बुलडोज़र (तीन कविताएं) -प्रियदर्शन

एक
उनका वाद्य यन्त्र है बुलडोज़र
उसकी ध्वनि उन्हें संगीत लगती है
(बजा दी सालों की - यही भाषा है न उनकी !)
ध्वंस उनकी संस्कृति है
सदियों पुरानी मजबूत इमारतें भी ढहाते हैं
और बरसों पुरानी झुग्गियां भी।

वे स्मृति से घृणा करते हैं
क्योंकि उसमें उनको अपना बर्बर और मतलबी चेहरा दिखता है
वे एक साफ-सुथरा इतिहास बनाना चाहते हैं
लेकिन उसके पहले मिटाना चाहते हैं
वह सारा निर्माण
जो मनुष्य की रचनात्मक मेधा का परिणाम है।

जो उनके इस दावे को देता है चुनौती
कि उनके आने से पहले कुछ हुआ ही नहीं
और जो हुआ वह बस विधर्मियों का अत्याचार था।

बामियान से बाबरी तक
बदलती पहचानों और बदलते निशानों के बावज़ूद
वे बिल्कुल एक हैं
पसीना-पसीना माथे-पीठ और मन पर ढोते हुए बुलडोजर
चलाते हुए टैंक
और गाते हुए विध्वंस का बर्बर गीत।
बुलडोजर उनका वाद्य यन्त्र है।

दो
वैसे तो वह एक विराट कल-पुर्जा भर है
जिसे तोड़ने के लिए तैयार किया गया है।
लेकिन उस पर बैठा कौन है?
कौन उसे चला रहा है?
और चलाने वाले को भी क्या कोई दे रहा है आदेश?
और उस आदेश देने वाले को कौन आदेश दे रहा है?
कहां से चलता है बुलडोजर
इसी से तय होता है किस पर चलता है बुलडोजर।

जो जहांगीरपुरी पर चला, वह नागपुर वाला बुलडोजर था
वह नाजी जर्मनी के कारखाने में बना था।
उसे इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया गया था
लेकिन वहीं से उसे उठाकर लाए
हिटलर के भारतीय वारिस

अब वे उसे विकास का नया माडल बताते हैं।
वे एक पवित्र धरती की रचना कर रहे हैं
जिसे गरीबों के ख़ून से धोकर शुद्ध किया जा रहा है।

जहां-जहां उनका रथ जाता है, ख़ून की लकीर बनती जाती है ।
वे हत्या के उत्सव का एक अमूर्त चित्र बना रहे हैं।

यह उनकी बुलडोजर कला है।

तीन
वे खुद एक विराट बुलडोजर हो चुके हैं
यही उनकी महत्वाकांक्षा थी
लोग उनसे डरें
दूसरों को कुचल डालने की उनकी क्षमता पर भरोसा करें।

उन्होंने बार-बार साबित किया है कि वे बेहद कार्यकुशल बुलडोजर हैं
उन्हें मालूम है, क्या कुचलना है।

उन्होंने न्याय को कुचला
उन्होंने विवेक को नष्ट किया
उन्होंने प्रेम और सद्भाव को बिल्कुल चिपटा कर डाला
उन्होंने बलात्कार से फेर ली आंखें
स्त्रियों पर अत्याचार उन्हें पसन्द नहीं
लेकिन कभी-कभी यह ज़रूरी हो जाता है
जब लक्ष्य बड़ा हो तो छोटी-छोटी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं।

उन्होंने बहुत सारे छोटे-छोटे बुलडोजर भी बनाए।
खड़ी कर दी बुलडोजरों की सेना
जो अब इस मुल्क की सुरक्षा करती है
शत्रुओं का खोज-खोज कर संहार करती है
उनकी लिस्ट बनाती है
पहले रात के अन्धेरे में जो करती थी
वह दिन के उजाले में करती है
वे इस मुल्क को एक महाविराट बुलडोजर में बदलने की 
परियोजना चलाना चाहते हैं
मगर यह कमबख्त सदियों पुराना, अपनी बेडौल स्मृतियों में हिलता-डुलता, 
हर किसी को बसेरा देने को आतुर मुल्क
एक विशाल पेड़ से अलग कुछ होने को तैयार नहीं ।
बुलडोजर यहां हार जाते हैं, लेकिन उनका अहंकार भी बचा हुआ है, उनके वार भी जारी हैं।
देखें कब तक बचा रहता है मुल्क
और कब तक बचे रहते हैं हम।
साभार : ांअपजांवेण्वतह

आलेख

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