16 अगस्त 2022 : मारिकाना नरसंहार

मज़दूर संघर्षों का इतिहास

मारिकाना नरसंहार

मज़दूर_संघर्षों_का_इतिहास

(हत्याकांड के बाद 'नागरिक' अखबार में छपा लेख)

▪️दक्षिण अफ्रीका के प्लेटीनम खदान मजदूरों का भीषण नरसंहार

दक्षिण अफ्रीका की मारिकाना स्थित लोनमिन कंपनी की प्लेटीनम खदान के मजदूर 10 अगस्त से हड़ताल पर हैं। ये वे मजदूर हैं जो जमीन के भीतर एक मील तक चट्टानों को तोड़कर प्लेटीनम नामक बहुमूल्य धातु बाहर लाते हैं। इनका काम जानलेवा है और मजदूरी बहुत कम। इस कम मजदूरी के विरूद्ध 3000 मजदूर हड़ताल पर गये। इनको चट्टानों को तोड़ने वाले ऑपरेटर कहा जाता है। ये मजदूर खदान के ऊपर पहाड़ी पर चढ़ गये थे। वे मजदूरी में बढोत्तरी की मांग कर रहे थे।

16 अगस्त के दिन दक्षिण अफ्रीका की पुलिस ने उन पर बहशियाना हमला बोल दिया। पुलिस बल का एक हिस्सा आंसू गैस, पानी की तेज बौछारें फेंकने वाले पाइप और अन्य हथियारों के बल पर मजदूरों को पहाड़ी से नीचे खदेड़ने में लगा था और दूसरा हिस्सा स्वचालित हथियारों तथा हथियारबंद गाड़ियों के साथ आगे बढ़कर अंधाधुंध गोलियां बरसा रहा था। इनके ऊपर से मदद के लिए हेलीकाॅप्टर लगे थे। एक तरफ निहत्थे मजदूर और दूसरी तरफ अत्याधुनिक हथियारों से लैस पुलिस थी। यह पुलिस लोनमिन कंपनी की मदद से मजदूरों का नरसंहार कर रही थी। 

16 अगस्त, 2012 का दिन दक्षिण अफ्रीका के रक्त पिपासु शासकों द्वारा मजदूरों पर बरपा किये गये अत्याचार का वह ऐतिहासिक काला दिन है ‘जिसने 34 मजदूरों की नरसंहार कर दिया’ और 76 से ज्यादा मजदूरों को गंभीर रूप से घायल कर दिया। इस दौरान 259 लोगों को गिरफ्तार करके जेलों में ठूंस दिया गया। इन लोगों पर हत्या या हत्याओं की कोशिश करने के आरोप मढ़ दिये गये।

दक्षिण अफ्रीका की सत्ताधारी पार्टी अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस अपने अतीत के गुणगान करके वर्तमान में देशी-विदेशी पूंजीपतियों की सेवा में लगी है। 

अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस ने रंगभेदवादी हुकूमत के विरुद्ध लम्बे संघर्ष के बाद इसने सुलह-समझौते के जरिए रंगभेदवादी सरकार के स्थान पर बहुमत की सरकार बनाने में सफलता पाई, लेकिन इस सुलह-समझौते से मिली सत्ता में गोरे पूंजीपतियों के हित सुरक्षित रखे। दक्षिण अफ्रीका में सोना, हीरा और प्लेटीनम का भारी भंडार है। इनके मालिक बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं। लोनमिन कंपनी का मुख्यालय लंदन में है और इसे पहले (गोरी नस्लवादी हुकूमत के समय) लोन्थो नाम से जाना जाता था। उस समय इसका मुखिया ‘छोटा’ रोलैण्ड नामक व्यक्ति था। इस कंपनी को अनुदारवादी ब्रिटिश प्रधानमंत्री तक ने ‘‘पूंजीवाद का अप्रिय एवं अस्वीकार्य चेहरा’’ कहा था।

सोना, हीरा और प्लेटीनम की कंपनियों के देशी-विदेशी मालिकों के मुनाफे में पिछले 19 वर्षों में बेशुमार बढ़ोत्तरी हुई है जबकि खदान मजदूरों का जीवन दूभर हो रहा है। अभी मई महीने में ही लोनमिन कंपनी ने 9000 मजदूरों को नौकरी से बाहर कर दिया था। 

इस कंपनी में मजदूरों की काम की स्थितियां अत्यंत दयनीय हैं। सुरक्षा के उपाय न के बराबर हैं। रहने की जगहों की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। लोग बोरों के छप्पर डालकर रहने को मजबूर हैं। पीने के लिए साफ पानी नहीं है। अत्यंत अस्वास्थ्यकर परिस्थिति में मजदूर रहते हैं। मजदूरों को इतनी मजदूरी नही मिलती कि वे अपने बच्चों को पढ़ाने की फीस दे सकें। 

लोनमिन व अन्य प्लेटीनम कंपनियां ठेकेदारों के जरिए मजदूरों को रखते हैं। सस्ते मजदूरों की भरती के लिए वे दलालों/ठेकेदारों के माध्यम से अफ्रीका के अन्य देशों से मजदूरों को ले आते हैं। इन सबके कारण मजदूरों में गुस्सा लम्बे समय से पनप रहा था।

दक्षिण अफ्रीका की सरकार अपनी आर्थिक नीतियों को पूंजीवादी ढर्रे पर बना व लागू कर रही है। इसने उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण की तर्ज पर देश की अर्थव्यवस्था को देशी-विदेशी मगरमच्छों के लिए खुला छोड़ दिया है। इसने ‘कल्याणकारी राज्य’ की नीतियों को कभी लागू किया ही नहीं। यही कारण है कि शायद नामीबिया को छोड़कर दक्षिण अफ्रीका दुनिया का सबसे गैर-बराबरी वाला देश है। 

एक तरफ भयावह गरीबी में जीने वाले लोग हैं। दूसरी तरफ छोटी सी पूंजीपतियों, राजनेताओं, ट्रेड यूनियन नेताओं की मंडली है जो देश की सम्पदा पर कुंडली मारकर बैठी हुई है। बेरोजगारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 25 प्रतिशत है। कुछ अनुमानों के अनुसार यह 40 प्रतिशत तक हो सकती है।

इन सब कारणों से दक्षिण अफ्रीका एक विस्फोट के कगार पर है। जन-असंतोष गुस्से का रूप लेकर जगह-जगह हिंसक झड़पों में व्यक्त हो रहा है। इसी जन असंतोष की एक कड़ी मारिकाना के खदान मदजूरों का संघर्ष था।

इस संघर्ष को खून की नदी में तब्दील करने से अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की जूमा की सरकार का रक्तपिपासु चेहरा सामने आ गया है। इसने न सिर्फ दक्षिण अफ्रीका के न्यायप्रिय व जनवादी लोगों के विवेक व संवेदना को झकझोरा है, बल्कि समूची दुनिया के सचेत मजदूरों, न्याय प्रिय लोगों और जनवादी ताकतों के विवेक व संवेदना को झकझोर दिया है। 

 

यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका की हुकूमत कटघरे में आ गयी है। जिस जूमा को सुनने के लिए लोग लालायित रहते थे उसे मजदूर वर्ग अब सुनना नहीं चाहता। राष्ट्रपति जूमा ने 23 अगस्त को मारे गये मजदूरों की याद में ‘राष्ट्रीय शोक दिवस’ मानने का आह्वान किया। लेकिन मजदूरों ने उनको नहीं सुना। मारिकाना में जाकर रक्षामंत्री ने माफी मांगी। मजदूरों ने नहीं सुना। राष्ट्रपति जैकब जूमा ने कहा ‘‘जो कुछ हुआ है, बहुत दुखद है। हम सभी आप लोगों के साथ रो रहे हैं’’ मजदूरों ने उनके इस ढोंग पर विश्वास नहीं किया।

 

जबकि हकीकत यह है कि राष्ट्रपति जैकब जूमा की हुकूमत ने काले लोगों में कुछ ऊपरी तबके के लोगों को मालामाल करने में ही अपनी ताकत व समझ लगायी है। दक्षिण अफ्रीका के काले अभिजातों में 534 ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी कुल सम्पदा 72 अरब अमरीकी डालर के बराबर है।

 

सबसे निकृष्ट भूमिका में राष्ट्रीय खदान मजदूर यूनियन का नेतृत्व रहा है। अभी तक इस यूनियन में 3 लाख सदस्य थे। यह कांग्रेस ऑफ साउथ अफ्रीकन यूनियन्स से सम्बद्ध है। राष्ट्रीय खदान मजदूर यूनियन का अस्तित्व 1986 में आ गया था। यह अफ्रीकी खदान मजदूर यूनियन गोरी रंगभेदवादी सरकार के समय बनी थी और उसने 12 अगस्त, 1946 को हड़ताल का आह्वान किया था। 16 अगस्त तक चली इस हड़ताल को गोरी रंगभेदवादी सरकार ने कुचल दिया था। इसमें 9 मजदूर मारे गये थे और सैकड़ों ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। इसमें दक्षिण अफ्रीका की कम्युनिस्ट पार्टी और अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के नेता शामिल थे। 

 

हालांकि यह हड़ताल कुचली गयी थी। लेकिन इस हड़ताल के बाद दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदवादी गोरी सरकार के विरुद्ध लड़ाई एक नयी ऊंची मंजिल में पहुंच गयी थी। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस ने अपनी एक हथियारबंद शाखा का गठन किया था।

 

उसी परम्परा से अपने को जोड़ने वाला राष्ट्रीय खदान मजदूर यूनियन का नेतृत्व इस समय लोनमिन कंपनी के पक्ष में खड़ा है और खदान मजदूरों का विरोधी हो चुका है। इसका पूर्व अध्यक्ष सिरिल रमाफोसा खुद करोड़पति हो चुका है और लोनमिन के निदेशक मंडल का सदस्य है। इसके सचिव ने पुलिस नरसंहार का समर्थन किया है। वह खुद मजदूरों को अराजकतावादी बता रहा है। चूंकि राष्ट्रीय खदान मजदूर यूनियन का मजदूरों के बीच जनाधार खिसक रहा है इसलिए वे और अधिक बोैखला गये हैं। राष्ट्रीय खदान मजदूर यूनियन के अध्यक्ष की यह हिम्मत नहीं हुई कि वह मरिकाना के खदान मजदूरों के बीच खुलेआम जाए। वह पुलिस की गाड़ी में बैठकर मजदूरों को सम्बोधित कर रहा था। इस खदान मजदूर यूनियन का चरित्र मजदूर विरोधी सिद्ध हो चुका है।

 

इस संघर्ष का नेतृत्व हाल ही में गठित एशोसियेशन ऑफ माइन वर्कर्स एण्ड कांस्ट्रक्शन यूनियन कर रही थी। इसका साथ अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस से निलम्बित उसका एक समय का युवा नेता जुलियस कालेका कर रहा है। लेकिन जुलियस कालेका का दृष्टिकोण वही है जो अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस का है। इसीलिए विभिन्न प्लेटीनम कंपनियों के मालिक व प्रबंधकगण यह चाहते हैं कि राष्ट्रीय खदान मजदूर यूनियन के साथ-साथ एशोसियेशन ऑफ माइन वर्कर्स एंड कास्ट्रक्शन यूनियन को भी मान्यता दे दी जाए। यह यूनियन अभी तो लड़ाई में खदान मजदूरों के साथ है लेकिन यह भी मजदूरों के संघर्ष को दूर तक नहीं ले जाना चाहती।

 

इस नरसंहार के बाद मजदूरों का संघर्ष न सिर्फ मारिकाना में बल्कि आसपास के अन्य प्लेटिनम खदान मजदूरों के बीच जारी है। शहीद मजदूरों की याद में मारिकाना खदान की पहाड़ी पर विभिन्न खदान कम्पनियों के हजारों मजदूर इकट्ठे हुए। कई खदान कम्पनियों में यह संघर्ष फैल रहा है। एंग्लो अमेरिकन प्लेटिनम कम्पनी और राॅयल बैफोकेंग प्लेटिनम के मजदूरों ने वही मजदूरी में बढ़ोत्तरी की मांग की है जो मारिकाना के खदान मजदूर कर रहे हैं। इसमें भी उन्होंने राष्ट्रीय खदान मजदूर यूनियन के जरिए यह मांग नहीं की है। उन्होंने खुद अपने प्रतिनिधि चुनकर यह मांग की है। इसकी सफाई एशोसियेशन ऑफ माइन वर्कर्स एवं कांस्ट्रक्शन यूनियन के नेताओं ने यह कहकर की है कि वे इस मांग के पीछे नहीं हैं। यह कहने का यह एक आधार है कि वे इस संघर्ष को और आगे नहीं बढ़ाना चाहते।

 

दक्षिण अफ्रीका के प्लेटिनम खदान मजदूरों का यह संघर्ष और इस संघर्ष में हुई शहादत का बदला न सिर्फ दक्षिण अफ्रीका का मजदूर वर्ग लेगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर पूंजीवाद की कब्र खोदने में अपने प्रयासों को कई गुना बढ़ाकर वह बदला लेगा।

 

लेकिन उसे यह कहते हुए यह ध्यान में रखना चाहिए कि अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की एक हद तक सकारात्मक भूमिका अल्पमत की गोरी रंगभेदवादी हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष करने में जो थी वह अब समाप्त हो गयी है। नेल्सन मण्डेला की विरासत को संभालने वाले लोग वे काले अभिजात व पूंजीपति वर्ग हैं जो काले लोगों के सशक्तीकरण के फलस्वरूप फले-फूले हैं और मजदूर-मेहनतकश वर्ग के दुश्मन हैं।

 

यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका की सत्ता में वे काले लोग हैं जो लीबिया में ‘नो फ्लाई जोन’ के नाटो के प्रस्ताव का संयुक्त राष्ट्र संघ में समर्थन करते हैं। इसके कारण लीबिया में 80 हजार या इससे ज्यादा लोग मौत के घाट उतार दिये गये।

 

दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला की विरासत वाली सत्ता भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुयी है। साम्राज्यवाद की कनिष्ठ साझेदार है। देशी-विदेशी पूंजीपतियों की हितसाधक है और मजदूर वर्ग की दुश्मन है।

 

जब तक मजदूर वर्ग व उसके मेहनतकश सहयोगी अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और उसकी सत्ता में सहयोगी दक्षिण अफ्रीका की तथाकथित कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस आफ साउथ अफ्रीकन ट्रेड यूनियन उनके असली मजदूर-मेहनतकश विरोधी चरित्र को नहीं पहचान लेंगे तब तक 16 अगस्त के शहीदों के बलिदान का बदला नहीं लिया जा सकेगा। दक्षिण अफ्रीका और दुनियां के मजदूरों को कहना होगा ‘‘जो खून गिरा है धरती पर उस खून का बदला हम लेंगे’’।

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