
पहलगाम हमले के बाद देश भर में मुसलमानों के खिलाफ एक संगठित अभियान संघी मण्डली द्वारा शुरू कर दिया गया। भाजपा नेता, बजरंग दल कार्यकर्ता इस अभियान के प्रमुख नेतृत्वकारी रहे। हरियाणा, महाराष्ट्र में मुसलमानों को गांव खाली करने को कहा गया। जगह-जगह मुसलमान गरीब दुकानदारों-ठेले वालों पर हमले बोले गये। कर्नाटक में एक विकलांग व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला गया। ‘पाकिस्तान-मुर्दाबाद’ जबरन बुलवाने से लेकर पाकिस्तान के झण्डे पर पेशाब करवाने तक का काम किया गया। सोशल मीडिया पर तो मुसलमानों के विरोध में पोस्टरों की बाढ़ आ गयी। एक पोस्टर में कहा गया कि ‘वे नाम पूछकर गोली मारते हैं तुम नाम पूछकर सामान नहीं खरीद सकते’। जाहिर है मुसलमानों के आर्थिक-सामाजिक बहिष्कार की हर संभव कोशिश संघी लम्पटों ने की। मुसलमानों के अलावा कश्मीरी छात्र-व्यापारी भी इनके हमलों का शिकार बने। ऐसे माहौल में युद्ध पर टिप्पणी करने वाले प्रोफेसर के प्रति संघी वाहिनी का हमलावर होना आश्चर्यजनक नहीं था।
पूरे देश में युद्धोन्माद फैला रही भगवा ब्रिगेड को प्रोफेसर की युद्ध विरोधी बातें बुरी लग गईं; और भीड़ हिंसा, बुलडोजर न्याय और भाजपा की नफरत की राजनीति पर कही बातें तो एकदम ही नागवार गुजरीं। फिर क्या था, हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया ने उन्हें एक समन जारी कर दिया। समन में उनकी पोस्ट को कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह समेत वर्दीधारी महिलाओं का अपमान और भारतीय सशस्त्र बलों में पेशेवर अधिकारियों के रूप में उनकी भूमिका को कमतर आंकने वाला और सांप्रदायिक द्वेष को बढ़ावा देने वाला बताते हुये 48 घंटे में जवाब देने को कहा गया। इस पर प्रोफेसर ने अपने वकील के माध्यम से संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिक अधिकारों एवं अभिव्यक्ति की आजादी की स्वतंत्रता तथा स्वयं के राजनीति विज्ञान का पेशेवर होने के आधार पर हरियाणा महिला आयोग के समक्ष अपना स्पष्टीकरण पेश भी कर दिया।
17 मई को हरियाणा महिला आयोग और सोनीपत के एक भाजपा कार्यकर्ता की शिकायत पर हरियाणा पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया और 18 मई की सुबह-सुबह उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया। जबकि उनकी पत्नी 9 माह की गर्भवती हैं और कभी भी उनकी डिलीवरी हो सकती है। 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुये उन्हें अग्रिम जमानत तो प्रदान कर दी लेकिन उनकी पोस्ट का मंतव्य जानने के लिये एक एस आई टी का गठन भी कर दिया; साथ ही, उन्हें स्पष्ट हिदायत दी कि यदि वे जांच एवं मुकदमे की कार्यवाही के दौरान पहलगाम और आपरेशन सिंदूर पर कुछ भी लिखते-बोलते हैं तो उनकी अग्रिम जमानत खारिज हो जायेगी।
दरअसल, आज के भारत में संघियों-भाजपाइयों को तो नफरत भरे बयान देने यहां तक कि गाली-गलौच करने, मारपीट तक करने की भी आजादी है, लेकिन अन्य किसी के सच बोलने पर भी ढेरों बंदिशें हैं; और खुद न्यायपालिका अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरे बैठाने में सत्ता में बैठे फासीवादियों की मददगार साबित हो रही है।