संघ परिवार मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाने के किसी भी मौके को नहीं चूकता। यह नफरत इसकी पैदाइश से ही रही है। यह इसकी राजनीति का कोर है। वर्तमान इजरायल-हमास मामले पर भी संघी मंत्री और संघी संगठन इसी तरह धुंआधार प्रचार कर रहे हैं। हमास के हमले का इस्लामोफोबिया के रूप में प्रचार कर रहे हैं।
मजेदार यह है कि भारत सरकार ने हमास को आतंकवादी संगठन का दर्जा नहीं दिया है मगर इस हमले को आतंकवादी हमला घोषित करते हुए तुरंत ही इजरायल के साथ खड़े होने की बात कही। अब इजरायली सरकार का दबाव है कि भारत सरकार आधिकारिक तौर पर हमास को आतंकवादी संगठन घोषित करे।
भारत आई 2 यू 2 समूह में है जिसमें भारत, इजरायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात है। भारत मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा योजना में भी शामिल है। भारत इस कारिडोर के जरिये संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और जार्डन, इजरायल से होकर पूर्वी यूरोप से जुड़ेगा।
देश के भीतर मुकेश अंबानी की कंपनी में सऊदी अरब की आरामको कंपनी ने 2019 में 15 अरब डालर का निवेश किया था।
यही नहीं जुलाई 2023 में मोदी सरकार ने मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव और सऊदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा की यात्रा का दिल्ली में स्वागत किया था।
यानी एक तरफ कथित इस्लामिक देशों के साथ भांति-भांति के तरीकों से व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ाते जाना और निवेश की मांग करना दूसरी तरफ इस्लाम के प्रति नफरत और घृणा फैलाना, भाजपाइयों और इनके अन्य संगठनों के असली चेहरे को उजागर करता है।
फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिये और पांचजन्य जैसी पत्रिकाओं के साथ मुख्यधारा के मीडिया के जरिये इजरायली शासकों या इजरायल को पीड़ित, हिंसा और आतंक के शिकार देश के बतौर प्रचारित किया जा रहा है। इसे यहूदी बनाम मुस्लिम के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। जहां फिलस्तीनी मुस्लिम हैं, आतंकी हैं और यहूदियों यानी इजरायल का नामोनिशान मिटा देना चाहते हैं।
हमास को मुस्लिम आतंकी के बतौर तथा इस बारे में फर्जी या आधी-अधूरी वीडियो, फोटो, खबर प्रचारित कर मुस्लिमों के प्रति नफरत और डर यानी इस्लामोफोबिया को फैलाया जा रहा है। इनसे सावधान रहने और इन्हें सबक सिखाने की बातें की जा रही हैं।
पत्रकार, आदित्य राज कौल जिन्हें भाजपा समर्थक के बतौर जाना जाता है, ने हमास द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि हमास द्वारा एक गर्भवती महिला को काट दिया गया, जिससे अजन्मे बच्चे की मौत हो गई। इस पोस्ट को 21,000 से अधिक रिट्वीट के साथ 10 करोड़ बार देखा जा चुका है। इस आरोप की कोई पुष्टि नहीं हुई।
इजरायल-हमास के मौजूदा प्रकरण पर भारत दुनिया भर में बिना किसी प्रमाणिकता और वास्तविक तथ्य के झूठी या फर्जी खबरों, अफवाहों की फैक्टरी की राजधानी के रूप में जाना गया। वास्तव में यह काम भाजपा का आई टी सेल ही कर रहा था।
इजरायल ने जो कुछ भी अपने पक्ष में कहा है उसे कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर ये प्रचारित कर रहे हैं। जैसे आर एस एस का पांचजन्य वेब पोर्टल खबर बनाता है ‘इजरायल के गुप्तचरों का बड़ा खुलासा, रासायनिक हमले की तैयारी में था हमास’।
इसके संपादकीय में शीर्षक है ‘पाशविक बर्बरता का सभ्यता से संघर्ष’। इसके मुताबिक इजरायली सभ्यता पीड़ित है। यह ज्ञान, विज्ञान, कला और संस्कृति का विकास कर रही है जबकि पाशविकता यानी हमास राकेट से हमला करता है। इस तरह हमास को पाशविक, बर्बर घोषित करते हुए इसके खिलाफ नफरत पैदा करते हुए इजरायल को सभ्य घोषित करती है।
इस तरह इस्लामोफोबिया के जरिये भाजपा को दोहरा फायदा है। एक तरफ निरन्तर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण तो दूसरी तरफ सत्ता पर कब्जा बरकरार रखना।
आर एस एस और इनके संगठन और भाजपा व इसका आई टी सेल इसके अलावा और कुछ कर भी नहीं सकता। यह इनके अस्तित्व और विस्तार के लिए बेहद जरूरी है।
ये कभी भी यह नहीं बताएंगे कि इजरायली शासकों ने फिलिस्तीन को एक देश के बतौर वजूद में आने ही नहीं दिया। 1948 के बाद इजरायल ने धीमे-धीमे फिलिस्तीनियों के फिलिस्तीन पर लगभग कब्जा कर लिया है।
संघी कभी यह भी नहीं बताएंगे कि फिलिस्तीन पहले आटोमन तुर्क साम्राज्य के कब्जे में था और बाद में जब 20 वीं सदी में पहले विश्व युद्ध के समय विघटित होता तुर्क साम्राज्य हार गया तो फ्रांसीसी और ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासकों ने इसे बांट लिया। सीरिया और लेबनान पर फ्रांसीसियों ने तो फिलिस्तीन पर ब्रिटिश शासकों ने कब्जा कर लिया।
इसी दौर से ही धनी यहूदियों को फिलिस्तीन में बसाया जाने लगा था जो फिलिस्तीन में जमीनें हथियाने लगे थे। तभी से एक टकराव फिलीस्तीनी और यहूदियों के बीच होने लगा था। यहूदियों के अपने अलग देश की मांग जो फिलिस्तीन में ही होना थीं इसे ब्रिटिश शासकों ने बालाफोर घोषणा पत्र के द्वारा 1917 में ही जाहिर कर दिया था।
जर्मनी में यहूदियों के नरसंहार और भयानक उत्पीड़न की पृष्ठभूमि में जब दूसरा विश्व युद्ध जर्मनी की हार के साथ समाप्त हुआ तब दुनिया भर में ब्रिटिश और बाकी साम्राज्यवादियों की गुलामी से देश आजाद होते जा रहे थे। अमेरिकी साम्राज्यवादी वर्चस्व की स्थिति में आ गये।
इन साम्राज्यवादी ताकतों का मकसद था पश्चिमी एशिया पर परोक्ष नियंत्रण कायम करना। तब इस दौर में यहूदियों के लिए दुनिया भर में बनी सहानुभूति का इस्तेमाल अमेरिकी और ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अपने पक्ष में किया। फिलिस्तीन के एक हिस्से में इजरायल का गठन फिलिस्तीनी जनता की मर्जी के खिलाफ और इसके जबरदस्त विरोध के बावजूद जबरन कर दिया गया। इजरायल को हथियार और हर तरह से सहयोग कर एक लठैत के बतौर पाल-पोषा गया। फिलिस्तीन नाम का देश वजूद में ही नहीं आ पाया। इजरायल के अलावा शेष हिस्से जार्डन, मिश्र और अरब के पास थे।
अपने बनने की शुरूआत से ही इजरायल ने शेष हिस्से को निगलना शुरू कर दिया व यहूदी बस्तियों को बसाना शुरू किया। फिलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध का बर्बर दमन किया। उन शेष हिस्सों को जो मिश्र, जार्डन और अरब के पास थे उन पर भी कब्जा कर लिया। इस दौर में 10 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनीयों को उनकी अपनी जमीन और देश से खदेड़ दिया गया, हजारों फिलिस्तीनियों की हत्या कर दी गयी। इसके बाद तो फिलिस्तीनी जनता के पहले और दूसरे इंतफादा (प्रतिरोध युद्ध) का भयानक दमन किया गया। इन्हें गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के छोटे से हिस्से तक समेट दिया। चौतरफा घेराबंदी में शरणार्थियों की तरह रहने पर मजबूर कर दिया।
इस सबके बारे में संघी और भाजपाई खामोश रहेंगे। कभी कुछ नहीं कहेंगे। झूठ, अर्ध सत्य और इतिहास की अपनी फर्जी सांप्रदायिक व्याख्या करके अपने फासीवादी एजेन्डे को ही आगे बढ़ाएंगे।
इजरायल-हमास के जरिये इस्लामोफोबिया फैलाता संघ परिवार
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को