कामरेड रामभरोसे को भावभीनी श्रद्धांजलि

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28 जनवरी की सुबह कामरेड रामभरोसे का देहान्त हो गया। 77 वर्षीय रामभरोसे अपने अंतिम दिनों तक इंकलाब के जुझारू सिपाही बने रहे। का.रामभरोसे का जन्म 5 जनवरी 1948 को शाहजहांपुर जिले की तहसील जलालाबाद के एक गांव में हुआ था। ये एक गरीब किसान के घर पैदा हुए थे। इन्होंने इलेक्ट्रीशियन ट्रेड से आईटीआई की और पहले उत्तर प्रदेश बिजली बोर्ड में इलेक्ट्रीशियन पद पर कार्य किया। कुछ समय सितारगंज, उधमसिंह नगर में स्थित जेल में इलेक्ट्रीशियन का काम किया और उसके बाद पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में कार्यरत रहते हुए सेवानिवृत्त हुए। 
    
1978 में जब उ.प्र. के मुख्यमंत्री राम नरेश यादव थे उस समय 13 अप्रैल को विश्वविद्यालय परिसर में चल रही मजदूरों की सभा पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं जिसमें करीब डेढ़ दर्जन मजदूर मारे गये थे। सरकार द्वारा मजदूरों के दमन को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा था। 
    
1990 के दशक में जब नयी आर्थिक नीति केन्द्र सरकार द्वारा लागू की गयी। उसी दौरान क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन का 1998 में गठन हुआ। इसके गठन में राम भरोसे जी निरंतर सक्रिय रहे। और जब इंकलाबी मजदूर केन्द्र विशेष तौर पर मजदूर वर्ग को संगठित करने के लिए सामने आया तो उसमें शामिल हो गये। वे अंतिम समय तक इंकलाबी मजदूर केन्द्र के लिए काम करते रहे।
    
राम भरोसे जी पंतनगर विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्त होने तक इमके की पंतनगर इकाई में सक्रिय रहे। सेवा निवृत्ति के बाद बरेली में रहने लगे और अपने जीवन के अंतिम समय तक बरेली में इंकलाबी मजदूर केन्द्र में सक्रिय भूमिका निभाते रहे। जब तक ये पंतनगर में रहे तब तक इनका घर संगठन के लिए हर समय खुला रहता था और यही हाल बरेली में भी रहा।
    
जीवन पर्यन्त इनका सरोकार मजदूर वर्ग एवं गरीब जनता के प्रति बना रहा। इनकी सक्रियता में कभी कमी नहीं आयी। का. राम भरोसे जी बीते डेढ़ महीने से बीमार चल रहे थे। उनको दमा की शिकायत पहले से थी। लेकिन पिछले समय टी.बी. और पीलिया हो जाने के कारण 28 जनवरी 2025 को सुबह 4 बजे उनका देहान्त हो गया। 
    
एक ऐसे समय में जब हिन्दू फासीवाद देश के भीतर तेजी से अपने पैर पसार रहा है। आम जनता, किसान और मजदूर वर्ग पर हमला बहुत तेज हो गया है। ऐसे समय में का. राम भरोसे जी का हम लोगों को छोड़कर चले जाना, मेहनतकश अवाम और इंकलाबी मजदूर केन्द्र के लिए एक अपूरणीय क्षति है। इस क्षति की भरपाई करने के लिए लोगों को सक्रिय रूप से आगे आना होगा।
    
का. राम भरोसे ने ताउम्र मजदूर वर्ग के ऐतिहासिक मिशन- समाजवाद व साम्यवाद कायम करने के लिए सक्रिय भूमिका निभायी। ऐसे में इस इंकलाबी मिशन को आगे बढ़ाने के संघर्ष को तेज करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

आलेख

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

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ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

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आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।