केरल : वायनाड़ में भारी भू स्खलन से 300 लोगों की मौत

केरल में आपदा

वायनाड

केरल के वायनाड में चुरलमाला और मुंडक्कई में 30 जुलाई को भारी भू स्खलन हुआ। इसमें अभी तक 300 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर आ रही है। 200 के लगभग लोग लापता हैं। बचाव अभियान अभी जारी है। मौतों की संख्या अभी और बढ़ सकती है। चूंकि यह भू स्खलन रात को 1 बजे और 4 बजे के आस-पास हुआ जब सभी लोग सोये हुए थे इसलिए लोगों को बचाव का मौका नहीं मिला। 
    
30 जुलाई को हुए भू स्खलन ने केरल में अगस्त 2018 में आयी बाढ़ की विभीषिका के जख्मों को ताजा कर दिया है। इस बाढ़ आपदा में 500 के लगभग लोग मारे गये थे और भारी नुकसान हुआ था। 
    
भू स्खलन से जहां एक तरफ गम का माहौल है, लोग अभी इस घटना से उबर नहीं पाए हैं वहीं दूसरी तरफ केंद्र और राज्य सरकार के बीच में भू स्खलन की सूचना देने या न देने पर राजनीति होने लगी है। दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। जहां एक तरफ गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में कहा है कि केंद्र ने राज्य को 1 सप्ताह पहले ही भू स्खलन की सूचना दे दी थी वहीं केरल सरकार ने कहा है कि उन्हें सूचना भू स्खलन के बाद मिली। 
    
भू स्खलन की वजह से केरल के अटामाला, मुंडक्कई, चुरलमाला, नूलपुझा इलाके बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। भू स्खलन मैप्पाड़ी नामक जगह पर हुआ। भू स्खलन से 86,000 वर्ग मीटर की मिट्टी का मलवा नीचे आया और स्थानीय नदी इरूंजवी के साथ मिलकर 8 किलोमीटर तक किनारों को तोड़ता हुआ घरों को बहा ले गया। लोग या तो मलबे में दब गये या फिर मलबे के साथ बह गये। उनके शव पास के जिले मलाप्पुरम में सिलयार नदी में भी मिले हैं। 
    
केरल में भू स्खलन या बाढ़ की वजह से आने वाली तबाही कोई नई नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2022 तक देश में कुल 3782 भू स्खलन हुए जिसमें से केरल में 2239 भू स्खलन हुए हैं। 2021 में स्प्रिंगर की रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी घाट में इद्दुक्की, एरनाकूलन, कोत्तयम, वायनाड़, कोजिकॉड, मलाप्पुरम इलाके भू स्खलन के हिसाब से ज्यादा संवेदनशील हैं।
    
दरअसल केरल में जंगलों को काटकर प्लांटेशन (बागान) के जरिये चाय, काफी, इलाइची आदि की खेती की जाती है। वायनाड में 1950 में 85 प्रतिशत जंगल थे। 1950 से 2018 तक यहां 62 प्रतिशत जंगल खत्म हो गये और प्लांटेशन किया गया। इस वजह से जमीन की मिट्टी को पकड़ने की क्षमता कम हो गयी। केरल में कुल भू स्खलन के 59 प्रतिशत मामले प्लांटेशन (बागान) के इलाके में हुए।
    
पिछले सालों में तो प्लांटेशन की जमीन को दूसरे कामों के इस्तेमाल की भी अनुमति दे दी गयी है। इसने स्थिति को और खराब बना दिया है। पर्यटन और खनन का काम यहां तेजी से बढ़ा है। पर्यटन के लिए यहां जमीन को समतल बनाया गया है और इमारतों का काफी निर्माण किया गया है। चुरलमाला और मुंडक्कई में 5-6 किलोमीटर की दूरी पर ही खनन का काम होता है। इसने भी यहां की मिट्टी को भुरभुरा बना दिया है। 
    
केरल ही नहीं पूरे देश के अंदर बारिश के महीनों में भारी बारिश, बाढ़, भू स्खलन, बादल फटने की घटनाएं होती हैं। शहरों से लेकर दूर पहाड़ी स्थलों तक लोग इनमें मारे जाते हैं। कुछ घटनाएं राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खियां बन जाती हैं तो कुछ स्थानीय अखबारों में छपकर ही भुला दी जाती हैं। लेकिन इन घटनाओं से सबक सीखने को न तो केंद्र और न राज्य सरकारें तैयार हैं। अनियोजित व अवैज्ञानिक विकास पूंजीवाद की मूल विशेषता है जिस वजह से हर साल बारिश में भारी जान-माल का नुकसान होता है। मुनाफे के लिए पूंजीपति वर्ग और उनकी सरकारें प्रकृति का अंधाधुंध दोहन तो करते हैं लेकिन उसकी भरपाई नहीं की जाती। फलस्वरूप कहीं भारी बाढ़ और भू स्खलन तो कहीं सूखा लोगों के लिए भारी मुसीबत का कारण बनता है।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।