9 मई को भारत के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया। बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक जिसे सेंसेक्स के नाम से जाना जाता है एक हजार अंक से ज्यादा गिर गया और यही हाल निफ्टी का भी हुआ वह 22,000 के कथित मनोवैज्ञानिक सीमा से नीचे आ गया। बताया जा रहा है कि निवेशकों के 7.3 लाख करोड़ रुपये डूब गये। इसी तरह रुपया भी डालर के मुकाबले और कमजोर हो गया।
शेयर बाजार के डूबने का एक कारण जहां यह बताया गया कि कम्पनियों के चौथी तिमाही के वित्तीय परिणाम आशानुरूप नहीं हैं और दूसरा कारण ज्यादा दिलचस्प और महत्वपूर्ण है कि आम चुनाव का परिणाम अनिश्चित हो गया है।
कहां तो मोदी एण्ड कम्पनी ‘अबकी बार चार सौ पार’ का नारा उछाल रही थी और अब कहां शेयर बाजार के धुरंधरों और धूर्त विदेशी निवेशकों को लगने लगा है कि यह भी संभव है कि मोदी सत्ता में वापस न आ पाये। उनका ‘‘डार्लिंग’’ चुनाव हार जाये।
ये परजीवी वित्तीय राक्षस अगर यूं घबरा रहे हैं तो अवश्य ही इसमें कुछ न कुछ बात होगी। धूर्त विदेशी निवेशक भारत से भाग रहे हैं तो यूं ही नहीं भाग रहे होंगे। इन धूर्त लालचियों को कुछ न कुछ अंदरखाने की खबर होगी।
‘‘आम चुनाव का परिणाम अनिश्चित’’
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7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को
7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक
अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।
इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।