हिटलर और उसकी नाजी पार्टी के जमाने से ही फासीवादियों ने अपने प्रचार की एक शैली विकसित की है और समाज में अपना आधार बनाने में तथा उसे बनाये रखने में उसे औजार की तरह इस्तेमाल किया है। भारत के हिन्दू फासीवादी भी उसी शैली का आज इस्तेमाल कर रहे हैं। जी-20 के मामले में हिन्दू फासीवादियों के प्रचार में इस शैली का एक नमूना देखा जा सकता है।
फासीवादी प्रचार में प्रमुख चीज है भावनाओं को उभारने पर जोर। अपने सर्वोच्च नेता के प्रति भक्ति भाव तथा विरोधियों के प्रति घृणा को चरम पर पहुंचाना इसका लक्ष्य होता है। इसके लिए जान-बूझकर तथ्यों और तर्कों से किनारा किया जाता है। किसी खास नारे या तस्वीर को बार-बार दोहराया जाता है जब तक कि वह लोगों के अचेतन मन का हिस्सा न बन जाये। इतना ही नहीं इसमें सफेद झूठ या अर्द्धसत्य का सहारा लेने से भी नहीं हिचका जाता।
इन सारी चीजों को अभी देश में भारत सरकार द्वारा जी-20 के मामले में किये जा रहे विभिन्न आयोजनों तथा इस संबंध में सरकारी व गैर-सरकारी (भाजपाई) प्रचार में देखा जा सकता है।
जी-20 वैश्विक स्तर पर 19 बड़े देशों (अर्थव्यवस्था के हिसाब से) तथा यूरोपीय संघ का एक ऐसा जमावड़ा है जो कुल मिलाकर महज दिखावटी है। साल भर में इसकी एक मंत्री स्तर की तथा दूसरी सरकार प्रमुख स्तर की बैठक होती है। इसकी अध्यक्षता साल भर के लिए हर देश को बारी-बारी से मिलती है।
चूंकि जी-20 दुनिया के स्तर पर कोई बहुत महत्वपूर्ण संस्था नहीं है इसलिए जिस देश को भी इसकी अध्यक्षता करने का मौका मिलता है उसके लिए यह बहुत गर्व की बात नहीं होती। यह एक तरीके से रोजमर्रा की घटना होती है।
पर हिन्दू फासीवादियों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के समय से ही मोदी, मोदी सरकार तथा संघ परिवार मोदी को एक वैश्विक नेता घोषित करने में लगे हुए हैं। यह उनके द्वारा भारत को ‘विश्व गुरू’ के पद पर फिर से आसीन कराने की परियोजना का हिस्सा है। इसी के तहत ही उन्होंने जी-20 की बैठक का इस्तेमाल करने का फैसला किया।
कहा जा रहा है कि बारी-बारी वाले क्रम से भारत को 2020 में अध्यक्षता का मौका मिलना था। लेकिन मोदी सरकार ने तब इटली से आग्रह किया कि वह इसे स्वीकार कर ले और स्वयं के लिए 2023 साल ले लिया। यह 2024 के लोक सभा चुनावों के मद्देनजर किया गया। जी-20 के बारे में सरकार की उपलब्धियों को प्रचार कर इसके जरिये उस चुनाव में कुछ अतिरिक्त लाभ उठाया जा सकता था। जी-20 के बारे में प्रचार के लिए मोदी सरकार ने केवल अपने समर्थक पूंजीवादी प्रचार पर भरोसा नहीं किया बल्कि साल भर के लिए एक विस्तृत योजना ही तैयार कर ली। प्रदेशों की राजधानियों के साथ दौ सौ शहरों में इस संबंध में आयोजन किये जाने थे। इसके अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों में भी इसके बारे में आयोजन होने थे। इसके जरिये न केवल लाखों लोगों तक जी-20 के बारे में प्रचार को पहुंचाना था बल्कि पूंजीवादी प्रचार तंत्र को भी मोदी समर्थक प्रचार के लिए भरपूर मसाला देना था।
इन सारे ही आयोजनों में इस बात का खास ख्याल रखा जाना था कि कोई तथ्यपूर्ण और तर्कपूर्ण बात न हो। बस सारी दुनिया में मोदी का डंका बज रहा है और मोदी की वजह से भारत का डंका बज रहा है, यही संदेश जाये।
इसका असर भी देखा जा सकता है। कई लोग जी-20 के बारे में बात करते देखे जा सकते हैं। दो-चार वाक्यों की बातचीत से पता चल जाता है कि उन्हें जी-20 के बारे में कुछ नहीं पता। तब भी वे इस मामले में मोदी की तारीफ करते सुने जा सकते हैं। हो सकता है ऐसे लोग वैसे भी भाजपा और मोदी समर्थक हों पर अपने समर्थकों को भी अपने साथ बांधे रखने के लिए इस तरह की कोशिशें जरूरी हैं। सच्चाई तो यही है कि आज मोदी और उनकी सरकार तथा भाजपा की सारी हताशा भरी कार्रवाइयां इसी समर्थन को बचाने के लिए हैं।
आज वैश्विक स्तर पर देशों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों के समय में जी-20 जैसे जमावड़ों का अर्थहीन हो जाना पहले से तय है। यह इस रूप में सामने आया कि इसकी भारत में दो स्तरों की बैठक में संयुक्त बयान तक जारी नहीं हो सका। इतने तक के लिए रजामंदी न हो सकी।
पर मोदी और मोदी सरकार को इसकी चिंता नहीं। उसके प्रचार ने जी-20 की इस असफलता को छिपा लिया। यह मोदी के लिए बहुत शर्म की बात होती कि उनका नेतृत्व एक संयुक्त बयान तक नहीं जारी करा सका। इस तरह के असुविधाजनक तथ्यों को छिपाकर यह प्रचार जोर-शोर से जारी है कि मोदी का सारी दुनिया में डंका बज रहा है और वे वैश्विक नेता हैं।