मोदी चुप संसद ठप

भारतीय संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण सत्ता पक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ा रहा। हंगामा इस बात को लेकर था कि राहुल गांधी विदेश में दिये गये भाषण के लिए माफी मांगें। भाजपा ने इस मांग को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगह ऐसी सूरत कायम की हुयी थी कि विपक्ष अपनी कोई बात न कह सके। लोकसभा व राज्यसभा के अध्यक्ष हंगामे की इस कार्यवाही में सत्तारूढ़ दल का साथ देते रहे। वे सत्तापक्ष को समझाने या उस पर कोई कार्यवाही करने के स्थान पर लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को स्थगित करते रहे। निष्पक्षता के राजनैतिक पाखण्ड की जरूरत भी इन्होंने नहीं समझी।

विपक्ष के लोग अडाणी प्रकरण को लेकर ‘संयुक्त संसदीय समिति’ (जेपीसी) गठन की मांग संसद में कर रहे थे। और लगातार इस मांग पर जोर देने के लिए ‘‘मोदी अडाणी भाई-भाई’’ के नारे लगा रहे थे। मोदी ने अडाणी मामले में एकदम मौन साधा हुआ है। वे न तो संसद के भीतर और न बाहर इस विषय पर कुछ बोल रहे हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से अडाणी का सितारा डूबता गया है। मोदी सरकार ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से अडाणी को बचाने के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है। अडाणी की साख और दौलत बच सके इसके लिए उसकी कम्पनियों के शेयर खरीदने में भारत के सबसे बड़े एकाधिकारी घराने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से लगे हुए हैं। अडाणी अपने को एक मजबूत कारोबारी साबित करने के लिए अपने विशालकाय कर्ज को रहस्यमयी ढंग से चुका रहे हैं। और यह सब मोदी सरकार के सहयोग के बिना संभव हो सकता है की कल्पना करना भी संभव नहीं है।

सत्तारूढ़ दल और मोदी सरकार के पक्ष में बेशर्मी से खड़ा मीडिया अडाणी प्रकरण में अडाणी और उसके भाई-बिरादरों की काली करतूतों पर पर्दा डालने के लिए जमीन-आसमान एक कर रहा है। विनोद अडाणी का नाम लेने में वे शरमा रहे हैं।

विपक्ष और खासकर कांग्रेस पार्टी अडाणी प्रकरण के जरिये मोदी और भाजपा को आइना दिखाना चाहती है। और किसी भी तरह उसकी फजीहत करना चाहती है। और साथ ही अपने उन पापों को छिपाना चाहती है जो उन्होंने अडाणी को अमीर और अमीर बनाने के लिए अपनी ओर से किये हैं। अडाणी, अम्बानी, टाटा, बिड़ला, मित्तल, अग्रवाल आदि की दौलत कांग्रेस के शासन काल में भी कम गति से नहीं बढ़ी थी। ये दीगर बात है कि अडाणी की दौलत में अप्रत्याशित वृद्धि मोदी के कार्यकाल में ही हुयी। खासकर कोरोना काल में। और इसके बाद देखते ही देखते अडाणी दुनिया का सबसे बड़ा तीसरा अमीर बन गया।

संसद में मोदी, अडाणी, भाजपा की फजीहत न हो इसके लिए भाजपा ने राहुल गांधी के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दिये गये उस भाषण को आधार बनाया जिसमें उन्होंने मोदी, भाजपा व संघ के बारे में कुछेक सही बातें कह दी थीं। ‘भारत में लोकतंत्र खतरे में है’, ‘संघ एक फासीवादी, ‘‘गुप्त समाज’’ (सीक्रेट सोसाइटी) की तरह कार्य करने वाला’ है और उन्होंने उसकी तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर दी। राहुल गांधी की बातों में किंचित सच्चाई है यद्यपि वह हिन्दू फासीवादियों को पालने-पोसने में अपने पूर्वजों की भूमिका पर हमेशा मौन साधे रहते हैं। ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ अरब देशों खासकर मिस्र में काफी सक्रिय रहा है। इसकी कार्यपद्धति और कार्यक्रमों की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से आश्चर्यजनक ढंग से समानता है। ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ ने होस्नी मुबारक की तानाशाही के खिलाफ उभरे जनांदोलन की लहर पर सवार होकर वैसे ही सत्ता हासिल की थी जिस ढंग से कभी इंदिरा गांधी के द्वारा थोपे गये आपातकाल के विरुद्ध पैदा हुए जनांदोलन की लहर पर सवार होकर संघी केन्द्रीय सत्ता के दरवाजे अपने लिए खोल सके थे। बाढ़, सूखे आदि आपदाओं के समय भी ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ के लोग गरीब मुस्लिमों के लिए वैसे ही दिखावटी-सजावटी राहत कार्यक्रम चलाते हैं जैसे भारत में संघी हिन्दुओं-आदिवासियों आदि के लिए चलाते हैं।

जहां तक भारतीय संसद यहां तक कि विधानसभा का भी सवाल है वहां बहुत लम्बे समय से ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है जैसा आजकल भारत की संसद में है। सत्ता पक्ष एक संगठित गिरोह की तरह कार्य करता है और विपक्ष की हर आवाज को दबा देता है। और अपनी बारी में विपक्ष भी सत्ता पक्ष की फजीहत करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। और जब से हिन्दू फासीवादी सत्ता में काबिज हुए हैं तब से उन्होंने लोकतंत्र की रस्मी कार्यवाहियों को भी धता बता दी है। उन्होंने जहां एक ओर नगालैण्ड की तरह सरकार कायम करवाई है जहां विपक्ष में कोई नहीं है तो दूसरी ओर जहां विपक्ष एक ताकत भी बनता है वहां संसद-विधानसभाओं के सत्र या तो चलने नहीं देते हैं या फिर उन्हें इतनी अल्पअवधि का रखते हैं कि वहां बस कुछ एकदम औपचारिक कार्य हो सके। ‘‘यहां तक कि काले कृषि कानूनों को संसद में बनाने के लिए भी विधायी कार्यों को पूरा करने की आड़ का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें हो-हल्ले के बीच कानून पास करा दिये जाते हैं।

फिलवक्त अडाणी प्रकरण के बीच भारत की संसद ठप है। मोदी चुप हैं। वे इस प्रकरण को छोड़कर वह सब कुछ बोल रहे हैं जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

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तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

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