाती जांच पर उस वक्त मचा हल्ला थम गया था परन्तु अमेरिका, यूरोप, तुर्की, इजरायल, सऊदी अरब जैसे देश सीरिया की सेना द्वारा पुनः रसायनिक हमले की कहानी गढ़कर सीरिया पर कब्जे की तैयारी में लगे हैं।<br />
    सीरिया की सेना को खासतौर पर पिछले दो महीनों में अमेरिका समर्थित विद्रोहियों को खदेड़ने में बड़ी सफलता मिली है। ‘फ्री सीरियन आर्मी’ ही नहीं बल्कि कट्टर इस्लामिक आतंकवादी संगठनों को अपने कब्जे वाले इलाकों से भागना पड़ा है। यह स्थिति अमेरिका और उसके लग्गुओं-भग्गुओं के लिए हार का मुंह देखना सरीखी है। इसलिए उन्होंने एक बार फिर रसायनिक हमले का घृणित षड्यंत्र रचा है ताकि अमेरिका अपने इन लग्गुओं-भग्गुओं के साथ सीधे सैन्य हस्तक्षेप का तर्क गढ़ सके।<br />
    अमेरिका की आक्रामक तैयारियों का जवाब रूसी साम्राज्यवादियों ने तीखे अंदाज में दिया है। वे आसानी से अरब दुनिया में एकमात्र अपने प्रभाव वाले देश को अमेरिका के हाथों में जाने नहीं देना चाहते। सीरिया में रूस का नौसैनिक अड्डा भी है। सीरिया के शासकों को रूस का संरक्षण और ईरान, हिज्जबुल्ला का साथ नहीं मिला होता तो उनका हस्र भी लीबिया की तरह हो गया होता। ‘अरब बसंत’ के नाम पर 2011 में शुरू हुआ जनाक्रोश सीरिया में भी अभिव्यक्त हुआ था। इस जनाक्रोश की लहर का फायदा उठाकर सीरिया में कब्जे के अपने मंसूबों में सफलता नहीं मिलने के बाद से अमेरिकी व पश्चिम साम्राज्यवादी एक के बाद एक घृणित षड्यंत्र व चालें चलते रहे हैं। वर्तमान रसायनिक हमले की कहानी के असली सूत्रधार अमेरिकी साम्राज्यवादी, जितना सीरिया की जनता के मसीहा बनने की कोशिश कर रहे हैं; वे उतने ही नंगे साबित हो रहे हैं। सीरिया की जनता में आज असद की सरकार का आधार 2011 के मुकाबले काफी बढ़ चुका है। असद आज पहले से ज्यादा मजबूत स्थिति में है।<br />
    फिलवक्त, सीरिया में अमेरिकी साम्राज्यवादी हमले का बहाना ढूंढ रहे हैं। यह तथाकथित रसायनिक हमले की कहानी रूसी साम्राज्यवादियों के मुखर विरोध के बाद बहुत अधिक उसके काम आने वाली नहीं है।   

आलेख

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सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।

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समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

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फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

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यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।