बनभूलपुरा हिंसा पर फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट जारी

हल्द्वानी/ 13 मई 2024 को ‘‘कौमी एकता मंच’’ ने ‘बनभूलपुरा हिंसा : असली गुनाहगार कौन?’ शीर्षक से अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की। इस दौरान पत्रकार वार्ता भी आयोजित की गई।
    
मंच ने अपनी रिपोर्ट को निम्न बिंदुओं पर केंद्रित किया-

1. बनभूलपुरा हिंसा पर सरकार-प्रशासन के बहुप्रचारित पक्ष के समानांतर पीड़ित जनता के पक्ष को सामने रखना।
2. मस्जिद-मदरसा के विध्वंस के मामले में प्रशासन द्वारा उचित कानूनी प्रक्रिया (प्रोटोकाल) का पालन हुआ अथवा नहीं।
3. हिंसा की घटना के दौरान लोग किन परिस्थितियों में मारे गए? इसमें पुलिस ने गोली चलाने के प्रोटोकाल को लागू किया अथवा नहीं।
4. हिंसा की घटना के बाद नागरिकों के जान-माल के नुकसान के मुआवजे व नागरिकों का शासन-प्रशासन पर पुनः भरोसा बनाने के लिए कुछ प्रयास हुए अथवा नहीं, को रिपोर्ट में जांचने के प्रयास किया।
    
पत्रकार वार्ता में ‘‘कौमी एकता मंच’’ के गठन के बारे में बताया गया कि 8 फरवरी को हल्द्वानी शहर के बनभूलपुरा क्षेत्र में हुई हिंसा की अप्रिय घटना के बाद विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने 25 फरवरी 2024 को मंच का गठन किया। हिंसा के कारणों को जानने के लिए फैक्ट फाइंडिंग, मेहनतकश पीड़ितों को राशन-मेडिकल सहायता, सम्भव कानूनी सहायता करने का लक्ष्य रखा।
    
मंच के सदस्यों ने कहा कि उन्होंने 28 फरवरी से 5 मार्च के बीच बनभूलपुरा हिंसा पर क्षेत्र का सघन दौरा और विभिन्न अखबारों की रिपोर्टों के हवाले से अपनी रिपोर्ट तैयार की है। फैक्ट फाइंडिंग में पाया गया कि प्रशासनिक स्तर पर गंभीर लापरवाही और राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित मुस्लिम अल्पसंख्यक विरोधी माहौल के चलते हो रही घटनाओं की कड़ी में ही बनभूलपुरा हिंसा की घटना हुई। 
    
सरकार की दुर्भावना और प्रशासन की लापरवाही का ठीकरा बनभूलपुरा की जनता पर फोड़ने का काम किया जा रहा है। इस घटना को पूर्व के अदालती आदेशों को नजरअंदाज करने, कानूनों की अवमानना, खुफिया विभाग की सलाहों को नजरअंदाज करने, आदि-आदि प्रशासनिक गलतियों या उकसाने की कार्यवाही के तौर पर ही परिभाषित किया जाना चाहिए।
    
प्रेस वार्ता में मंच के सदस्यों ने इस तथ्य पर जोर दिया कि पुलिस के सिपाहियों, महिला पुलिसकर्मियों को चोटें आदि के बारे में बातें की गईं। लेकिन बनभूलपुरा के 7 आम मजदूर मेहनतकश मारे गए, इसको भुला दिया जाता है। इससे भी बुरा यह हुआ कि कर्फ्यू के दौरान बनभूलपुरा के इलाके में पुलिस की बर्बरता की कई दर्दनाक घटनाएं हुई। काफी जद्दोजहद के बाद आखिर फईम के भाई के प्रयासों से न्यायालय के कहने पर फईम की हत्या के लिए अज्ञात लोगों पर एफआईआर और जांच की कार्यवाही हो रही है, जबकि परिवार की तरफ से दोषियों के नाम स्पष्ट किये गए हैं। यह प्रशासन की कार्यवाही के दोहरेपन को जाहिर कर देता है। घटना के बाद राज्य के मुख्यमंत्री, क्षेत्र के सांसद आते हैं घायल पुलिसकर्मियों-मीडियाकर्मियों-निगमकर्मियों से मिलते हैं, संवेदना-मुआवजे की घोषणा करते हैं लेकिन बनभूलपुरा हिंसा के मृतकों-पीड़ित आमजनों के लिए कोई संवेदना तक जताना जरूरी नहीं समझते यह व्यवहार न्याय और सत्य का नहीं बल्कि पक्षपात और द्वेष का है।
    
रिपोर्ट में मांग की गई है किः-

1. हिंसा की घटना की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में न्यायिक जांच की जाए।
2. पुलिस गोलीबारी में घायलों को 5 लाख व मृतकों के परिजनों को 25 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए।
3. कर्फ्यू के दौरान घरों में की गयी तोड़-फोड़ के नुकसान की भरपाई की जाए।
    
पत्रकार वार्ता को कौमी एकता मंच की संयोजिका रजनी जोशी (प्रगतिशील महिला एकता केंद्र), उत्तराखंड महिला मंच की बसन्ती पाठक, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के अध्यक्ष पीपी आर्या, भाकपा-माले से के.के.बोरा, इंकलाबी मजदूर केंद्र से रोहित, परिवर्तनकामी छात्र संगठन के महासचिव महेश, मजदूर सहयोग केन्द्र से धीरज जोशी ने सम्बोधित किया।    -हल्द्वानी संवाददाता

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।