वसीम हत्याकांड की न्यायिक जांच को लेकर प्रदर्शन व ज्ञापन

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हरिद्वार/ दिनांक 23 सितंबर को हरिद्वार में वसीम हत्याकांड के विरोध में एक प्रदर्शन कर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को जिलाधिकारी हरिद्वार के माध्यम से ज्ञापन दिया गया। मृतक वसीम के परिवारजन व विभिन्न सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों ने डी एम कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन करने वालों में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन एवं जन अधिकार संगठन तथा अल्पसंख्यक मोर्चा के कानूनी सलाहकार एडवोकेट रूपचंद आजाद जी तथा सोहलपुर निवासी मृतक वसीम के परिवारजन शामिल रहे।
    
प्रतिनिधियों द्वारा डीएम महोदय से मिलकर पुलिस द्वारा मृतक वसीम के परिवारजनों पर लगे झूठे मुकदमे वापस लेने एवं उन्हें मानसिक रूप से परेशान न करने की मांग की गयी। इस पर जिलाधिकारी महोदय ने प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि वे एसएसपी महोदय से मिलकर बात करेंगे। 
    
तथ्यों की जमीनी स्तर पर जांच पड़ताल करने के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग टीम गठित की गयी जिसमें नागरिक अखबार, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र एवम भेल मजदूर ट्रेड यूनियन के लोग थे। इस टीम ने पहले 9 सितंबर को रुड़की के निकट सोहलपुर एवं माधोपुर में जाकर स्थानीय निवासी व मृतक वसीम के परिवारजनों एवं इस घटना में नियुक्त पुलिस जांच अधिकारी से मुलाकात की। टीम द्वारा एक रिपोर्ट भी प्रेस के लिए प्रकाशित की गई है।
    
विभिन्न सामाजिक संगठन द्वारा डी एम को सौंपे ज्ञापन में मांग की गई है कि :-

1. वसीम हत्याकांड की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की जाए व दोषियों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए।
2. वसीम के परिवार जनों पर लगे झूठे मुकदमे वापस लिए जाए। 
3. सोहलपुर एवं माधोपुर के स्थानीय निवासियों को पुलिस द्वारा धमकाना बंद किया जाए।
4. गौरक्षा के नाम पर अल्पसंख्यकों का दमन एवं हत्ताएं बंद की जाएं।
    
ज्ञापन देने में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, जन अधिकार संगठन, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, देवभूमि श्रमिक संगठन हिंदुस्तान यूनिलीवर के कार्यकर्ता, मृतक वसीम के पिता नसीम जी एवं फतेह मुस्तकीम गुलशन, पूर्व बीडीसी मेंबर जितेंद्र कुमार एवम अल्पसंख्यक मोर्चा के कानूनी सलाहकार एडवोकेट रूप चंद आजाद आदि शामिल रहे। 
           -हरिद्वार संवाददाता

आलेख

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

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इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

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