भारतीय अर्थव्यवस्था बदहाल

पिछले वित्त वर्ष में संगठित रिटेल सेक्टर के कारोबार में 4 प्रतिशत की गिरावट आई

नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में अब जनता की आशाओं पर तुषारापात होने लगा है। पिछले 10 साल से सत्ता पक्ष ने अपनी गढ़ी कहानियों के जरिये लोगों में कुछ बेहतर करने की उम्मीदें जगा रखी थीं। संयोगवश पिछले कुछ महीनों से एक के बाद एक कहानी बिखरती चली गयी हैं। बल्कि इस घटनाक्रम को इस तरह समझा जा सकता है कि कहानियों में शुरू से ही झोल (घालमेल) था, अब ये तेजी से उधडनें लगी हैं, जिस पर देर-सबेर सबकी नजर टिकने लगी है। 
    
अर्थव्यवस्था की तेजी से बढ़ती हुयी वृद्धि, इन्फ्रास्ट्रक्चर (हाइवे, हवाई अड्डे आदि) का निर्माण और मोदी काल में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ना, इन कहानियों को हिन्दुत्व के साथ जोड़कर मोदी सरकार ने अपना आभा मंडल तैयार किया था। पिछले कुछ महीनों में ये कहानियां ढहती दिखती हैं। जैसी गुणवत्ता के ये इन्फ्रास्ट्रक्चर बने उसकी पोल बरसात के महीने में रोजमर्रा के स्तर पर खुली है। ट्रेन दुर्घटनाओं और वीआईपी ट्रेनों (वन्देभारत, प्रीमियम) में खराब इंतजाम की अनेकों खबरां का जिक्र किया जा सकता है। 
    
विदेशों में प्रतिष्ठा की कहानी तो 2023 से ही संदेह में आने लगी थी, अब सवाल ज्यादा गहरे हो गये हैं। यहां हम अर्थव्यवस्था की तीव्र वृद्धि और उसको लेकर जगाई गयी खुशहाली की कहानी पर ध्यान केन्द्रित करेंगे, क्योंकि अब सच्चाई सामने आने लगी है, जिससे लोगों को कम ज्यादा अहसास होने लगा है कि उन्हें अब तक किस भ्रम जाल में रखा गया था। 
    
केन्द्रीय वित्त मंत्रालय ने जुलाई की मासिक आर्थिक समीक्षा की रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि वर्तमान आर्थिक स्थिति, रोजगार, महंगाई और आय को लेकर उपभोक्ताओं का वार्षिक भरोसा घट गया है। यानी उपभोक्ताओं को यह यकीन ही नहीं रहा कि उक्त मोर्चों पर अगले एक साल में कोई सुधार संभव है। 

* इसमें यह भी स्वीकार किया गया है कि भविष्य को लेकर उद्योग क्षेत्र का नजरिया नकारात्मक है। यानी उद्योगपतियों को भी यकीन नहीं है कि बाजार की स्थिति जल्द सुधरने वाली हो।

* वित्त मंत्रालय इन दोनों निष्कर्षों पर भारतीय रिजर्व बैंक के सर्वेक्षणों के आधार पर पहुंचा है। 

* रिपोर्ट में कहा गया है - रिजर्व बैंक के औद्योगिक नजरिए सर्वे से जाहिर हुआ है कि वर्तमान स्थिति और भविष्य को लेकर उद्योग क्षेत्र के आंकलन में गिरावट आई है। उत्पादन बढ़ने, ज्यादा आर्डर मिलने, रोजगार बढ़ने और निर्यात बढ़ने से सम्बन्धित उसकी उम्मीदें कमजोर हुई हैं। 
त्रयह सब कहने के बाद भी रिपोर्ट में भरोसा जताया गया है कि भारत जीडीपी में चालू वित्त वर्ष में 6.5 से 7 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि दर हासिल करेगा।
    
आम उपभोक्ता हो या कारोबार जगत भविष्य को लेकर उसका भरोसा कमजोर पड़ा है, उसकी वजहें ठोस हैं। 

* जुलाई में भारत के निर्यात में 1.48 प्रतिशत की गिरावट, जबकि आयात 7.46 प्रतिशत बढ़ा। इस तरह भारत का व्यापार घाटा 23.5 अरब डालर तक पहुंच गया। ये आंकड़े भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने जारी किये। पिछले वर्ष जुलाई में भारत का व्यापार घाटा 19 अरब डॉलर था। 
    
संगठित रिटेल सेक्टर में 2023-24 में हजारों कर्मचारियों की छंटनी, पांच बड़े रिटेलर्स रिलाइंस इण्डस्ट्रीज की रिटेल शाखा, टाइटन, रेमण्ड, पेज और स्पेन्सर्स ने 52 हजार कर्मचारी हटाये। 
    
कुल मिलाकर पिछले वित्त वर्ष में संगठित रिटेल सेक्टर के कारोबार में 4 प्रतिशत की गिरावट आई। 
    
संगठित रिटेल सेक्टर का यह हाल भारत में बेहतर क्रय शक्ति वाले उपभोक्ताओं की माली सूरत बिगड़़ने का संकेत है। दरअसल जब बाजार में मांग बढ़ रही होती है तो नये स्टोर खुलते हैं और उसमें नई नौकरियां पैदा होती हैं। मांग का सीधा सम्बन्ध आय बढ़ने से है। जबकि भारत की सच्चाई यह है कि औसत आय में गिरावट दर्ज हुई है। कमरतोड़ महंगाई ने लोगों की आमदनी का मूल्य गिरा दिया है। जिसका परिणाम यह हुआ कि लोगों ने अपने खर्चे घटाये, जिसकी वजह से कारोबार सिकुड़े और नौकरियां घटी हैं। 
    
जब संगठित क्षेत्र का यह हाल है तो असंगठित क्षेत्र का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी हफ्ते वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयुष गोयल ने एक समारोह में ई-कामर्स की भारत में वृद्धि से ‘‘बड़े पैमाने पर सामाजिक अस्त व्यस्तता’’ पैदा हो सकती है जिसका असर 10 करोड़ छोटे व्यापारियों पर पड़ेगा, यह बात एक संस्था के रिपोर्ट जारी होने के मौके पर बोल रहे थे। रिपोर्ट ‘भारत में रोजगार एवं उपभोक्ता कल्याण पर ई-कामर्स का सम्पूर्ण प्रभाव’ शीर्षक से जारी हुई है। जबकि इसके पहले वे इन्हीं कम्पनियों को देश के करोड़ों खुदरा कारोबारियों की बढ़ती मुसीबत का कारण बता चुके थे। और ये और बात है कि बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि वे ई-कामर्स कम्पनियों के खिलाफ नहीं हैं।
    
गोयल ने अमेजन कम्पनी पर निशाना साधते हुए उस पर ‘कीमत तय करने की रणनीति से लूटना’ (Predatory Pricing) का आरोप लगाया। फिर पूछा कि- ‘क्या कीमत’ तय करने का लुटेरा चलन देश हित में है? 
    
अमेजन जब कहती है कि अरबों डालर का निवेश करेगी तो हमें अच्छा लगता है लेकिन हम अंदरूनी कहानी भूल जाते हैं कि ये अरबों डालर किसी बड़ी सेवा या भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सहायक किसी बड़े निवेश के लिए नहीं आ रहा है। यह कम्पनी अपना घाटा पाटने के लिए ला रही है। लेकिन अरबों डालर का घाटा हुआ क्यों? गोयल का कहना है कि इन कम्पनियों का घाटा छोटे कारोबारियों को व्यापार से बाहर करने के लिए चीजें सस्ती दरों पर बेचने के कारण हुआ जिसके लिए अरबों डालर पाटने के लिए लाये गये। 
    
ताजा खबरों व पीयुष गोयल के भाषण से झलके असंतोष से तो यह साफ होता ही है कि उच्च आर्थिक वृद्धि दर को केन्द्र में रखकर देशवासियों की खुशहाली गढ़ी गयी, अब यह कहानी किसी को आकर्षित नहीं कर पा रही है। जमीनी स्तर पर यह आकर्षण के बजाय आक्रोश पैदा करने वाला है। इसका संकेत लोकसभा चुनाव रहा है। अन्य लोग भी अब समझने लगे हैं जो कथित ग्रोथ है, उसका आम जिन्दगी से कोई रिश्ता नहीं है, यह गणना का खेल है, जिसमें लोगों को भरमाया जाता है, उपरोक्त भाषण में गोयल ने जिस अमेजन के अरबों डालर निवेश की चर्चा की है, तो उसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिना जाता है, तथा साथ ही जीडीपी के आंकड़ों में भी गिना जाता है जबकि गोयल ने खुद कहा कि उसका इस्तेमाल करोड़ों खुदरा व्यापारियों की मुसीबत बढ़ाने में किया जाता है। 
    
स्टाक, बांड और ऋण के फैलते बाजार की भी कुछ ऐसी कहानी है क्योंकि केन्द्रीय वित्त मंत्रालय अभी भी वास्तविक स्थिति की चर्चा करने के बाद जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान के आधार पर अर्थव्यवस्था के सही दिशा में होने का दावा कर रहा है। मगर विकास एवं बदहाली का तीखा होता अंतर्विरोध आज की सच्चाई है। इस बदहाली से उपज रहे जनअसंतोष का क्या आलम है, यह पश्चिम बंगाल से लेकर बदलापुर तक की सड़कों/रेल पटरियों पर दिखा है। ऐसी घटनाएं आज इतनी आम हो गयी हैं कि अब उन्हें एक ट्रेंड के रूप में देखा जाना चाहिए। मुद्दे अलग-अलग हैं लेकिन उबाल को जोड़ने के लिए सूत्र की तलाश की जा सकती है और वो यह है कि लोग अपनी जिन्दगी से परेशान हैं और उनकी बेसब्री बढ़ती जा रही है। 

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता