भगतसिंह के जन्मदिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

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शहीद भगतसिंह हमारे देश के अविस्मरणीय क्रांतिकारी हैं। मात्र 23 वर्ष की छोटी सी उम्र में हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गये इस युवा का बलिदान आज भी लोगों के दिलों पर अंकित है। भगतसिंह क्रांति के प्रतीक हैं। भगतसिंह स्पष्ट कहा करते थे कि क्रांति से उनका आशय पूंजीवादी व्यवस्था का अंत कर मजदूरों-किसानों का शासन कायम करना है। वे 1917 की रूस की क्रांति से बेहद प्रभावित थे और जेल में अपने अंतिम दिनों में लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। 
    
देश के क्रांतिकारी-प्रगतिशील संगठन प्रति वर्ष भगतसिंह के जन्मदिवस पर विभिन्न कार्यक्रम करते हैं और उनके क्रांतिकारी जीवन व विचारों से लोगों को परिचित कराते हैं।
    
इस बार दिल्ली में बवाना औद्योगिक क्षेत्र में 28 सितम्बर को उनके जन्मदिवस पर भगतसिंह यादगार सभा का आयोजन किया गया; सभा से पूर्व क्षेत्र में जुलूस भी निकाला गया। सभा में वक्ताओं ने कहा कि भगतसिंह न सिर्फ ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को देश से खदेड़ना चाहते थे अपितु वे देश के पूंजीपतियों और जमींदारों द्वारा मजदूरों-किसानों के शोषण का भी अंत कर देना चाहते थे। इंकलाबी मजदूर केंद्र और मजदूर एकता समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के  कार्यकर्ताओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा औद्योगिक क्षेत्र के मजदूरों ने भी भागीदारी की।
    
हरिद्वार में इंकलाबी मजदूर केंद्र एवं प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा शहर में विभिन्न जगहों पर एक सप्ताह का व्यापक प्रचार अभियान चलाया गया। इस दौरान पोस्टर प्रदर्शनी और पर्चे के माध्यम से शहीद भगतसिंह के क्रांतिकारी जीवन और विचारों से लोगों को परिचित कराया गया। साथ ही, क्रांतिकारी साहित्य का स्टाल भी लगाया गया। प्रचार अभियान के दौरान लोगों को बताया गया कि भगतसिंह के सपने आज भी अधूरे हैं, कि अंग्रेज भले देश से चले गये लेकिन देश की मजदूर-मेहनतकश जनता आज भी पूंजीवादी शोषण की चक्की में बुरी तरह पिस रही है।
    
काशीपुर में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, इंकलाबी मजदूर केंद्र और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा एस डी एम कोर्ट के निकट चौराहे पर सभा का आयोजन किया गया। साथ ही, पोस्टर प्रदर्शनी के माध्यम से भगतसिंह के क्रांतिकारी जीवन को प्रदर्शित किया गया। सभा में वक्ताओं ने कहा कि आज केंद्र की सत्ता पर हिंदू फासीवादी भाजपा और आर एस एस काबिज हैं, जिन्हें इजारेदार पूंजीपतियों का पूर्ण समर्थन हासिल है। इन फासीवादी ताकतों के शासन काल में मुट्ठी भर पूंजीपति दिन दूना-रात चौगुना मुनाफा कमा रहे हैं जबकि बहुसंख्यक मजदूर-मेहनतकश जनता त्राहि-त्राहि कर रही है।
    
रामनगर में शहर में दो स्थानों पर क्रांतिकारी साहित्य का बुक स्टाल लगाया गया एवं भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर 28 सितम्बर को सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। सांस्कृतिक संध्या में क्रांतिकारी-प्रगतिशील एवं लोकगीत गाये गये तथा भगतसिंह के क्रांतिकारी विचारों पर बात की गई। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि भगतसिंह और उनके साथी साम्प्रदायिक ताकतों का सख्त विरोध करते थे। सांस्कृतिक संध्या में इंकलाबी मजदूर केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।     
    
इसके अलावा रामनगर के डिग्री कालेज में परिवर्तनकामी छात्र संगठन द्वारा पुस्तिका एवं पर्चे के माध्यम से कक्षाओं में छात्रों के मध्य अभियान चलाया गया और उन्हें शहीद भगतसिंह के क्रांतिकारी जीवन से परिचित कराया गया।
    
हल्द्वानी डिग्री कालेज में परिवर्तनकामी छात्र संगठन द्वारा भगतसिंह का जन्मदिवस मनाया जाना आर एस एस-भाजपा से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को रास नहीं आया और इस संगठन से जुड़े गुंडा-लम्पट तत्वों ने न सिर्फ कार्यक्रम को बीच में रोक दिया अपितु पछास के कार्यकर्ताओं से मारपीट भी की। इस दौरान घटनाक्रम की कवरेज कर रहे हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार को भी इन्होंने नहीं बख्शा और उनके साथ भी मारपीट की गई। गौरतलब है कि देश के विभिन्न कालेज-विश्वविद्यालय परिसरों में ए बी वी पी की गुंडागर्दी चरम पर है; आर एस एस-भाजपा के फासीवादी उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये यह गुंड़ों की गैंग की तरह काम कर रहा है।
    
रुद्रपुर में पारले चौक पर भगतसिंह का जन्मदिवस मनाया गया जिसमें सैकड़ों की संख्या में महिला एवं पुरुष मजदूरों ने भागीदारी की। शहीद भगतसिंह की तस्वीर पर माल्यार्पण के साथ शुरू हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि आज हमारे देश की सत्ता पर आर एस एस-भाजपा और अडानी-अम्बानी जैसे इजारेदार पूंजीपतियों का गठजोड़ काबिज है। ये काली ताकतें मजदूरों, किसानों, अल्संख्यकों खासकर मुसलमानों, दलितों, महिलाओं, छात्रों सभी पर कहर बनकर टूट रही हैं। 
    
सभा में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि सभी लोग अपने घरों के दरवाजे पर लिखेंगे कि ‘‘यहां आर एस एस-भाजपा वालों का प्रवेश वर्जित है’’। साथ ही अपने क्षेत्र की जनता को भी ऐसा ही करने को प्रेरित करेंगे।
    
सभा को डाल्फिन मजदूर संगठन, इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, टेम्पो यूनियन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, श्रमिक संयुक्त मोर्चा, इंटरार्क मजदूर संगठन पंतनगर एवं किच्छा, एडियंट कर्मकार यूनियन, डेल्टा एम्प्लोयीज यूनियन इत्यादि के प्रतिनिधियों ने सम्बोधित किया।
    
बलिया में इस अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन एवं ग्रामीण मजदूर यूनियन ने बखरिया डीह में जुलूस निकाला एवं सभा की। सभा में वक्ताओं ने कहा कि बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याओं को खत्म करने के लिये इस पूंजीवादी व्यवस्था का अंत अनिवार्य है।
        -विशेष संवाददाता
 

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इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी। 

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इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

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जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।