इलाहाबाद में महाकुंभ के दिन-रात जिस कदर ढिंढोरे संघ-भाजपा के नेताओं-पूंजीवादी मीडिया ने दिन-रात पीटे हुए थे, उसमें किसी बड़ी दुर्घटना की कई लोगों को आशंका हो रही थी। पहले कई पंडालों के जलने के बाद भी कुंभ का यशोगान बंद नहीं हुआ, हुक्मरानों को अक्ल नहीं आयी। अंततः 29 मार्च की अल सुबह भगदड़ ने 30 से अधिक निर्दोष लोगों की जान ले ली और ढेरों घायल हो गये। सरकार अब भी सबक लेने को तैयार नहीं है और (शुरू में मौत के आंकड़ों को छुपाने के बाद) ‘सब ठीक है’ प्रचारित करने में जुटी है और इस तरह और बड़ी अनहोनी को करीब लाने की कोशिश कर रही है।
29 मार्च को मौनी अमावस्या का बड़ा स्नान था। सरकार 9-10 करोड़ लोगों के एक दिन में स्नान करवाने का दम्भ भर रही थी। उसने ढेरों रेलें बिहार व अन्य जगहों से प्रयागराज के लिए चलाई थीं। जब सरकारी प्रचार के प्रभाव में लोग एक दिन पहले ही रात को वहां इकट्ठा होने लगे तब एक स्थानीय अधिकारी ने रात डेढ़ बजे ही आराम कर रहे लोगों को जबरन उठा कर तभी स्नान करने का आदेश दे दिया। अधिकारी संभवतः भारी भीड़ का अनुमान लगा लोगों को रात में ही नहला कर विदा करवाना चाहता था। पर उसके इस फरमान का जब लोगों ने विरोध किया तो लोगों को जबरन खदेड़ा जाने लगा और इस तरह भगदड़ मच गयी।
भगदड़ के बाद पीड़ितों की मदद से ज्यादा पुलिस बल की रुचि मीडिया मैनेजमेंट में थी। कुंभ में बनाये गये अस्थाई अस्पताल के भीतर मीडियाकर्मियों को जाने से रोक दिया गया। अव्यवस्था को फिल्माते पत्रकारों को भी रोका गया। पूरी कोशिश की गयी कि इस खबर को ही दबा दिया जाये। पर जब खबर बड़े चैनलों पर भी प्रसारित होने लगी तो मौत के आंकड़ों को ढंकने की कोशिश में महकमा जुट गया। इस सबके बीच लोग अपने बीमारों, बिछड़े लोगों की तलाश में भटकते रहे। अंततः सरकार को 30 लोगों की मौत का आंकड़ा स्वीकार मुआवजा घोषित करना पड़ा।
कुंभ में आये दिन नेताओं-कलाकारों के जमघट व उनके साथ वीआईपी ट्रीटमेंट से लोग पहले से परेशान थे। उनकी कारें एकदम संगम तक जा रही थीं वहीं आम जन 15-20 किमी तक पैदल चलने को मजबूर थे। इस घटना से एक दिन पूर्व ही गृहमंत्री अमित शाह व मुख्यमंत्री योगी को संतों ने वहां स्नान करवाया था। बाबा बागेश्वर ने तो कुंभ न आने वालों को देशद्रोही करार दिया था। योगी सरकार कुंभ को अपने लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना अरबों रुपये फूंक विश्व रिकार्ड बनाने में तुली थी। पूंजीवादी मीडिया दिन-रात कुंभ की खबरें दिखा देश को आस्थामय बनाने में जुटा था। एक धर्मनिरपेक्ष देश में सड़क पर नमाज पढ़ते मुसलमानों पर चिल्लाने वाले मीडिया को दिन-रात एक धार्मिक मेले का प्रसारण, सारे सरकारी संसाधनों का उस पर खर्च होना, मंत्री-नेताओं का वहां आना-जाना गलत नहीं लग रहा था। यहां तो उसे पावन आस्था नजर आ रही थी।
इतने भारी प्रचार का परिणाम यही होना था कि करोड़ों लोग संगम डुबकी लगाने आ पहुंचे और पहले से अव्यवस्था की शिकार व्यवस्था ध्वस्त होने लगी और भगदड़ निर्दोष श्रद्धालुओं की मौत का नाटक बन गयी। इस भगदड़ पर अब यही संघी नेता शोक जता रहे हैं। खुद योगी प्रचारित कर रहे हैं कि सभी घाटों पर स्नान का बराबर पुण्य लाभ है और आप जहां हैं उसी घाट पर नहा लें, मुख्य संगम स्थल तक न आयें।
दरअसल मोदी-योगी इस कुंभ आयोजन को दुनिया भर में भारत के गौरव के रूप में व सक्षम शासन के माडल के रूप में दिखाना चाहते थे। रिकार्ड बनाने के आदी योगी पहले भी दिये जलाने का रिकार्ड बना खुश होते रहे थे। अबकी वे कुंभ में 45 करोड़ लोगों को नहलाने का रिकार्ड बनवाने पर उतारू थे। दुनिया से ज्यादा यह आयोजन देशवासियों को देश के विकास के मामले में गफलत में डालने के लिए था। पर एक भगदड़ ने जब सारे विकास की पोल खोल दी तो संघी भगदड़ को ही नकारने में जुट गये।
योगी तो इस कुंभ को अपनी राजनैतिक पार्टी का एक अहम पायदान भी बनाना चाहते थे जिस पर चढ़कर वे दिल्ली तक जा पहुंचें। पर अब भगदड़ उनके राजनैतिक रंग में भंग पैदा कर चुकी है।
इस कुंभ की सफलता का ठीकरा अगर मोदी-योगी के सिर फूटना था तो भगदड़ का और उसमें हुई मौतों का ठीकरा भी उन्हीं के सिर फूटना चाहिए। दरअसल एक मेले को अपनी शोहरत के लिए राजनैतिक यज्ञ में बदलने वाले योगी-मोदी यज्ञ में बलि चढ़ने वाली जनता के खून के आरोप से नहीं बच सकते हैं। अफसोस की बात इतनी है कि वे अब भी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं।
कुंभ में भगदड़ : हुक्मरानों के यज्ञ में बलि चढ़ती निर्दोष जनता
राष्ट्रीय
आलेख
ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है।
आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।
ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है।
आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं?
सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।