छात्र संघर्षों पर बढ़ता फासीवादी हमला

/chaatra-sangharson-par-badhata-faseevaadi-hamala

बीते दिनों एक-एक कर संघर्षरत छात्र संगठनों पर संघी शासकों ने हमले बोलने का काम किया। दिसम्बर माह में मनुस्मृति जलाने वाले भगतसिंह स्टूडेंट्स मोर्चा के 13 छात्रों को पहले गंभीर धाराओं में मुकदमे कायम कर जेल भेजा गया। फिर जेएनयू में दीवार लेखन करते भगत सिंह छात्र एकता मंच के 4 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इन छात्रों की पुलिस कस्टडी में निर्मम पिटाई की गयी। ये छात्र बस्तर में आदिवासियों पर ढाये जा रहे जुल्म के खिलाफ दीवार लेखन कर रहे थे। छात्रों से पूछताछ के लिए एनआईए तक को लगा दिया गया। 
    
इसके बाद नम्बर था जामिया मिलिया इस्लामिया वि.वि. के छात्रों का। जामिया के छात्र कुछ दिन से 4 छात्रों को नोटिस दिये जाने के विरोध में आंदोलनरत थे। इन छात्रों को नोटिस जामिया में जामिया प्रतिरोध दिवस मनाने के लिए दिया गया था। जामिया में 5 वर्ष पूर्व सीएए-एनआरसी विरोध के वक्त दिल्ली पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया था यहां तक कि लाइब्रेरी में घुसकर छात्रों की पिटाई पुलिस ने की थी। उक्त घटना की याद में जामिया प्रतिरोध दिवस मनाना संघी होते जा रहे जामिया प्रशासन को रास नहीं आया और उसने 4 मुख्य छात्रों को नोटिस भेज दिया। जामिया के छात्र बीते कुछ दिनों से इस नोटिस के विरोध में संघर्ष कर रहे थे। ऐसे में दिल्ली पुलिस कैम्पस में घुसकर करीब 20 छात्र-छात्राओं को गिरफ्तार कर लेती है और उनसे बदसलूकी करती है। यद्यपि बाद में इन छात्रों को छोड़ दिया गया। 
    
इसी कड़ी में श्रीनगर (गढ़वाल) में संघी लम्पट संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विरोध के चलते एक इण्टरकालेज में लगने वाला पुस्तक मेला आयोजक रद्द करने को मजबूर हो गये। एबीवीपी का कहना था कि पुस्तक मेले में वामपंथी पुस्तकें बेची जाती थीं। यद्यपि पुस्तक मेले में हर तरह का साहित्य रखा जाना था। 
    
प्रशासन-संघी लम्पटों का छात्र संघर्षों पर यह बढ़ता हमला दिखाता है कि संघ-भाजपा देश के कालेज-विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे जागरूक छात्रों से डरते हैं। उन्हें भय है कि कहीं चंद छात्रों की जागरूक आवाजें पूरे छात्र समुदाय की आवाज न बन जायें। इसलिए वे अपने विरोध की हर आवाज को खामोश कर देना चाहते हैं। 
    
हिंदू फासीवादी सोचते हैं कि कुछ छात्र संघर्षों का दमन कर, संघर्षरत छात्रों को जेल में डाल वे अपने खिलाफ तनने वाली हर मुट्ठी को तोड़ सकते हैं या झुका सकते हैं। पर उनकी यह ख्वाहिश गलत साबित होने को अभिशप्त है। 
    
बीते 8-10 वर्षों में मोदी सरकार के फासीवादी तांडव का छात्र आंदोलन ने आगे बढ़कर मुंहतोड़ जवाब दिया है। सत्ता का निर्मम दमन झेलकर भी फासीवादियों के हर हमले का उन्होंने विरोध किया है। आज भी कई छात्र नेता जेलों में बंद हैं तो कईयों ने कई वर्ष जेल में बिताये हैं। 
    
भारत के छात्र-युवा अपने इस प्रतिरोध से दिखा रहे हैं कि उनकी रगों में भगतसिंह का खून दौड़ता है जिसे आसानी से गोडसे के खून में नहीं बदला जा सकता। गोडसे के अनुयायी चाहे जितनी कोशिश कर लें वे भारत की धरती से भगत सिंह को विदा नहीं कर सकते। एक दिन गोडसे के अनुयायी-हिटलर के अनुयायी ही धरती से विदा हो जायेंगे और भगतसिंह हमेशा अमर रहेंगे। 

आलेख

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

/modi-government-fake-war-aur-ceasefire

युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

/fasism-ke-against-yuddha-ke-vijay-ke-80-years-aur-fasism-ubhaar

हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

/jamiya-jnu-se-harward-tak

अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।