हल्द्वानी/ 29 सितम्बर को प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखंड, नैनीताल ने भोजनमाताओं की मांगों को पूरा न किए जाने के विरोध में हल्द्वानी में सभा व जुलूस का आयोजन किया।
सभा में अलग-अलग ब्लाक से आयी भोजनमाताओं ने कहा कि सरकार के द्वारा उज्ज्वला गैस योजना का खूब हल्ला मचाया गया है। चुनाव से पहले व बाद में उज्जवला गैस योजना के सफल होने के बड़े-बड़े पोस्टर शहरों में लगाए गये हैं। लेकिन अभी तक सरकार के सभी स्कूलों में गैस-चूल्हे की व्यवस्था तक नहीं है जिससे भोजनमाताओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
रामनगर की भोजनमाता ने कहा कि बच्चे कम होने की स्थिति में भोजनमाताओं को काम से निकाल दिया जाता है बिना इस बात की चिंता किए कि जिस गरीब, विधवा व परित्यक्तता को काम से निकाल रहे हैं उसका जीवन कैसे चलेगा।
हल्द्वानी की भोजनमाताओं ने कहा कि हमसे, हमारे काम के लिए तय जी.ओ. से अतिरिक्त काम करवाया जाता है। हमसे स्कूलों में चार कर्मचारियों (सफाई कर्मचारी, माली, चौकीदार व चतुर्थ कर्मचारी) का काम लिया जाता हैं। वहीं दूसरी तरफ बच्चे कम होने पर हमें काम से निकाल दिया जाता है। न तो हमारे काम का सम्मान किया जाता है और न ही सरकार द्वारा कुशल मजदूर के लिए घोषित न्यूनतम वेतन दिया जाता है।
नैनीताल की भोजनमाता ने कहा कि शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत जी को हमने हल्द्वानी में अपनी समस्याओं से संबंधित ज्ञापन भी दिया था लेकिन विधान सभा सत्र के दौरान उन्होंने एक शब्द भी हम भोजनमाताओं के संबंध में नहीं बोला।
सरकार एक तरफ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कहती है। महिलाओं के उत्थान हेतु प्रदेश भर में ईजा-बैड़ी महोत्सव किए गए। लेकिन भोजनमाताओं की स्थिति को देखेंगे तो उनका स्कूलों में न सिर्फ शोषण हो रहा है बल्कि वे अथाह उत्पीड़न की भी शिकार हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भोजनमाताओं से कराये जा रहे काम को बेगार की संज्ञा दी है।
सोमवार को भोजनमाता यूनियन अपनी उक्त समस्याओं के संबंध में एस.डी.एम. महोदय के माध्यम से मुख्यमंत्री, राज्यपाल को ज्ञापन प्रेषित करेंगी।
कार्यक्रम में रामनगर, हल्द्वानी, लालकुंआ, पंतनगर, काशीपुर से आयीं सैकड़ों भोजनमातायें शामिल रहीं। -हल्द्वानी संवाददाता
भोजनमाताओं का अपनी मांगों के लिए जुलूस-प्रदर्शन
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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।
इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।
इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।