सैमसंग मज़दूरों की हड़ताल दूसरे महीने भी जारी

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चेन्नई के श्रीपेरम्दूर में जारी सैमसंग मज़दूरों की हड़ताल दूसरे महीने में प्रवेश कर चुकी है। इस बीच सरकार और कम्पनी लगातार हड़ताली मज़दूरों के प्रति षड्यंत्र रच रहे हैं और उनकी हड़ताल को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनके इन प्रयासों के फलस्वरूप करीब एक तिहाई मज़दूर काम पर जा चुके हैं लेकिन अभी भी 1000 के लगभग मज़दूर हड़ताल पर डटे हैं।

राज्य सरकार के मुख्यमंत्री, श्रम मंत्री, श्रम विभाग जहाँ हड़ताल को खत्म करवाने का प्रयास कर रहे हैं वहीं केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मांडवीया ने भी तमिलनाडु के श्रम मंत्री को हड़ताल ख़त्म करने के लिए पत्र लिखा है। केंद्र व राज्य की सरकारों को डर है कि अगर हड़ताल लम्बी चलती है तो विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है और साथ ही भारत को चीन की तरह दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का उनका सपना टूट न जाए।

सैमसंग कम्पनी प्रबंधन ने 7 मज़दूरों की एक कमेटी के साथ वार्ता कर मामले का हल निकालने की बात की। जबकि ये 7 मज़दूर हड़ताली मज़दूर ही नहीं थे। राज्य सरकार की तरफ से भी इसी आशय का बयान जारी किया था। अखबारों ने भी इस बयान को प्रमुखता से छापा। यह इस बात को दिखाता है कि सरकार, कम्पनी और पूंजीवादी प्रचार तंत्र किस तरह मज़दूरों को भरमाने की चाल चल रहा है। साथ ही जनता में मज़दूरों के आंदोलन को जनता के बीच बदनाम करने की चाल चल रहा है।

पूंजीवादी प्रचार तंत्र कम्पनी की तरफ से दिये जा रहे बयानों को इस तरह पेश करता है ताकि कम्पनी की साफ स्वच्छ छवि लोगों में बने। जैसे कम्पनी प्रबंधन कहता है कि हमारे यहाँ सभी तरह के नियम क़ानूनों को लागू किया जाता है। हम अपनी कम्पनी के कर्मचारियों के लिए साफ सुथरा माहौल रखते हैं। हमने हड़ताली मज़दूरों की सभी मांगों को मान लिया है। लेकिन दूसरी तरफ कम्पनी हड़ताली मज़दूरों के खिलाफ साजिश रच कर उनकी हड़ताल को तोड़ने पर तुली है।

हकीकत यह है कि जब मज़दूर कम्पनी में रहकर अपनी मांगों को उठा रहे थे तब सैमसंग प्रबंधन ने उनको परेशान करने के लिए टी वी वाले विभाग से ए सी विभाग में भेज दिया गया। जबकि उन्हें इस काम का कोई अनुभव नहीं था। मज़दूरों का कहना है कि उनको घंटों तक अकेले ही कमरे में छोड़ दिया जाता था और उनसे तरह तरह के प्रश्न पूछे जाते थे। उनको छुट्टी देने से मना कर दिया जाता था। ओवरटाइम में ज्यादा देर तक रोका जाता था।

सैमसंग के ये हड़ताली मज़दूर् सीटू के साथ मिलकर यूनियन बना रहे हैं। सैमसंग प्रबंधन सीटू के साथ यूनियन न बनाकर एक मज़दूर् कमेटी बनाने की बात कर रहा है। इस कमेटी में भी वह अपने समर्थकों को भरना चाहता है। सीटू सीपीएम से जुड़ी ट्रेड यूनियन है जो वर्तमान मुख्यमंत्री स्टालिन का समर्थन करती रही है। यह दिखाता है कि पूंजीवादी व्यवस्था की समर्थक पार्टी की ट्रेड यूनियन के नेतृत्व में बनी यूनियन को भी कम्पनी प्रबंधक मान्यता देने को तैयार नहीं है।

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

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इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।